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तिल्ली की प्राणघातक गठान का दुर्लभ ऑपरेशन

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29 Dec 18
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तिल्ली की प्राणघातक गठान का दुर्लभ ऑपरेशन कोटा संभाग के पहले पेट एवं लीवर रोग सर्जन ;सर्जिकल गेस्ट्रोएन्टिरोलॉजिस्टद्ध डॉण् कैलाश धाकड द्वारा पेट एवं दाहिने कंधे में बहुत असहनीय दर्द से जूझ रही श्रीमती माधुरी शर्माए उम्र ३२ वर्ष का कोटा हार्ट इन्स्टीट्यूट में पेट का आपातकालीन ऑपरेशन कर अति दुर्लभ भाग से तिल्ली ;५ ५ किलो निकाली गई जो कि गंदे मवाद से भरी थी। जबकि इसकी विपरीत स्थिति में त्वरित ऑपरेशन न होने पर में अगर गाँठ पेट में फट जाती तो मरीज के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकती थी। बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण एवं दवाईयों के मरीज अपनी दिनचर्या में पुनः लौट आई है।
कोटा निवासी श्रीमती माधुरी शर्माए उम्र ३२ वर्ष १२ दिन से पेट दर्दए भूख कम लगना एवं बुखार से ग्रसित थी। चिकित्सकीय परामर्श एवं लगातार उपचार के बाद भी मरीज को आराम नहीं मिला। २१ दिसम्बर को मरीज के दाहिने कंधे में असहनीय दर्द देने लगा। मरीज ने डॉ. अनुराधा अग्रवाल (स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ) से परामर्श किया (मरीज के २) महीने पहिले सीजेरियन द्वारा प्रसव हुआ था) डॉ. अनुराधा अग्रवाल ने मरीज को डॉ. कैलाश धकड को रेफर किया। डॉ. धकड ने आपातकालीन कक्ष में ही पेट की अति उत्तम (१२८ स्लाइस सीटी- केवल कोटा हार्ट इंस्टीट्यूट में उपलब्ध) सीटी स्केन कराई इसमें तिल्ली में भयंकर सूजन और खून के रिसाव के साथ जीवाणु संक्रमण का अंदेशा हुआ।
डॉण् कैलाश धाकड ने मरीज के परीक्षण (पेट), रक्त जाँच एवं सीटी स्केन के आधार पर आपातकालीन ऑपरेशन की सलाह दी। मरीज की बिगडती स्थिति (श्वास में तकलीफ, दिल की धडकन बढना, रक्तचाप कम होना एवं १०३व थ् बुखार आना) को देखकर परिजनों ने ऑपरेशन की सहमति दी।
२२ दिसम्बर को मरीज का ऑपरेशन कर तिल्ली निकाली गई। ऑपरेशन में निश्चेतना विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ललित गोयल, डॉण् कैलाश मित्तल एवं ओ.टी. स्टॉफ का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

तिल्ली की गाँठ (सूजन) क्या है :
तिल्ली जीवन के शुरूआती महीनों में खून बनाती है एवं बाद में बाल्यकाल से ही हानिकारक जीवाणु को खत्म करने मे बहुत योगदान करती है (खून का फिल्टर)।
तिल्ली में बहुत ही प्रचुर रक्त सप्लाई होती है। रक्त में मीला को* भी कीटाणु, इसमें मवाद का रूप ले सकता है यदि पहले से ही तिल्ली बीमार है (जैसे- सामान्य जलीय गठाने) तो मवाद पडने की संभावना बढ जाती है।
क्या ऑपरेशन किया गया :
पेट में रिसाव हुए करीब २ लीटर गंदे मवाद को पहले निकाला गया। गंभीर जीवाणु संक्रमण होने एवं सतही फूट होने से तिल्ली को चर्बी के पर्दे ने आगे, नीचे एवं बाहर से; लीवर ने अंदर एवं ऊपर से; श्वास के पर्दे ने ऊपर एवं बाहर से जकड रखा था। तरकीब, गहरी सूझ-बूझ एवं समूचित औजारों के प्रयोग द्वारा लीवर, चर्बी के पर्दे एवं श्वास के पर्दे (डायफ्राम) से छुडाकर तिल्ली को साबुत निकाला गया।

विशिष्ट ऑपरेशन के क्या खतरे थे :
तिल्ली में खून सीधा महाधमनी से आता है। पूरे शरीर का ५ प्रतिशत खून तिल्ली में सप्लाई होता है, यह सामान्य अंगों से २० गुना ज्यादा रक्त-प्रवाह होता है, ऐसे में सूई मात्र चुभने से खून के जबरदस्त फव्वारे छूटते हैं; ऐसे अंग को दूसरे अंगों के घनिष्ट लगाव से छुडाने में खून का रिसाव प्राणघातक होता है।
श्वास के पर्दे में छेद का अंदेशा रहता है, जिससे छाती और पेट एक हो जाते हैं।
बडी आँत एवं पेन्क्रियाज में जोखिम आने का अंदेशा, जिससे लंबे समय तक क्रमशः दस्त या पाचक रस का लगातार पेट के घाव से रिसाव होने की संभावना होती है।
पेट में ही तिल्ली के फटने से भयंकर जीवाणु संक्रमण होने पर लीवर, गुर्दा, श्वास एवं दिल फेल होने की संभावना रहती है।

ऑपरेशन क्यों दुर्लभ है :
त्वरित निर्णय लेकर आपातकालीन ऑपरेशन कर मरीज की जान बचाई गई।
परिणामस्वरूप ढाई महीने के बच्चे को भी माँ का लाड-दुलार पुनः त्वरित मिलने लगा है।
अतिशीघ्र रिकवरी ;के आधार पर मरीज का ईलाज किया गया (छठे दिन छुट्टी)।



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