GMCH STORIES

जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए सूक्ष्मजीवों का अहम योगदान - डॉ. राठौड़

( Read 6936 Times)

07 Jul 21
Share |
Print This Page
जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए सूक्ष्मजीवों का अहम योगदान - डॉ. राठौड़

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विष्वविद्यालय के आणविक जीवविज्ञान एवं जैवप्रौद्योगिकी विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय उदयपुर द्वारा टिकाऊ कृषि और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सूक्ष्मजीव तकनीकों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 07 जुलाई 2021 को किया गया। इस वेबिनार में देश के लगभग 2300 वरिष्ठ वैज्ञानिकों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ता एवं विद्यार्थियों ने सक्रिय भाग लिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. नरेन्द्रसिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि हमारी भूमि में हो रही सूक्ष्मजीवों की कमी को दूर करने लिए भूमि में सूक्ष्मजीवों की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। साथ ही कार्बन की मात्रा को भी बढ़ाने की आवष्यकता पर जो दिया। ग्रीन हाऊस गैसों की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन को कम किन प्रौद्योगिकियों को अपनाकर कम किया जाना चाहिए। ग्रीन हाऊस गैसों को कम करने के लिए हमें बायोगैस प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए। ताकि अपशिष्टों से उत्पन्न होने वाली इन गैसों की वजह से होने वाली जलवायु परिवर्तन को रोका जा सके। सूक्ष्मजीव के कारण हमारी कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। सूक्ष्मजीव, कार्बन तथा नाइट्रोजन चक्र को भी प्रभावित करते हैं।                              
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एवं विख्यात वैज्ञानिक डॉ. टी के अध्या, भूतपूर्व निदेशक, आई.सी.ए.आर-एन.आर.आर.आइ.र्, कटक ने सूक्ष्मजीव एवं जलवायु परिवर्तन पर व्याख्यान दिया। पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन की वजह से सभी प्रकार की गतिविधियां प्रभावित होती है। सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर होने वाली गतिविधियों को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सूक्ष्मजीव ही भूमि को जैव कार्बन प्रदान करते हैं। साथ प्रकाष संष्लेषण की क्रिया के दौरान पानी को अपघटित कर वातावरण को ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण कनाड़ा एवं कोलम्बिया में बढ़ रहे तापमान के बारे में भी जानकारी प्रदान की।
कार्यक्रम में दूसरे मुख्य वक्ता एवं विख्यात वैज्ञानिक डॉ. संतोष आर. मोहंती, परियोजना समन्वयक, ए.आई.एन.पी., एस.एस.बी., आई.सी.ए.आर-आई,आई.एस.एस., भोपाल ने मृदा सूक्ष्मजीव संसाधनः कृषि और जलवायु परिवर्तन में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्थिति और रणनीतियाँ पर अपना व्याख्यान दिया। भूमि में पाए जाने वाले विभिन्न सूक्ष्मजीवों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मृदा जैव विविधता पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है। डॉ. मोहंती ने सूक्ष्मजीवों पर आधारित जैवउर्वरकों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। साथ ही इसके व्यवसायीकरण की संभावनाओं को भी बताया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. शान्ति कुमार शर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए ने बताया कि 21वीं शताब्दी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 2 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है।  उन्होंने बताया कि एक ग्राम मिट्टी में 1 लाख से 10 करोड़ तक जीवाणु होते हैं जिनके माध्यम से कार्बन डाई ऑक्साईड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साईड गैस को मृदा से बाहर विसर्जन होने से रोका जा सकता है अतः टिकाऊ खेती के लिए खेती में सूक्ष्मजीवों का उपयोग बढ़ाना होगा।

डॉ. देवेन्द्र जैन, कार्यक्रम सचिव ने बताया कि वेबिनार के समन्वयक डॉ दिलीप सिंह अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय; डॉ वीरेंद्र नेपालिया विशेषाधिकारी, एमपीयूएटी; सह समन्वयक डॉ रेखा व्यास, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डॉ अरविंद वमा,र् सह निदेशक अनुसंधान; डॉ. अरुणाभ जोशी, विभागाध्यक्ष एमबीबीटी, आरसीए तथा सह समन्वयक डॉ एस के खंडेलवाल, डॉ विनोद सहारण डॉ राम हरी मीणा तथा डॉ रमेश बाबू आदि का वेबीनार के आयोजन में सराहनीय योगदान रहा। वेबीनार के आयोजन में छात्र अनुसंधानकर्ता पीयूष चौधरी, दमयंती प्रजापति एवं सुमन महावर का भी सहयोग उल्लेखनीय रहा।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. वीरेन्द्र नेपालिया, विषेषाधिकारी, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने किया। कार्यक्रम के सचिव एवं सहायक प्राध्यापक डॉ. देवेन्द्र जैन ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद की रस्म अदा की।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Education News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like