GMCH STORIES

“स्वामी श्रद्धानन्द के जन्मना जाति व्यवस्था पर उपयोगी विचार”

( Read 12141 Times)

31 Mar 21
Share |
Print This Page

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“स्वामी श्रद्धानन्द के जन्मना जाति व्यवस्था पर उपयोगी विचार”

ओ३म्
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
    स्वामी श्रद्धानन्द महर्षि दयानन्द के अनुयायी, आर्य समाज के नेता, प्राचीन वैदिक शिक्षा गुरूकुल प्रणाली के पुनरुद्धारक, स्वतन्त्रता संग्राम के अजेय सेनानी तथा अखिल भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा के प्रधान थे। हिन्दू जाति को संगठित एवं शक्तिशाली बनाने के लिए आपने एक पुस्तक ‘हिन्दू संगठन - क्यों और कैसे?’ का प्रणयन किया था। यह पुस्तक प्रथववार सन् 1924 में प्रकाशित हुई थी जिसका नवीन संस्करण वर्ष 2015 में प्रकाशित किया गया है। हिन्दी में लिखित इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करते हुए हमें पुस्तक के एक स्थान पर जन्मना जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था पर उनके विचार आज भी प्रासंगिक एवं अपरिहार्य प्रतीत हुए, अतः इन्हें प्रस्तुत कर रहे हैं। हम हिन्दू समाज के अन्तर्गत आने वाले सभी बन्धुओं से अपेक्षा करते हैं कि वह स्वामी श्रद्धानन्द जी के विचारों को एक बार अवश्य पढ़ने का कष्ट करें जिससे हिन्दू जाति में विद्यमान वा प्रविष्ट रोगों का ज्ञान व उसका उपचार जानकर तथा उस उपचार का भली प्रकार से सेवन कर कराकर हिन्दू जाति के समग्र शरीर को निरोग व बलशाली बनाने के साथ उसे विनाश से बचाकर चिरस्थाई रूप दिया जा सके। 

    हिन्दू जाति को संगठित करने का चैथा उपाय बताते हुए स्वामी श्रद्धानन्द ने लिखा है ‘‘प्राचीन आर्यों के वर्णाश्रम धर्म को पुनर्जीवित किया जाये। मेरा अभिप्राय प्रचलित जातियों आदि से नहीं है, इस जात-पात का तो सर्वथा विनाश होना ही चाहिये और यह तो प्रत्येक सच्ची भारतीय सन्तान के लिए एक अभिशाप है। यदि हिन्दू समाज को सम्पूर्ण विनाश से बचाना है, तो आजकल के इन अप्राकृतिक और कठोर सहस्रों उपजातियों तथा सैकड़ों जातिगत भेद को समाप्त करना ही होगा। सर्वप्रथम उपजातियों के भेद समाप्त कर देने चाहिये और हिन्दुओं में ‘असवर्ण जाति’ नाम से कोई जाति नहीं रहनी चाहिये। प्राचीन वर्णधर्म के अनुसार हिन्दू समाज को एकदम से परिवर्तित कर देने की कठिनाई को मैं भली-भांति अनुभव करता हूं, परन्तु इसमें तो कोई कठिनाई होनी ही नहीं चाहिये कि सम्पूर्ण उपजातियों को तथा अस्पृश्य वर्ग को संगठित करके असवर्ण नाम से जो लोग पुकारे जाते हैं, उन्हें केवल मात्र चार वर्णों में समा दिया जाये। ब्राह्मण वर्ण अपने आप में ही एक वर्ग होना चाहिये, इसकी विभिन्न पंचगौड़, पंचद्रविड़, भूमिहार, तगा आदि उपजातियां स्वीकार नहीं की जानी चाहिये। क्षत्रियों में राजपूत, खत्री, जाट, गूजर, आदि केवल राष्ट्र के रक्षक वर्ग में एक ही वर्ण के रूप मे स्वीकार किये जाने चाहिये। व्यवसाय और कृषि के कार्य में लगी सभी जातियां और उपजातियां एक वैश्य वर्ण में ही सम्मिलित की जानी चाहिए। शेष लोगों में निर्मित वर्ण शूद्र होगा, जो कि समाज की सेवा के लिए है। प्रारम्भ में जातियों के अन्दर पारस्परिक वैवाहिक प्रतिबन्ध समाप्त करके स्वतन्त्रतापूर्वक विवाह होने देने चाहिये, अनुलोम विवाहों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। इस के बाद धीमे-धीमे ंप्रतिलोम विवाहों का समावेश करना चाहिये। और अन्त में एक हिन्दू को वर्ण निश्चित करने के लिये गुण और कर्म का ही विचार करना चाहिए।” 

