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नैदानिक परीक्षण में एक वैक्सीन के असफल रहने पर उत्पन्न संदेह को गलत बताया

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20 Sep 20
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नैदानिक परीक्षण में एक वैक्सीन के असफल रहने पर उत्पन्न संदेह को गलत बताया

डॉ. हर्ष वर्धन ने संडे संवाद के दूसरे अंक में अपने सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए

आत्म निर्भर भारत जन-स्वास्थ्य और अन्य स्वास्थ्य सुधारों में अधिक निवेश की सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करता है, ताकि भावी महामारियों के लिए भारत को तैयार किया जा सके

भारत में एसएआरएस-सीओवी-2 में महत्वपूर्ण म्यूटेशन नहीं

आईसीएमआर कोविड-19 के लार (सलाइव) आधारित जांच के तरीके का सक्रिय रूप से पता लगा रहा है

केन्द्रीय मंत्री ने नैदानिक परीक्षण में एक वैक्सीन के असफल रहने पर उत्पन्न संदेह को गलत बताया और कहा कि परीक्षण विशेषज्ञ समिति के पुनर्मूल्यांकन के बाद ही जारी हैं

नई दिल्ली,    केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज संडे संवाद के दूसरे अंक में अपने सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए और उनके साथ विचार-विमर्श किया। इन प्रश्नों में कई प्रकार के सवाल है, जिनका सम्बंध न केवल कोविड की वर्तमान स्थिति से है, अपितु सरकार के दृष्टिकोण और भारत में विज्ञान क्षेत्र के विस्तार जैसे सम्बंधित विषयों से भी है।

          संवाद के प्रारंभ में डॉ. हर्ष वर्धन ने एक प्रश्नकर्ता को बधाई दी, जिसने स्वयं और अपनी पुत्री को भारत बायोटेक वैक्सीन लगवाने की पेशकश की है।

          भविष्य में ऐसी जन-स्वास्थ्य आपातस्थिति से निपटने के लिए योजना अनुसार ठोस उपायों पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि ‘आत्म निर्भर भारत अभियान’ भारत को इस हदतक मजबूत बनाएगा कि वे एक अन्य महामारी समेत किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम बनेगा। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में 20 ट्रिलियन रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी, ताकि आत्म निर्भर भारत बनाने के लिए कोरोना वायरस के संकट पर काबू पाया जा सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘आत्म निर्भर भारत’ जन-स्वास्थ्य और अन्य स्वास्थ्य सुधारों में अधिक निवेश की सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करता है, ताकि भावी महामारियों के लिए भारत को तैयार किया जा सके।

          उन्होंने यह भी कहा कि वित्त व्यय समिति के पास विचाराधीन प्रस्तावों में निम्नलिखित शामिल हैं-

·      संक्रामक रोगों और प्रवेश स्थल समेत फैलाव पर काबू पाने की कार्रवाई के लिए सर्विलांस को मजबूत बनाना

·      जिला अस्पतालों में विशेष संक्रामक रोग प्रबंधन अस्पताल ब्लॉक स्थापित करना

·      समेकित जन-स्वास्थ्य प्रयोगशाला की स्थापना आदि

भारत में पोलियो उन्मूलन के संचालन में डॉ. हर्ष वर्धन की भूमिका और उपलब्धि के बारे में एक सवाल पर उन्होंने याद दिलाया कि कोविड कोरोना वायरस एक नया रोगाणु (Pathogen) है और पोलियो की तरह इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने इससे पहले एसएआरएस, इबोला और प्लेग जैसे फैलाव से निपटा है और अब कोविड पर काबू पाने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। केन्द्रीय मंत्री ने भरोसा दिलाया कि एसएआरएस-सीओवी-2 के स्ट्रेन्स में कोई महत्वपूर्ण घातक म्यूटेशन अभी तक नहीं पाया गया। उन्होंने बताया कि आईसीएमआर बड़े पैमाने पर एसएआरएस-सीओवी-2 के राष्ट्रीय स्तर पर संकलित स्ट्रेन्स का बड़े पैमाने पर अनुक्रमण कर रहा है। यह संकलन पिछले कई महीनों में अलग-अलग समय पर किया गया और वायरस के म्यूटेशन और उद्गम (Evolution) के विस्तृत परिणाम अक्टूबर के शुरू में उपलब्ध होंगे।

