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भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती पर पुस्तकालय को डॉ. सिंघल ने भेंट की किताबें

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10 Sep 20
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भारतेंदु हरिश्चन्द्र जयंती पर पुस्तकालय को डॉ. सिंघल ने भेंट की किताबें

कोटा  ।  हिंदी साहित्य के साथ-साथ हिंदी थियेटर के  पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की जयंती पर आज  जनसम्पर्क विभाग के पूर्व सँयुक्त निदेशक एवं लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने हिंदी भाषा में लिखी अपनी शोधपरक 6 पुस्तकें  राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्त को आम पाठक के उपयोग के लिए भेंट की।

        डॉ. सिंघल ने बताया कि आज हरिश्चन्द्र जयंती है और उन्होंने कहा था कि निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति संभव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान,सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा के द्वारा ही करना चाहिये। इन्ही विचारों से प्रेरित हो कर अपनी कोटा,अजमेर, बून्दी, मीडिया,चम्बल एवं भारत के आराध्य तीर्थ पर आधारित समस्त शोधपरक पुस्तकें भेंट करने के लिए इस दिन का चयन किया, हिंदी भाषा के प्रचार को प्रोत्साहन मिल सके। कुछ पुस्तकों में सह लेखक का भी सहयोग रहा हैं।

   डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि हरिश्चन्द्र का जन्म

 9 सितंबर 1850 बनारस के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था और 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनके पिता गोपाल चंद्र एक कवि थे। वह गिरधर दास के नाम से कविता लिखा करते थे। भारतेन्दु जब 5 वर्ष के हुए तो मां का साया सर से उठ गया और जब 10 वर्ष के हुए तो पिता का भी निधन हो गया। भारतीय नवजागरण की मशाल थामने वाले भारतेंदु ने अपनी रचनाओं के ज़रिए गऱीबी, ग़ुलामी और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। पैंतीस वर्ष की उम्र पाने वाले भारतेंदु की अनेक विधाओं पर पकड़ थी। वे एक गद्यकार, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार और पत्रकार थे। उन्होंने 'बाल विबोधिनी' पत्रिका, 'हरिश्चंद्र पत्रिका' और 'कविवचन सुधा' पत्रिकाओं का संपादन किया। भारतेन्दु ने सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में 'कविवचनसुधा' पत्रिका निकाली, जिसमें उस वक्त के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित होती थीं। हिंदी में नाटकों की शुरुआत भारतेन्दु हरिश्चंद्र से मानी जाती है। नाटक भारतेन्दु के समय से पहली भी लिखे जाते थे, लेकिन बाकायदा तौर पर खड़ी बोली में नाटक लिखकर भारतेन्दु ने हिंदी नाटकों को नया आयाम दिया। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बांग्ला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से हुई।

हाड़ौती शोध गंगा खण्ड

     डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि आज भारतेंदु जयंती पर पुस्तकालय में  पृथक से " हाड़ौती शोध गंगा खंड" बनाया गया हैं जिसमें देश के विभिन्न शोधर्थियों के 36 शोध ग्रंथों एवं डेजरटेशन को रखा गया हैं। हाल ही में  बीते शिक्षक दिवस पर देश के 35 पीएच.डी, एम.फील. एवं एम.एड. शोधर्थियों के शोध ग्रन्थ डॉ. महावीर प्रसाद गुप्ता के द्वारा काफी प्रयास से उपलब्ध कराए गए थे। एक ग्रन्थ निधि प्रजापति ने उपलब्ध कराया था। इन से जो लोग शोध कार्य पढ़ने में रुचि रखते हैं उन्हें उपलब्ध हो सकेंगे। ये ग्रन्थ विश्व विद्यालय की धरोहर हो जाने से एवं बाजार में उपलब्ध नहीं होने से इच्छुक पाठक को उपलब्ध नहीं हो पाते थे। डॉ. सिंघल ने भी शीघ्र ही अपना शोध ग्रन्थ उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है।


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