    स्वामी श्रद्धानन्द जी आगे कहते हैं कि कि सम्पूर्ण जातियों का एक साथ भोजन आदि करना तो तत्काल प्रारम्भ कर देना चाहिये। यहां यह अभिप्राय नहीं है कि भोजन इस प्रकार संयुक्त रूप से किया जाये, जैसे कि कई मुसलमान एक साथ एक थाली और कटोरे में भोजन कर लेेते हैं। अपितु पृथक्-पृथक् थालियों और कटोरों में साफ-सुथरे शूद्र द्वारा पकाये भोजन को एक साथ बैठकर खायें। अकेली यही पद्धति हिन्दुओं में घुसी छुआछूत को समाप्त कर देगी। स्वामीजी हिन्दू समाज के उद्धार का उपाय बताते हुए कहते हैं कि यह इस बात पर निर्भर है कि समाज सामूहिक रूप से क्रियाशील हो उठे, परन्तु वैयक्तिक उद्धार तो वैयक्तिक साधनों से ही हो सकता है। धर्म का दर्शनात्मक रूप तो व्यक्तिगत वस्तु है और इसी कारण आस्तिक, बहुदेवतावादी और नास्तिक भी संगठित हिन्दू समाज की विस्तृत गोद में निःशंकभाव से स्थान पा सकते हैं। परन्तु जहां तक धर्म के नियम, कानून आदि और उसके पालन का प्रश्न है, वहां हिन्दू समाज एक समूह रूप से लिया जाएगा और इसीलिये यदि किसी का वैयक्तिक धर्म सामाजिक दृष्टि से अहितकर है अथवा हिन्दू समाज के राष्ट्रीय उद्धार में बाधक है, तो उस वैयक्तिक-धर्म को रोकना ही श्रेयस्कर है। अपनी पुस्तक के अन्त में स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा है कि मैंने स्नेह और नम्रतापूर्वक जो दिशा बताई है, यदि उसका श्रद्धा और विश्वास के साथ अनुगमन किया जाये, तो मैं समझता हूं कि सभी सुधार धीमे-धीमे हो जायेंगे और मानव-समाज के उद्धार के लिए एक बार फिर प्राचीन आर्योें की सन्तान सामने आकर खड़़ी हो जायेगी। स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा सुझाये गये अन्य उपाय भी समान रूप से उपयोगी, हितकर व अपरिहार्य हैं। हम पाठकों से निवेदन करेंगे की वह पूरी पुस्तक का अध्ययन करें। इसके लिए इस पुस्तक को किसी वैबसाइट पर डाला जा सकता है जिससे यह पुस्तक सभी को उपलब्ध हो सके। 

    आधुनिक युग में जन्मना जाति व्यवस्था पूरी तरह से अप्रांसागिक हो गई है। इससे हिन्दू समाज कमजोर हुआ है और इसके संगठन में विघटन एवं विषमतायें पैदा हुई हैं। अतः इसे पूरी तरह से समाप्त किया जाना ही श्रेयस्कर है जैसा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने सुझाव दिया है। आज के आधुनिक समय में वैदिक काल में प्रचलित वर्णव्यवस्था भी एक प्रकार से अप्रसांगिक हो गई है। आज मनुष्य की पहचान उसके गुण, कर्म, स्वभाव, योग्यता व आचरण सहित उसके पद व कार्यों आदि से होती है। भारत से इतर देशों में भी बिना वर्ण व्यवस्था के सामाजिक व्यवहार भली भांति चल रहे हैं। आज मनुष्यों का बहुप्रतिभाशाली होना पाया जाता है। एक ही व्यक्ति में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र सभी वर्णों के गुण समान रूप से पाये जाते हैंे। कोई ऐसी संस्था भी नहीं है और न बनाई जा सकती है, जो किसी एक मनुष्य या सभी मनुष्यों के वर्णों का वैदिक सिद्धान्तों के आधार पर निर्णय कर सके। सभी सदाचारी व धार्मिक लोगों का एक मनुष्य वा आर्य वर्ण कहा जा सकता है। सबको अपनी इच्छानुसार मत को मानकर आध्यात्म साधना की छूट है परन्तु वहां भी उनसे सत्य का ग्रहण और असत्य को छोड़ने की अपेक्षा की जानी चाहिये। सब अविद्या का त्याग व नाश करें तथा विद्या की वृद्धि व उसे प्राप्त होकर अपने जीवन को उत्तम व श्रेष्ठ बनायें। वर्तमान में देश के किसी नागरिक को वैदिक धर्म या इतर मत को मानने व उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने में कहीं कोई बाधा नहीं है। अतः सभी हिन्दू स्वामी श्रद्धानन्द जी के हिन्दू जाति को जीवित रखने व उसे तेजस्वी स्वरूप प्रदान करने वाले विचारों व सुझाावों को अपनायें यह उचित एवं आवश्यक है। देश के अन्य सभी मनुष्य अपने विवेक से विद्वानों की शरण में बैठकर उत्तम जीवन शैली व आध्यात्म जीवन का चयन कर अपना अपना जीवन व्यतीत करें जिसमें जन्मना जाति व उपजाति व्यवस्था का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। ओ३म् शम्। 
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines , Chintan
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like