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लघुचित्र परंपरा और संस्कृत साहित्य का मणिकांचन संयोग अनुपम - डॉ. अय्यर

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23 Jun 25
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लघुचित्र परंपरा और संस्कृत साहित्य का मणिकांचन संयोग अनुपम - डॉ. अय्यर


उदयपुर,  मेवाड़ की लघुचित्र परंपरा और शास्त्रीय संस्कृत साहित्य का मणिकांचन संयोग भारतीय कला परंपरा का अनुपम उदाहरण है।

यह बात प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ के तत्वावधान में आयोजित हल्दीघाटी विजय सार्द्ध चतुः शती समारोह के प्रथम सोपान के तहत रविवार को मेवाड़ लघु चित्र कार्यशाला में “मेवाड़ की कूंची एवं कालिदास की कलम” विषयक विमर्श में उभर कर आई।

प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर के सहयोग से चल रही कार्यशाला में मुख्य वक्ता डॉ. श्रीनिवासन अय्यर ने महाकवि कालिदास की रचनाओं द्वारा कला को मिले प्रेरणास्त्रोतों पर चर्चा करते हुए कहा कि संस्कृत साहित्य ने लघुचित्र कला को विषय, संवेदना और बिंबों की समृद्धि प्रदान की है। कालिदास की कृतियों ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय चित्रकला की कल्पना और रंग योजना को भी नई दृष्टि दी है।

उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक लघुचित्र – जो प्रकृति, प्रेम, नारी गरिमा और सांस्कृतिक विरासत की गहराई को समेटे होते हैं – आज की समसामयिक कला की अपेक्षा विदेशों में अधिक सराहे जा रहे हैं। यह कला विधा भारतीय सांस्कृतिक गौरव और सौंदर्यबोध की एक विशिष्ट पहचान है।

कार्यशाला संयोजक प्रो. रामसिंह भाटी ने कार्यशाला के उद्देश्य और कलाकारों की रचनात्मक प्रक्रियाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में भाग ले रहे चित्रकार मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा, ऐतिहासिक प्रसंगों और संस्कृति को अपने ब्रश के माध्यम से साकार कर रहे हैं।

चित्रकार मनदीप शर्मा ने महाराणा प्रताप और उनके भ्राता शक्ति सिंह के ऐतिहासिक मिलन को चित्रित किया, जिसमें युद्ध के लिए सदैव तत्पर रहने की भावना झलकती है। जगदीश यादव ने मेवाड़ में नारी सम्मान और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को केन्द्र में रखकर चित्र बनाया। ललित सोनी ने मेघ राग और महाराणा राज सिंह का संयोजन प्रस्तुत किया, जिसमें वर्षा, मेघों और राजसी गरिमा का दृश्य है। श्याम सुंदर शर्मा ने चावंड में हुए महाराणा प्रताप के राजतिलक का जीवंत अंकन किया। गोविंद बल्लभ शर्मा ने भामाशाह द्वारा महाराणा प्रताप को धन समर्पण करते हुए भावपूर्ण दृश्य को रंगों में पिरोया। पुष्कर लोहार ने दिवेर विजय के पश्चात महाराणा प्रताप के कुंभलगढ़ प्रस्थान को उकेरा। डॉ. शंकर शर्मा ने महाराणा प्रताप को भगवान शिव की आराधना करते हुए चित्रित किया। युगल किशोर शर्मा ने महाराणा राज सिंह द्वारा श्रीनाथजी के स्वागत का मनोहारी दृश्य तैयार किया।


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