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प्राकृत एवं जैन विद्या पर संगोष्ठी एवं प्रोत्साहन समारोह सम्पन्न

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24 Oct 21
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प्राकृत एवं जैन विद्या पर संगोष्ठी एवं प्रोत्साहन समारोह सम्पन्न

 

प्राकृत भवन एवं पाण्डुलिपि संग्रहालय प्राकृत अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा-कुलपति प्रो. अमेरिका सिंह

जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित प्राकृत संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता प्रो. अमेरिका सिंह, कुलपति मोहनलाल सुखाड़िया विश्विद्यालय ने की। उद्घाटन सत्र में उन्होंने कहां की एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस विकसित किया जाएगा जिसको प्राकृत भाषा व जैन विद्या से जोड़ा जाएगा तथा जैन भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाएगा तथा 30000 स्क्वायर फिट की जमीन पर नए परिसर का निर्माण कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी व जैन समाज के भामाशाहो के सहयोग से किया जाएगा! इस सेंटर में पुस्तकालय, पांडुलिपियों का संग्रह, वर्चुअल क्लासरूम तथा आवश्यक तकनीक साधनों से सुसज्जित किया जाएगा! कुलपति ने कहा कि जल्द ही भूमि पूजन कर इसकी आधारशिला जैन समाज के गणमान्य व्यक्तियों के साथ की जाएगी! प्राकृत के उन्नयन एवं विकास के लिए विश्वविद्यालय द्वारा सहयोग किये जाने का आश्वासन दिया और कहा कि विभाग कुछ नए पाठ्यक्रमों के निर्माण करें एवं समाज के सहयोग प्राप्त करने के लिए तत्पर रहे। उन्होंने विभाग की अकादमिक गतिविधियों और समाज के सौहार्दपूर्ण कार्यक्रम को देखकर सराहना की कि जैन समाज एक समर्थ समाज है और विभाग के उत्थान के लिए उन्हें आगे आना चाहिए। विभाग में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्होंने भरपूर सहयोग करने का आश्वासन दिया। विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. पी एस राजपूत ने बताया कि कुलपति महोदय का नागरिक अभिनंदन किया गया और उन्हें जैन समाज ने मेवाड विद्या अलंकरण से विभूषित किया गया! कुलपति जी द्वारा प्राकृत भवन और पांडुलिपि संग्रहालय केंद्र की स्थापना के लिए समाज द्वारा मांगी गई जमीन को स्वीकृत किया और विश्वविद्यालय में इसका एक स्वतंत्र भवन बनाने की सहर्ष अनुमोदना की। विश्वविद्यालय के साथ-साथ अधीनस्थ अन्य महाविद्यालयों में भी प्राकृत विभाग खुलवाने के प्रयत्न किए जाने और प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन का क्रम निरंतर चलाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने प्राकृत विषय की महत्ता और उसमें अंतर्निहित मूल्यों की सराहना करते हुए यह कहा कि भाषा का ज्ञान हर एक विद्यार्थी को होना चाहिए ताकि वह भारतीय संस्कृति, साहित्य से परिचित होकर अपनी साधना कर सके। विभाग के उन्नयन हेतु उन्होंने पुनः अपनी बात को दोहराते हुए प्रशासनिक सहयोग और समर्थन का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान करते हुए बालयोगी गुरुगौरव मुनि अमितसागर महाराज ने भाषा और शब्द की व्याख्या करते हुए उसके वैज्ञानिक स्वरूप की चर्चा की। मुनि श्री ने शब्द की पौद्गलिकता और उसके अर्थ गाम्भीर्य पर विचार करते हुए कहा कि शब्द की अपनी महिमा है, विज्ञान भले ही पूर्व वर्णित सिद्धांतों को वैज्ञानिक दृष्टि से प्रयोग करते हुए उसकी व्याख्या करता है लेकिन जैनचार्यों ने उसे आज से 2000 वर्ष पूर्व ही सिद्ध कर दिया था। प्राकृत भाषा के महत्त्व को बताते हुए मुनि श्री ने पूर्व जैनाचार्यों के उपकार को स्वीकार किया और इस साहित्य को भारतीय संस्कृति की सांस्कृतिक धरोहर स्वीकार किया। मुनि जी ने बहुत ही सरल शब्दों में विज्ञान को परिभाषित किया तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्वता को समझाया! 
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय प्राकृत स्कालर्स सोसायटी के अध्यक्ष प्रो. प्रेमसुमन जैन ने प्राकृत को जन सामान्य की भाषा बताते हुए सभी भाषाओं से उसके संबंध को सिद्ध किया। दैनिक व्यवहार में काम मे आने वाले शब्दों का प्रयोग करते हुए राजस्थानी, मराठी, हिंदी और अन्य प्रदेश की भाषाओं के साथ उसके संबंध को स्वीकार किया। संस्कृत और प्राकृत ये हमारे भारतीय जनमानस की मूल में प्रयुक्त भाषायें हैं और प्राकृत का संबंध सहज, स्वाभाविक और प्रकृतिजन्य उपादानों के साथ सिद्ध करते हुए कहा कि यह भाषा समाज, पंथ अथवा सम्प्रदाय से बंधी हुई नहीं है। यही कारण है कि अन्यान्य जैनेतर कवियों ने भी इस भाषा का प्रयोग साहित्य सृजन में किया। 
संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा ने भी कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने भाषा की अस्मिता और संबंधों पर प्रकाश डाला और कहा कि प्राच्य विद्याओं का अध्ययन करने वाला सदैव ज्ञान गरिमा से समृद्ध रहता है।
सारस्वत अतिथि के रूप में प्रो. अंजू कोहली ने भाषा के संबंध और उसकी प्राचीनता पर प्रकाश डाला और प्रत्येक विषय के साथ उसकी महत्ता को स्वीकार किया। डॉ. उदयचंद जैन, पूर्व अध्यक्ष जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग ने अपने विचारों में प्राकृत की सरलता और स्वाभाविकता को उजागर किया और कहा कि यह भाषा हर प्राणी से जुड़ी हुई भाषा है। प्रत्येक व्यक्ति इस भाषा को सीखकर अपना जीवन सफल बना सकता है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में डा.ज्योतिबाबू जैन ने स्वागत व्यक्तव्य प्रदान करते हुए विश्वविद्यालय में किये जा रहे माननीय कुलपति महोदय के नवाचारों को उजागर किया और उनकी सरल अभिव्यक्ति की प्रशंसा की। 
विभाग के अध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन ने विभाग की अकादमिक और शोधपरक प्रवृत्तियों के साथ अध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्तयों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विभाग में अध्ययनरत बी. ए, एम. ए. के विद्यार्थीयों और शोधार्थियों का सम्मान समाज के प्रतिनिधियों द्वारा किया गया। इसी प्रकार समागत समस्त अतिथियों और शोध उपाधि प्राप्त स्नातकों का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम के बीच में सकल जैन समाज के अध्यक्ष श्री शांतिलाल जी वेलावत ने कुलपति प्रो. सिंह के समक्ष प्राकृत विभाग एवं पांडुलिपि संग्रहालय केंद्र के निर्माण के दायित्व वहन करने का संकल्प रखा जिसे कुलपति महोदय ने अपनी सहर्ष सहमति प्रदान की। कार्यक्रम के संयोजक डॉ.राजेश जैन ने समस्त कार्यक्रम को अकादमिक दृष्टि से संयोजित कर मुनिश्री के शुभाशीष की कामना की।


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