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योग आत्मा, मन और चेतना को जाग्रत करने वाली साधना है - प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत

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21 Jun 25
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योग आत्मा, मन और चेतना को जाग्रत करने वाली साधना है - प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत



उदयपुर जन-जन तक योग की चेतना पहुंचाने और ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ के आदर्श को स्थापित करने के उद्देश्य से राजस्थान विद्यापीठ  विश्वविद्यालय एवं भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार बीएड महाविद्यालय के सभागार में एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत, कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर, भूपाल नोबल्स संस्थान के मंत्री डॉ. महेन्द्र सिंह आगरिया, प्रबंध निदेशक डॉ. मोहब्बत सिंह रूपाखेड़ी, महंत भुवनेश्वरी पुरी, वित्त मंत्री शक्ति सिंह कारोही, संयुक्त मंत्री राजेन्द्र सिंह ताणा, प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. भूपेन्द्र सिंह चौहान ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पाजली एवं दीप प्रज्जवलित कर किया।
आयोजन सचिव डॉ. रोहित कुमावत ने बताया कि राष्ट्रीय संगोष्ठी में 180 से अधिक ऑफ लाईन व 250 प्रतिभागियों ने ऑन लाईन शिरकत की,  समारोह में रंजना राणा ने संगीत की धुन पर योग की विभिन्न मुद्राओं  को प्रदर्शित कर सभी को मंत्रमूग्ध कर दिया।

संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कुलगुरु प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने योग को केवल शरीर की क्रिया न मानकर आत्मा, मन और चेतना को जागृत करने वाली आध्यात्मिक साधना बताया। उन्होंने श्रीराम-हनुमान संवाद और श्रीमद्भगवद्गीता के श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि योग व्यक्ति को सांसारिक मोह से ऊपर उठाकर अनुशासन, संतुलन और आध्यात्मिक प्रगति की ओर अग्रसर करता है। प्रो. सारंगदेवोत ने योग को पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के साथ संतुलन स्थापित करने वाली प्रक्रिया बताया और कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में योग सामाजिक, पर्यावरणीय और व्यावसायिक संबंधों में भी संतुलन का माध्यम है।

योग संपूर्ण जीवनशैली हैः महंत भुवनेश्वरी पुरी

मुख्य वक्ता महंत श्री भुवनेश्वरी पुरी ने योग के संपूर्ण जीवन पर प्रभाव की विवेचना करते हुए कहा कि योग केवल शरीर और मन की शुद्धि का मार्ग नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और चरित्र निर्माण की भी सशक्त विधा है। उन्होंने संतुलित आहार, नियमित दिनचर्या और योगाभ्यास को आवश्यक बताते हुए आधुनिक व्यायाम पद्धतियों के त्वरित लेकिन दुष्प्रभावी प्रभावों को लेकर भी आगाह किया।

योग विवेक और आत्मचिंतन की शक्ति है - डॉ. महेन्द्र सिंह अगरिया

बीएन संस्थान के सचिव डॉ. महेन्द्र सिंह अगरिया ने योग को विवेक जागरण और आत्मचिंतन की शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि योग जीवन को साक्षी दृष्टि से देखने का अभ्यास देता है और संस्कारों से उपजे विचारों को परिष्कृत करता है। हमारे विचारों में सत्गुरू जरूरी है। उन्होंने कहा कि रावण महाज्ञानी था, उसने  अपने सीमा का हरण कर अपने मोक्ष का रास्ता चुना।

योग को वंचितों तक पहुंचाने की जरूरत - कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर

अध्यक्षा करते हुए कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने अपने संबोधन में योग को केवल विशेष वर्ग तक सीमित न रखते हुए वंचित और दूरस्थ समाज तक पहुंचाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि योग को जन-जन की साधना बनाना आज की आवश्यकता है।

प्रारंभ में डॉ. भूपेन्द्र सिंह चौहान ने अतिथियों का स्वागत करते हुए एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की जानकारी दी।

संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार प्राचार्य डॉ. सरोज गर्ग ने जताया।

इस अवसर पर डॉ. सरोज गर्ग, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. युवराज सिंह बेमला, डॉ. भवानीपाल सिंह राठौड़, डॉ. अमिया गोस्वामी, अमी राठौड़, डॉ.  रोहित कुमावत, डॉ. हितेशचंद रावल, डॉ. ममता कुमावत, डॉ. सुभाष पुरोहित, डॉ. शांतिलाल, डॉ. अनिता राजपुत, डॉ. प्रिती कच्छावा, डॉ. मनीष पालीवाल सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर उपस्थित थे।


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