निम्बाहेड़ा। इस संसार रूपी भवसागर से पार पाने के लिए मनुष्य को काया से नहीं अन्र्तमन से प्रेम करना चाहिए। इस संसारिक जीवन में मनुष्य देह से प्रेम करता है, जबकि ईश्वर से मिलन के लिए आत्मा में प्रेम का होना अतिआवश्यक है। उक्त विचार शनिवार को नगर के आमलिया बावजी मार्ग पर पार्वती देवी पत्नी स्व. मदनलाल सोनी परिवार की ओर आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठे दिन कथा वाचक संत नारायण प्रसाद ओझा ने व्यक्त किए।
संत ओझा ने श्रीमद भागवत कथा का वाचन करते हुए कहा कि कथा सुनने से मन में प्रेम प्रकट हो जाए तो कथा सार्थक होती है और फिर भी ह्रदय में प्रेम जागृत नहीं हो तो श्रीकृष्ण के वृंदावन की यात्रा करनी चाहिए। संत ओझा ने कहा कि इसके साथ ही मन में प्रेम की बढ़ोत्तरी करने के लिए ईश्वर के बनाई प्राकृतिक वस्तुओं में रूचि बढ़ाने से भी मन को शांति मिलने के साथ ही दिव्य दृष्टि का ज्ञान होता है। कथा के दौरान संत ओझा द्वारा मधुर भजनों के गीतों पर पाण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु महिला और पुरूष सहित बच्चों ने भी जमकर आनन्द लिया।
संत नारायण प्रसाद ओझा ने श्रीकृष्ण की बाल लिलाओं के साथ ही महारास, श्रीकृष्ण के वृंदावन से विदाई एवं कंस वध की भाव विभोर करने वाली मार्मिक वृतांत सुनाए। कथा के दौरान शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण एवं रूक्मणी के विवाह की जीवंत झांकी के दर्शन कर उपस्थित महिलाऐं एवं पुरूष भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे।
इस अवसर पर कथा आयोजक परिवार के सदस्यों योगेन्द्र कुमार, गोपालकृष्ण, सत्यनारायण, रामकृष्ण, भारत कुमार, महेश कुमार, मृणाल एवं मरेण्डिया सोनी परिवार सहित पाण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं ने श्रीकृष्ण एवं रूक्मणी के विवाह के दौरान पूजा अर्चना कर आर्शीवाद लिया। कथा के अंत में महाआरती के पश्चात प्रसाद वितरण किया गया।
कथा आयोजक पार्वती बाई सोनी ने बताया कि श्रीमद भागवत कथा आयोजन के सातवे एवं अंतिम दिन शनिवार को प्रातरू 8 बजे हवन किया जाएगा, जिसके पश्चात दोपहर 1 बजे से कथा का वाचन किया जाएगा। जिसमें सुदामा चरित्र के साथ ही कथा की पूर्णाहूति होगी।