रबी फसल 2018 के लिए दिसम्बर माह तक जिले के कृषको को 40825 मैट्रिक टन यूरिया उपलब्ध कराया जा चुका है। झालावाड़ के सर्किट हाऊस में यूरिया खाद की मांग व आपूर्ति को बनाए रखने के संबंध में प्रेसवार्ता में कृषि विभाग के उप निदेशक अतीश कुमार शर्मा ने बताया कि माह दिसम्बर 2018 तक 35055 मैट्रिक टन यूरिया उर्वरक की आपूर्ति का लक्ष्य रखा गया था, जिसके विरूद्व अभी तक जिले को 34825 मैट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति करावाई जा चुकी है और आगे भी यूरिया की आपूर्ति नियमित जारी रहेगी। वहीं सितम्बर माह का शेष 6 हजार मैट्रिक टन यूरिया भी जिले के किसानों को उपलब्ध करा दिया गया है।
उन्होंने बताया कि जिले के किसानों की मांग को ध्यान में रखते हुए 19 दिसम्बर को आईपीएल कंम्पनी द्वारा कोटा रेक पाइंट से जिले के निजी विक्रेताओें को 500 से 600 मैट्रिक टन तक यूरिया की आपूर्ति होगी। इसके दो दिन बाद इफको कंपनी की रेक कोटा रेक पाईन्ट पर पहुंच जाएगी। इससे 600-700 मैट्रिक टन यूरिया विभिन्न सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को वितरित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त चंबल फर्टीलाइजर केमिकल्स द्वारा 300-400 मैट्रिक टन प्रतिदिन तथा श्रीराम फर्टीलाईजर केमिकल द्वारा प्रतिदिन 100-150 मैट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति की जा रही है। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही कोरोमण्डल कंपनी की रेक भी भवानीमण्डी रेक र्पाइंट पर पहुंचेगी, जिससे जिले को 2600 मैट्रिक टन यूरिया मिलेगा। साथ ही एन.एफ.एल. कंपनी द्वारा 50 से 100 मैट्रिक टन यूरिया सड़क मार्ग से भी प्राप्त होगा। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में जीएसएफसी कंपनी द्वारा जिले को 700 मैट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति की जायेगी। विभाग द्वारा कृषकों को पर्याप्त मात्रा में आवश्यकतानुसार यूरिया उपलब्ध करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
उप निदेशक कृषि ने बताया कि कृषकों को यूरिया पोश मशीन के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है। जिसमें किसान अपने आधार कार्ड का उपयोग कर यूरिया क्रय कर सकते हैं। उन्होंने किसान भाइयों से भी अपील कि है कि वे संतुलित मात्रा में ही यूरिया का उपयोग करें। उन्होंने बताया कि सरसों फसल जहां देर से बोई गई है उसमें प्रति बीघा 25 से 30 किलो तथा गेंहू की फसल में प्रथम सिंचाई के समय 20 से 25 किलो एवं द्वितीय सिंचाई के समय 20 से 25 किला यूरिया का उपयोग करें। इससे अधिक उर्वरक का उपयोग नहीं करें। उन्होंने बताया कि किसान फसलों में तरल उर्वरको का उपयोग करें ताकि लागत में कमी के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि होगी।
अधिक उर्वरक का प्रयोग हानिकारक
कृषि विभाग के उप निदेशक ने बताया कि उर्वरकों के मृदा में अत्याधिक एवं अन्धाधुन्ध प्रयोग के कारण मृदा की गुणवत्ता एवं पर्यावरण दोनों पर दिनों दिन हानिकारक प्रभाव देखा जा रहा है जो मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक घातक है। मृदा में डाले गये ठोस उर्वरकों की आधी से भी कम मात्रा में पौधांे द्वारा अवषोषित की जाती है। बाकी शेष मात्रा पानी के साथ मृदा के निचले भागो में या गैस के रूप में वायुमण्डल में चली जाती है, जो पर्यावरण को प्रदूषित करती है। इस समस्या के समाधान हेतु उर्वरको के तरल रूप का पणीय छिडकाव एक सर्वोत्तम विकल्प है। पणीय छिड़काव फसलों में प्रमुखतया सूक्ष्म पौषक तत्वों एवं मुख्य पोषक तत्वों के प्रबन्धन की एक असरदार वैज्ञानिक विधि है। इस विधि में पोषक तत्वो के घोल को सीधे फसल की पत्तियों पर छिडकाव करने से पौधो की पत्तियो में उपस्थित छिद्रों के द्वारा इसे आसानी एवं शीघ्रता से अवषोषित कर लिया जाता है।
तरल उर्वरको के पर्णीय छिडकाव के लाभ
पर्णीय छिडकाव से पौधा पौषक तत्वों को आसानी से अवषोषित कर लेता है। जिसके कारण फसल की अच्छी पैदावार होती है तथा उपज में वृद्धि होती है। पणीय छिडकाव के कारण पोषक तत्वों का प्रभाव अतिषीघ्र फसल पर दिखाई देता है। इस विधि के द्वारा पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों एवं उत्पन्न दैहिक विकारांेे को शीघ्रता से ठीक किया जा सकता है। तरल उर्वरकों से पोषक तत्वों को विभिन्न कारणों जैसे निक्षालन के द्वारा होने वाली हानि को रोका जा सकता है। मृदा में उपयोग किये गये उर्वरकों की अपेक्षा तरल रूप में उपयोग किये गये उर्वरकों में उपस्थित पोषक तत्व पौधों द्वारा अधिक मात्रा में अवषोषित किये जाते है। इस विधि के दौरान कम उर्वरकों की आवष्यकता होती है जिससे पैसे की बचत होती है। पोटेषियम नाईट्रेट एवं अन्य तरल उर्वरकांे के पणीय छिडकाव के द्वारा रोग एवं सूखे सहन क्षमता में भी वृद्धि की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि किसान खडी फसलों में पोटेषियम नाईट्रेट, मोनो अमोनियम फास्फेट, थायोयूरिया, चिलेटेड जिंक का उपयोग कर अपना उत्पादन बढ़ा सकते है।
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