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संस्कृत शिविर में जाग रही भाषा की चेतना: संभाषण, श्लोक, क्रीड़ा और संस्कृति का हो रहा संगम

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11 Jun 25
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संस्कृत शिविर में जाग रही भाषा की चेतना: संभाषण, श्लोक, क्रीड़ा और संस्कृति का हो रहा संगम

— संस्कृत भारती की अभिनव पहल, खेल—खेल में संस्कृत बोलना सीख रहे विद्यार्थी

— जागरण से लेकर रात्रिकालीन प्रदर्शन तक, प्रतिदिन के विविध सत्रों में संस्कृत का संजीव अभ्यास

 

उदयपुर, 10 जून। संस्कृत भाषा केवल एक प्राचीन विरासत नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति की जीवंत आत्मा है। इसी को सजीव बनाने के लिए संस्कृत भारती की ओर से उदयपुर के रेती स्टैंड स्थित किसान भवन में चलाया जा रहा सात दिवसीय आवासीय संस्कृत संभाषण शिविर इन दिनों विशेष आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। 

 

इस शिविर में प्रतिभागी बच्चों और युवाओं को खेल—खेल में संस्कृत बोलना, लिखना, पढ़ना और शुद्ध उच्चारण में श्लोक पाठ करना सिखाया जा रहा है। यह शिविर न केवल एक भाषा शिक्षण का माध्यम है, बल्कि भारतीय संस्कृति, ज्ञान परंपरा और वैदिक दृष्टिकोण को पुनर्जीवित करने का एक समर्पित प्रयास भी है।

वर्ग शिक्षक श्रीयांश कंसारा ने बताया कि शिविर की दिनचर्या अनुशासन और आध्यात्मिकता का समन्वय है। दिनचर्या अत्यंत अनुशासित व संस्कारमय है। प्रातः 4:45 बजे जागरण के साथ दिन का शुभारंभ होता है, जिसके बाद 6:30 बजे “प्रातः स्मरण सत्र” प्रारंभ होता है। इसमें एकात्मता स्तोत्र के माध्यम से समष्टिगत चेतना का जागरण कराया जाता है।

 भाषा क्रीडा(खेल) सत्र में आज  ॐकार  क्रीडा , अमरनाथ यात्रा क्रीडा , पद अन्वेषण क्रीडा खेल खेल में संस्कृत माध्यम से करवाई गई।  

 

इसके पश्चात शिक्षण सत्र में विभिन्न शब्दों के पुल्लिंग व स्त्रीलिंग रूपों के अभ्यास के साथ लोट् लकार का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इस सत्र में पंचांग कथन की परंपरा को भी आत्मसात कराया जा रहा है, जिससे विद्यार्थी वैदिक समयबोध और खगोलीय व्यवस्था से परिचित हो सकें। मंगलवार को भक्त शब्द का प्रयोग किया गया। 

 

शिक्षण व्यवस्था प्रमुख मानाराम चौधरी ने बताया किगलवा को द्वितीय सत्र सरस्वती वंदना, वर्ग गीत व धन मंत्र के अभ्यास का रहा। इसके पश्चात तृतीय सत्र में संभाषण (वार्तालाप) अभ्यास कराया गया। चतुर्थ सत्र में विभक्ति पठन कराया गया। विशेष रूप से चतुर्थी और पंचमी विभक्तियों का अभ्यास कराकर उनका प्रयोग सिखाया गया। पंचम सत्र में पत्रकों के माध्यम से विभक्तियों का व्यावहारिक उपयोग समझाया गया और पुनः एक संभाषण कक्षा का अभ्यास करवाया गया।

 

शिविर में भाषा क्रीड़ा एक अभिनव प्रयोग बनकर उभरी है। मंगलवार के क्रीड़ा सत्र में “ॐकार क्रीड़ा”, “अमरनाथ यात्रा क्रीड़ा”, “पद अन्वेषण क्रीड़ा” जैसी रोचक गतिविधियां कराई गईं। इन गतिविधियों से बच्चे संस्कृत में सहजता से खेल खेल में संस्कृत संवाद सीख रहे है।

 

अंतिम चरण में चर्चा सत्र हुआ, जिसमें संस्कृत के महत्व, उपयोगिता और उसके प्रचार—प्रसार के उपायों पर विचार हुआ। युवाओं को यह बोध कराया गया कि संस्कृत कोई मृतभाषा नहीं, बल्कि यह भारतीय ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, गणित, साहित्य और संस्कारों की जड़ है।

 

उल्लेखनीय है कि प्रतिदिन रात्रिकालीन सत्र में प्रतिभागी अपने पूरे दिन के अभ्यास का अनौपचारिक प्रदर्शन करते हैं, जिससे उनमें आत्मविश्वास और सार्वजनिक प्रस्तुति की क्षमता विकसित हो रही है।

 

मंगलवार को शिविर का अवलोकन करने आए शहर के गणमान्य अतिथियों ने कहा कि यह संस्कृत शिविर केवल भाषा शिक्षण नहीं, अपितु राष्ट्र निर्माण की सांस्कृतिक प्रयोगशाला बन गया है। संस्कृत भारती की यह पहल भारतीय आत्मा की पुनर्स्थापना की ओर एक मूक, परन्तु सशक्त कदम है। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, संस्कार है, विचार है और भारत की आत्मा है। संभाषण से संस्कार तक, शिविर में "संस्कृतं जीवतु सर्वत्र" की चेतना गूंज रही है।

इस अवसर पर संस्कृत भारती के डॉ यज्ञ आमेटा, मानाराम चौधरी, श्रेयांश कंसारा, डॉ रेनू पालीवाल, नरेंद्र शर्मा, चैनशकर दशोरा, दुष्यंत नागदा, मंगल कुमार जैन, कुलदीप जोशी, विकास डांगी, मेहरान , जय, सोनल , नीलू डांगी आदि का प्रमुख योगदान रहा।


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