कोविड-19 के लिए लार (सलाइव) आधारित हाल ही में की गई जांच पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि आईसीएमआर ने ऐसी कुछ जांच को वैधता दी है, परंतु कोई विश्वसनीय जांच नहीं पाई गई और अमरीका (यूएस)-एफडीए द्वारा मंजूर जांच वाली कंपनियों ने अभी भारत सरकार के साथ संपर्क नहीं किया है। उन्होंने कहा कि आईसीएमआर इस जांच के तरीके का सक्रिय रूप से पता लगा रहा है और जैसे ही विश्वसनीय विकल्प उपलब्ध होंगे इसकी सूचना दी जाएगी।

डॉ. हर्ष वर्धन स्वंय एक डॉक्टर हैं और उन्होंने कोविड के नैदानिक प्रबंधन पर प्रश्नों के विस्तारपूर्वक उत्तर दिए। उन्होंने कोविड-19 के उपचार में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को लेकर भ्रम को निर्मूल बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह कोरोना वायरस बुजुर्गों और एक साथ कई बीमारियों वालों के लिए घातक बन जाता है। “बुजुर्गों में अधिक वायरल भार और साइटोकिन स्टोर्म्स के विकास की दिशा में वैज्ञानिक प्रमाण प्वाइंट सम्भवतः उनमें सेल में रिसेप्टर जैसी टोल में कुछ जेनेटिक पोलिमोरफिज्म के कारण होते हैं। कोविड-19 के दौरान बुजुर्ग रोगी अपने वायरल टाइटर्स में कमी कर सकते हैं, केवल प्रतिरोधक प्रणाली में हाइपरएक्टिवेशन समेत शॉक तथा छोटी रक्त धमनियों में हाइपरकोगुलेशन की स्थिति में तेजी से कमी लाने के लिए।” यद्यपि उन्होंने सचेत किया कि इसका यह अर्थ नहीं है कि युवा व्यक्तियों की कोविड-19 से मृत्यु नहीं हो सकती हालांकि उनमें जोखिम बहुत कम होता है।  

देश में मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता के विषय पर डॉ. हर्ष वर्धन ने भरोसा दिलाया कि भारत में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा रहा है और स्वास्थ्य मंत्रालय इस पर बारीकी से नजर रखे हुए है। उन्होंने याद दिलाया कि देश के ग्रामीण भागों में ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर भेज दिए गए हैं, ताकि पता चले कि लॉजिस्टिक मुद्दों  की बाधाओं को दूर किया जा रहा है।

उन्होंने ऑक्सफोर्ड अस्त्रा जेनेका वैक्सीन कैंडिडेट द्वारा भय का वातावरण बनने को गलत बताते हुए कहा कि वैक्सीन का विकास एक जटिल प्रक्रिया है। इनका परीक्षण एक स्वतंत्र अन्वेषक समिति द्वारा आगे बढ़ने की अनुमति दिए जाने के बाद फिर शुरू किया गया है। उन्होंने भारत में नैदानिक परीक्षण के अंतर्गत विभिन्न वैक्सीन के बीच अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि उनके कार्य का तंत्र भिन्न है। हालांकि प्रत्येक वैक्सीन का वांछित निष्कर्ष एक समान है, यानी नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता के साथ व्यक्तियों का स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाना।

