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’पेट में गांठ को एंडोस्कोपी द्वारा बाहर निकाला‘

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22 Nov 18
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’पेट में गांठ को एंडोस्कोपी द्वारा बाहर निकाला‘


उदयपुर, गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के गेस्ट्रोएंटरोलोजिस्ट डॉ पंकज गुप्ता ने ५२ वर्शीय रोगी के एम्प्यूला (छोटी आंत का आरंभ) पर स्थित १ सेंटीमीटर गांठ को बिना ओपन सर्जरी मात्र थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपिक एम्पलेक्टोमी से बाहर निकाल स्वस्थ किया। यह सफल प्रक्रिया संपूर्ण राजस्थान में प्रथम गीतांजली हॉस्पिटल में संभव हो पायी है। यह गांठ छोटी आंत के आरंभ जहां अग्नाषय एवं पित्त की थैली खुलती है वहां स्थित थी। आमतौर पर ऐसे मामलों में एक बडी ओपन सर्जरी की जाती है जिसे विपल्स प्रोसीजर कहते है, जो काफी जटिल होती है क्योंकि इसमें अग्नाषय, छोटी आंत (ड्यूडेनम), पित्ताषय की थैली एवं पित्त नली के प्रथम भाग को हटाया जाता है। तत्पष्चात् षेश बचे सभी अंगों को फिर से एक दूसरे से जोडा जाता है जिससे रोगी सामान्य रुप से भोजन खा एवं पचा सके। इस सर्जरी में ७-८ घंटें का समय लगता है तथा इस प्रक्रिया द्वारा इलाज के बाद दो से तीन हफ्ते तक हॉस्पिटल में भर्ती रहना पडता है। वहीं इस रोगी में डॉ गुप्ता ने मात्र ३० मिनट के ओपीडी प्रोसीजर से ही गांठ को बाहर निकाल दिया एवं स्टेंट डाल दिया। इससे दूसरे दिन ही रोगी को छुट्टी प्रदान कर दी गई। अब तक इस प्रक्रिया द्वारा इलाज देष के मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद आदि स्थित बडे हॉस्पिटलों में ही संभव हो पा रहे थे जिसमें उदयपुर के गीतांजली हॉस्पिटल ने भी अब अपना नाम दर्ज किया है। क्योंकि गीतांजली हॉस्पिटल में डायग्नोस्टिक एंडोस्कोपी के साथ-साथ नवीनतम थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपी की सुविधा भी उपलब्ध है जिससे उच्च इलाज संभव हो पा रहे है।


डॉ गुप्ता ने बताया कि छोटी आंत का छोर जिसे एम्प्यूला कहते है, वहां ४ हिस्सों में ट्यूमर पाए जा सकते है। पहला अग्नाषय, दूसरा पित्ताषय की थैली, तीसरा छोटी आंत एवं चौथा इन सभी अंगों का जंक्षन, जिनका मुख्य रुप से इलाज सर्जरी द्वारा ही संभव होता है। इस मरीज का भी इसी प्रक्रिया द्वारा इलाज किया जाता परंतु सीटी स्केन एवं सोनोग्राफी की जांचों में प्राथमिक अवस्था में ही गांठ का निदान हो गया। रोगी के हित को ध्यान में रखते हुए थेरेप्यूटिक एंडोस्कोपी द्वारा गांठ को बाहर निकाल स्टेंट डाला गया। तत्तपष्चात् रोगी की बायोप्सी की जांच भी कराई गई जिससे गांठ पूरी तरह से बाहर निकाली गई है या नहीं यह सुनिष्चित किया जा सके। ऐसे मामलों में चिकित्सकीय परामर्ष एवं उपचार में थोडा सा विलम्ब होने पर रोगी की हालत विकट हो सकती है और यह गांठ कैंसर का रुप ले सकती है जिसका उपचार केवल सर्जरी द्वारा ही किया जा सकता है। विप्लस प्रोसीजर भी विषेश प्रषिक्षण प्राप्त ऑन्को सर्जन ही कर सकते है जो गीतांजली हॉस्पिटल के कैंसर सेंटर में मौजूद है। इस रोगी का इलाज इस प्रक्रिया द्वारा इसलिए भी संभव हो पाया क्योंकि किसी भी आपातकालीन व विकट स्थिति में गीतांजली कैंसर सेंटर के ऑन्को सर्जन की टीम को बैक अप में तैयार रखा गया था। एक ही छत के नीचे अनुभवी चिकित्सकों के विषाल दल की उपस्थिति के कारण सफलतापूर्वक इलाज संभव हो पाया। इस प्रक्रिया में डॉ गुप्ता के साथ एनेस्थेटिस्ट डॉ ललिता जींगर एवं टेक्नीषियन संजय सोमरा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। डॉ गुप्ता ने यह भी कहा कि यदि यह गांठ ५ सेंटीमीटर या उससे अधिक आकार की होती या अंदर फैली हुई होती तो विपल्स प्रोसीजर द्वारा इलाज ही एकमात्र विकल्प रह जाता।


रोगी गंगा देवी गत पिछले काफी समय से पेट में दर्द से परेषान थी। गीतांजली हॉस्पिटल में डॉ गुप्ता से परामर्ष एवं इलाज के बाद अब वह बिल्कुल स्वस्थ है।






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