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विश्व पर्यटन दिवस २०२०-पारंपरिक शिल्प और शिल्प कला कौशल पर संक्षिप्त प्रकाश

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27 Sep 20
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विश्व पर्यटन दिवस २०२०-पारंपरिक शिल्प और शिल्प कला कौशल पर संक्षिप्त प्रकाश

महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन की इस वर्ष की ’पर्यटन और ग्रामीण विकास‘ विषयक थीम पर मेवाड में प्रचलित पारंपरिक शिल्प और शिल्प कला कौशल पर संक्षिप्त प्रकाश प्रस्तुत कर रहा है।

फाउण्डेशन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने इस अवसर पर बताया कि कोविड-१९ के प्रकोप से पर्यटन व्यवसाय पर इसका बुरा प्रभाव पडा है खासकर ग्रामीण पर्यटन पर। इसी कारण पर्यटन को पुनः विकसित करने के लिए हमें पारंपरिक शिल्प एवं कला पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

उदयपुर मेवाड में कई तरह के हस्तकला उद्योग प्रचलित है जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन से जुडे हुए है। जिनमें जडया (आभूषणों में रत्न जडने वाले कारीगर), कसारा (पीतल का कार्य करने वाले कारीगर), सिकलीगर (तलवारें-ढालों के कारीगर), प्रजापत (कुम्हार - मिट्टी के बर्तन बनाने वाले) तथा इसी तरह सुथार, बुनकर, वारी, रंगरेज-छीपा, गांची, मोची, तेली, तम्बोली आदि राजमहल के आस-पास ही बसते हैं, इनमें कई दक्ष कारीगरों आदि का परिवार महाराणा उदय सिंह जी के साथ उदयपुर स्थापना के समय से ही यहां बस गये थे। मेवाड के महाराणाओं द्वारा प्रचलित पारंपरिक कला, चित्रकला व कलाकारों को रियासत काल में संरक्षण प्रदान किया जाता था। पीढी दर पीढी कार्य करने वाले कलाकारों ने पारंपरिक कला कौशल को आज तक जीवित रख अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, किन्तु समय के साथ-साथ इनमें कई तरह के बदलाव देखें जा सकते है। मेवाड की पारंपरिक शिल्प कला में कुछ इस प्रकार है ः-


जडया ः सोने, चांदी, धातु, संगमरमर, कपडे आदि पर रत्नों की जडाई का कार्य करते है। कुंदन और कई कीमती रत्नों को गहनों व अन्य कीमती सामानों में सावधानी से जडने, आकार देने, चमकाने का काम करते है। दक्ष कारीगरी से बहुरंगी रत्न-पत्थरों को अति सुन्दर तरीकें से गहनों में जोड कर उन्हें आकर्षक आकार देते है। उदयपुर में इन कारीगरी के बाजार को जडयों की ओल के नाम से जाना जाता है, जहां आज भी कई पुश्तैनी कारीगर रत्न जडाई का कार्य करते है। भीनमाल का श्रीमाल समुदाय महाराणा उदयसिंह जी के साथ उदयपुर चले आये और यहीं बस गये।

कसारा ः कसारा समुदाय के कारीगर कई पीढयों से पीतल की धातु से घरेलु उपयोग के पारंपरिक बर्तन जिनमें थाली, लोठा, घडे (चरु-चरवियां) आदि को बनाते है। ये कारीगर पीतल की शीट पर हथौडे से पीट पीट कर बर्तनों को आकार देते है और उन्हें चमकाते है। इस कला में भट्टी का प्रयोग भी किया जाता है। उदयपुर के कसारों की ओल में आज भी इस पारंपरिक कला को देखा जा सकता है तथा समय के अनुसार कहीं कहीं मशीनी प्रयोग भी देखा जा सकता है।

सिकलीगर ः सिकलीगरों का काम मूल रूप से हथियारों का निर्माण करना तथा धारदार हथियारों को तेज करने का होता है। उदयपुर में कई सिकलीगर परिवार रहते है। सिकलीगर तलवार, चाकू, भाले, ढाल, खंजर आदि का निर्माण करते है। उदयपुर में आज भी सिकलीगरों की दूकानों को पारंपरिक तरीकों से पहिये के माध्यम से हथियारों की धार तेज करते देखा जा सकता है। कहीं कहीं ये पहिये मशीन से तो कहीं आज भी पारंपरिक तरीके से चमडे के बने बेल्ट से धार करने वाले पहिये को घुमाकर धार का कार्य किया जाता है।

प्रजापत ः उदयपुर में रहने वाले कुम्हार बम्बोरी गोत्र के हैं जिन्हें प्रजापत के नाम से भी जाना जाता है। महाराणा उदय सिंह जी के समय इन्हें चित्तौडगढ से डबोक के पास डांगियो की टूस में लाकर बसाया और बाद में इन्हें उदयपुर में लाकर बसाया। ये आज भी उदयपुर के कुम्हारवाडा में बसते है। कुम्हार मिट्टी के उपयोगी बर्तनों का निर्माण करते है तथा साथ ही मंदिर व त्योहार में उपयोगी दीपक, धुपारने, कलश आदि का भी निर्माण करते है। रियासत काल में मुख्य प्रजापत को महलों से वार्षिक राशन और भत्ता मिलता था।

रियासत काल में ऐसे कई कलाकार, चित्रकार आदि उदयपुर में महाराणाओं के संरक्षण में कार्य करते थे जिन्हें उनके पेशे के हिसाब से समुह में रखा जाता था और उनके निवास क्षेत्र को उन्हीं की पहचान के अनुसार नाम दिया जाता था जैसे कुम्हारवाडा, जडयों की ओल, कसारों की ओल आदि।

वर्तमान समय में अब कुछ परिवार ही अपने पुश्तैनी कार्यों को कर रहे है। शहरी जीवन शैली में बदलाव के चलते ऐसे कई व्यवसाय बंद होने के कगार पर खडे है। कहीं कहीं आर्थिक स्थिति खराब होने पर ऐसे कारीगरों ने अन्य रोजगार का अपनाकर अपने पुश्तैनी कार्य को छोड दिया है।

......

विश्व पर्यटन दिवस पर महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर

के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी

अरविन्द सिंह मेवाड का संदेश

विश्व पर्यटन दिवस पर आप सभी को हार्दिक बधाई।

पर्यटन विकास में मेवाड का अहम योगदान रहा है। महाराणा भगवत सिंह जी मेवाड के बताये मार्ग पर चलते हुए, मेवाड में पर्यटन को बढावा देने में मेरी थोडी बहुत भागीदारी पर मुझे गर्व भी है।

कोरोना महामारी से सम्पूर्ण विश्व में पर्यटन व्यवसाय सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। ग्रामीण पर्यटन व्यवसाय में पारंपरिक कला और कलाकारों को कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है। मैं इस वर्ष ग्रामीण विकास विषय के चयन पर ’विश्व पर्यटन संगठन‘ की सराहना करता हूँ।

मुझे आशा ही नहीं विश्वास है सम्पूर्ण जगत जल्द ही इस महामारी से मुक्त होगा और पर्यटन व्यवसाय पुनः विकसित होगा।


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