डॉ. हर्ष वर्धन ने वर्तमान परिदृश्य में पारम्परिक चिकित्सा की भूमिका पर भी बात की। उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद –सीएसआईआर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद –आईसीएमआर ने मिलकर कोविड-19 के उपचार के लिए आयुष के विभिन्न प्रैक्टिशनरों के दावों को वैधता देने के लिए अनुसंधान प्रोटोकॉल विकसित किए हैं। हालांकि अब तक कोविड-19 के उपचार के लिए किसी विशिष्ट दवा को वैधता नहीं दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि केन्द्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन-सीडीएससीडी ने आयुष प्रैक्टिशनरों को कोविड-19 पर अनुसंधान करने और कोविड-19 के लिए आयुर्वेदिक दवाओं के विकास की दिशा में प्रमाण देने की अनुमति दी है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के नाते आयुर्वेद समेत भारत की श्रेष्ठ प्रक्रियाओं को उजागर करने के लिए अपने प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि कोविड-19 पर नियंत्रण और उसमें कमी लाने के लिए धारावी में जो कार्य किए गए हैं, वे पहले से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर है, ताकि विश्व के देश और लोग इसे देख सकें।

डॉ. हर्ष वर्धन ने ये तथ्य साझा किए कि कोविड वॉरियर्स के कुल 155 परिवारों ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत राहत का दावा किया है। इनमें 64 डॉक्टर, 32 सहायक नर्स मिड वाइव्स और बहु-उद्देशीय स्वास्थ्य कर्मी, 14 आशा कार्यकर्ता और 45 अन्य अग्रिम पंक्ति के वर्कर हैं, जिन्हें जान गंवानी पड़ी है।

डॉ. हर्ष वर्धन ने स्वीकार किया कि इस कोविड-19 के फैलाव से प्रत्येक व्यक्ति विशेष रूप से उन बुजुर्गों जोकि अधिक जोखिम के बारे में अवगत हैं, के मानसिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण असर हुआ है। संडे संवाद के दौरान उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों के मानसिक रूप से आरोग्य होने से संबंधित कई गुर साझा किए।

उन्होंने यह भी बताया कि हर्ड इम्युनिटी विकसित होने में काफी समय लगेगा, ताकि यह जनसंख्या के लगभग 70 प्रतिशत भाग को कवर कर सके। अतः भारत सरकार का फोकस प्राथमिक रूप से ऐसी एक साथ रणनीति बनाना है, जिसमें कंटेनमेंट और अस्पताल प्रबंधन शामिल हो।

कोविड के अलावा अन्य विषयों पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कई प्रश्नों के उत्तर दिए, इनमें मानव संसाधन को भारत में विज्ञान की तरफ लाने और लॉकडाउन के दौरान महसूस किए गए स्वच्छ पर्यावरण को हासिल करने की सरकारी नीति की भूमिका के प्रश्न शामिल हैं। उन्होंने याद दिलाया कि भारत प्रति वर्ष इंजीनियरिंग और विज्ञान के स्नातक तैयार करने में विश्व में पहले स्थान पर है। उन्होंने कहा कि ताजा अनुमान के अनुसार भारत में 3.42 लाख पूर्णकालिक जैसे अनुसंधानकर्ता हैं, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत युवा हैं, जो 45 वर्ष से कम आयु के हैं, 16 प्रतिशत महिलाएं (लगभग 56,000) हैं; पिछले 6 वर्षों के दौरान अनुसंधानकर्ताओं की संख्या में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई है; पिछले 6 वर्षों में ही महिला वैज्ञानिकों की संख्या दोगुना हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक नई पथ-प्रदर्शक और प्रगतिशील राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति बना रहा है, जिसका उद्देश्य न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है, बल्कि विज्ञान को अहम स्थान देना है और देश के तीव्र आर्थिक और सामाजिक विकास के विस्तार में योगदान देना है।

उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार लॉकडाउन के दौरान महसूस किए गए स्वच्छ पर्यावरण का लक्ष्य हासिल करने में सफल रहेगी। पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण में कमी लाने की कई पहल कर रहा है, जिनके फलस्वरुप हाल ही के दो-तीन वर्षों में वायु गुणवत्ता स्तर में कुछ सुधार हुआ है।


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