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“हमें युवावर्ग को आर्यसमाज में बुलाकर उनके प्रश्नों व जिज्ञासाओं का समाधान करना चाहियेः आचार्य आशीष दर्शनाचार्य”

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18 May 22
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-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“हमें युवावर्ग को आर्यसमाज में बुलाकर उनके प्रश्नों व जिज्ञासाओं का समाधान करना चाहियेः आचार्य आशीष दर्शनाचार्य”

     वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव के दिनांक 15-5-2022 को सम्पन्न हुए समापन समारोह में प्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी सहित अनेक विद्वानों के व्याख्यान हुए। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने अपने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि जब हिन्दू सोता है तो आर्यसमाज बचाता है। प्रश्न यह है कि जब आर्यसमाज सो जाये तो उसे कौन बचाये। 

    आचार्य आशीष जी ने वैदिक साधन आश्रम तपोवन के अधिकारियों की उत्सव को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए प्रशंसा की। आचार्य जी ने कहा कि वह ऐसे आर्यसमाजों के प्रधानों के बच्चों को जानते हैं जिनके बच्चे आर्यसमाज को छोड़कर आर्यसमाज की विपरीत विचारधारावाली दूसरी संस्थाओं मे चले गये हैं। उन्होंने पूछा कि यदि इस विषय पर हम अपना आत्म निरीक्षण कर लें तो गलत तो नहीं हो जायेगा? इस विषय पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की तथा अपने विचार प्रस्तुत किये। आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज बचेगा तो हिन्दू बचेगा। आचार्य जी ने आर्यसमाज के सदस्यों की संख्या में वृद्धि पर अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि हमें अपने मन के कम्फर्ट जोन से बाहर आकर प्रचार करना होगा। आचार्य जी ने कहा कि पांच दिवस का आयोजन कोई छोटा आयोजन नहीं होता है। उन्होंने श्रोताओं से पूछा कि क्या आर्यसमाज को अपडेट किये जाने की जरूरत है? आचार्य जी ने यह भी कहा कि आर्यसमाज के कार्यक्रम भीड़ इकट्ठी करने पर केन्द्रित न होकर आउटपुट पर केन्द्रित होने चाहिये। उन्होंने कहा कि जब तक हम स्वयं को अपडेट नहीं करेंगे, हम कहीं खड़े नहीं हो सकेंगे। आचार्य जी ने अपनी बात को समाप्त करते हुए कहा कि हमें युवावर्ग को आर्यसमाज में बुलाकर उनके प्रश्नों व जिज्ञासाओं का समाधान करना चाहिये। 

    समापन समारोह में प्राकृतिक चिकित्सक स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। स्वामी जी ने कहा कि आर्यसमाज का एक नियम है संसार का उपकार करना। पूरा नियम है संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् सबकी शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। उन्होंने कहा कि हम अपनी शारीरिक उन्नति करने में ही फेल हैं। जब तक शारीरिक उन्नति नहीं होगी तब तक हमारी आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति भी नहीं हो सकती। स्वामी जी ने श्रोताओं को भूमि खोदकर अग्निहोत्र करने का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि मिट्टी का यज्ञकुण्ड बनाकर यज्ञ करने से विशेष लाभ होगा। स्वामी जी ने प्लास्टिक की बोतल का पानी पीने से होने वाली हानियों पर भी अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक की बोतलों में जो ओषधियां या मेडिसिन्स मिलती हैं, वह प्लास्टिक के सम्पर्क में होने के कारण अधिक लाभदायक नहीं होती। प्लास्टिक के सम्पर्क में होने के कारण उनसे होने वाले लाभों में न्यूनता आती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने सन् 1989 में अपना घर छोड़ा था। स्वामी जी ने कहा कि हमें अपने शरीर को घूप भी देनी चाहिये। इससे शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है। विटामिन डी की कमी से मनुष्य रोगी होते हैं। स्वामी जी जलनेति करने को कहा और इससे होने वाले लाभों को बताया। उन्होंने कहा कि नियमित जलनेति करने से अनेक शारीरिक रोग ठीक होते हैं। मनुष्य यदि प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता है तो उसे कोई बीमारी नही होगी। अपने विचारों को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि बीमार होकर डाक्टरों को पैसा देने के स्थान पर प्राकृतिक जीवन जीकर स्वस्थ बने रहे। 

    स्वामी जी के व्याख्यान के बाद आर्यजगत के प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री कुलदीप आर्य जी ने एक बहुत प्रेरक भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘उठो दयानन्द के सिपाहियें समय पुकार रहा है, देशद्रोह का विषधर फैला फन फुफकार रहा है।’ यह भजन बहुत सुन्दर व मधुर गाया गया। इसे सुनकर श्रोता मन्त्रमुग्ध हो गये। यह भी बता दें कि कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अनिल आर्य जी ने बहुत ही उत्तमता से किया।

    कार्यक्रम में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रोफेसर डा. रूपकिशोर शास्त्री जी भी पधारे थे। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि लगभग 2500 वर्षों तक देश गुलाम रहा। मुगलों से पूर्व भी आततायी भारत की ओर आते रहे। महर्षि दयानन्द के आगमन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के पूर्ववर्ती और समकालीन लोगों ने देश की अस्मिता या स्वराज्य की बातें नहीं कीं। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने जो कार्य किया, वह महत्वपूर्ण है। डा. रूपकिशोर शास्त्री जी ने कहा कि देश को आजाद कराने में ऋषि दयानन्द जी की महत्वपूर्ण भूमिका है। ऋषि दयानन्द ने देशवासियों में स्वत्व जगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। दयानन्द जी ने देश की आजादी में मूलभूत योगदान किया। शास्त्री जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने देश सुधार का कार्य वेदों के आधार पर किया। ऋषि दयानन्द ने वेदों के आधार जो-जो कार्य किये, वैसे कार्य वेद के आधार पर किसी अन्य ने नहीं किये। कुलपति महोदय ने श्रोताओं को ऋषि दयानन्द रचित ‘स्वमन्तव्यामन्तव्य-प्रकाश’ पुस्तक को पढ़ने की प्रेरणा की। इसी के साथ उनका सम्बोधन समाप्त हुआ। इसके बाद आश्रम के अधिकारियों की ओर श्री डा. रूपकिशोर शास्त्री जी का शाल, ओ३म् पटके एवं माला सहित ऋषि दयानन्द जी का एक चित्र भेंट देकर सम्मानित किया गया। 

    आश्रम के उत्सव में द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, देहरादून की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी भी पधारी थी। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि वैदिक शिक्षा में मनुष्य की सब समस्याओं का समाधान है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का निष्कर्ष ‘मनुर्भव’ है। मनुष्य को ज्ञान होगा तो वह अच्छे काम कर सकता है। आचार्या जी ने कहा कि ज्ञान की पराकाष्ठा वैराग्य है। परमात्मा को भी हम ज्ञान से ही प्राप्त कर सकते हैं। आचार्या जी ने बताया कि अग्निहोत्र यज्ञ से विश्व का कल्याण होता है। उन्होंने कहा कि हम ईश्वर को कभी नहीं भूलेंगे। ईश्वर एक है जो ब्रह्माण्ड का पति वा स्वामी है। डा. आचार्य अन्नपूर्णा जी के बाद डीएवी महाविद्यालय की आचार्या प्रोफेसर डा. सुखदा सोलंकी जी का सम्बोधन हुआ। डा. सुखदा जी ने अपने सम्बोधन में कुछ प्रेरक प्रसंग सुनाये जिन्हें श्रोताओं ने पसन्द किया। डा. सुखदा जी के बाद आर्य विद्वान श्री अनूप सिंह जी की धर्मपत्नी श्रीमती इन्दुबाला जी का सम्बोधन हुआ। अपने सम्बोधन में श्रीमती इन्दुबाला जी ने कहा कि हम आर्य बनेंगे तभी संसार को आर्य बना सकेंगे। उन्होंने स्वयं को आर्य बनाने की प्रेरणा की। 

    समारोह में आर्य नेता श्री गोविन्द सिंह भण्डारी, श्री विश्वपाल जयन्त, पद्मश्री डा. बीकेएस संजय आदि विद्वानों के सम्बोधन भी हुए। श्री प्रवीण आर्य, श्री राजकुमार भण्डारी, श्री रूवेलसिंह आर्य, श्री रमेशचन्द्र स्नेही सहित द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की कन्याओं ने भजन, गीत तथा मंगलाचरण प्रस्तुत किये। समारोह में ऋग्वेद पर काव्यार्थ कर रहे विद्वान कवि वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी के ऋग्वेद काव्यार्थ के प्रथम दशांश का लोकार्पण भी किया गया। श्री सौरभ आर्य ने ऋग्वेद काव्यार्थ के प्रथम दशांश का परिचय दिया। डा. वागीश आर्य सहित डा. रूपकिशोर शास्त्री जी आदि विद्वानों ने पुस्तक का लोकार्पण किया। श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी ने भी समापन समारोह को सम्बोधित किया। वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव हर प्रकार से सफल रहा। सभी कार्यक्रमों में ऋषिभक्तों की अच्छी संख्या में उपस्थिति रही। इस वर्ष अपेक्षा से अधिक ऋषिभक्त आयोजन में पहुंचे जिससे अधिकारियों को उनकी सेवा व सत्कार करने का अवसर मिला। केन्द्रिय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अनिल आर्य जी और श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कार्यक्रम का बहुत ही योग्यतापूर्वक संचालन किया। लोग अगले उत्सव में आने का विचार लेकर काय्रक्रम के समापन के बाद अपने-अपने निवास स्थानों की ओर विदा हो गये। इस भव्य एवं सुविधापूर्ण आयोजन के लिए आश्रम के प्रधान, मंत्री जी और सदस्यों का धन्यवाद है। ओ३म् शम्। 
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121 


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