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तृतीय दिवस - कृष्ण जन्मोत्सव आज

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12 Jul 19
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तृतीय दिवस - कृष्ण जन्मोत्सव आज

 

शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिन गुरुवार को पहले व्यासपीठ का पूजन और आरती हुई । श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती.... । जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे । कथा के आंरभ में सियारामदास, सुभाष अग्रवाल, हीरालाल पंचाल, महेश राणा, मांगीलाल धाकड़, भँवरलाल दीपक तेली आदि द्वारा व्यासपीठ पर माल्यार्पण किया गया । इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.... राधे-राधे.... दूसरे दिन कथा शुरु की ।
घमण्ड ज्यादा देर तक नहीं टिकता - पंडित अनिलकृष्ण
शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत चल रही श्रीमद् भागवत कथा में तीसरे दिन पण्डित अनिकृष्ण महाराज ने कहा जो विनम्र रहते है वे भगवान की कृपा के पात्र बनते है और जिन पर अभिमान की छाया पड़ जाती है उनका नाश निश्चित हो जाता है । बल, धन और ऐश्वर्य पर किया गया घमण्ड ज्यादा दिनों तक टिकता नहीं है । जब तक भगवान की कृपा रहती है व्यक्ति के कार्य फलीभूत होते है । भगवान की इस कृपा को पाने के लिए दया और विनम्रता को जीवन में उतारना ही होगा । उन्होने सुख-दुख में समभाव रखने की शिक्षा देते हुए उन्होने कहा कि समय सुख का हो या दुख का हमेशा एक सा नहीं रहता । 
कथा वाचन श्री अनिलकृष्णजी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर विस्तार से प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है । यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाएगा ।
पण्डित अनिलकृष्ण महाराज ने कहा है कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है।  भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए-सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है । भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए । संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश है । सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है । जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है । मनुष्य की सभी वासनाएँ परिपूर्ण नहीं होती है । भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है ।
अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसीलये भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
  उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिलें ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे।
पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए बालव्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने पितामह भीष्म और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऐसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखे। 
पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि ‘पापियों के संग में मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तग जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टांें-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।’
इस दौरान उन्होंने कहा कि सच्चे भक्त भगवान से सिवाय भक्ति के और कुछ नहीं मांगते । भक्ति ही उनके लिए पर्याप्त होती है । वे इसे ही सबसे बड़ा धन मानकर चलते हैं और भवसागर को पार करते हैं ।
सद्गुरु दिखाते हैं मुक्ति का मार्ग -
कथा के बिज में अनिलकृष्णजी महाराज ने इस बात पर विशेष जोर देकर बोला कि मुक्ति का मार्ग सद्गुरु दिखाता है । इसलिए हमंे मुक्ति चाहिए तो सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए । परन्तु सद्गुरु की शरण में जाने से पहले उस सद्गुरु के बारे में जानकारी लेना आवश्यक है कि वह किन सम्प्रदाय से है व उनकी गादी की वंश परम्परा क्या है तथा उनका उद्देश्य क्या है । यदि उनका उद्देश्य परमात्मा प्राप्ति नहीं है तो उन सद्गुरु के चरणों में नहीं जाना चाहिए । सच्चा सद्गुरु यदि जीवन में बनाना हो तो भीड़ देखकर नहीं बनाना, उनके हृदय में भगवान के प्रतिप्रेम, उनका उद्देश्य भगवान प्राप्ति एवं जीव मात्र के प्रति दया का भाव रखते हो ।
शक्ति व समय का करें सदुपयोग - पण्डित अनिलकृष्ण
शक्ति सम्पत्ति और समय का सदुपयोग करें । मेरा और तेरा इसी का नाम माया है । पूरा संसार ही इस माया के वषीभूत है । उन्होंने बताया कि मानव जीवन प्रभु की प्रापित के लिए मिला है । लेकिन हम इस जीवन को प्रभु प्राप्ति के मार्ग में न लगाकर माया के वशीभूत होकर भौतिक संसाधनों को पानें में लगे रहते हैं ।
इसके साथ धु्रव चरित्र पृथु चरित्र, जड़ भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए गए । इसके पश्चात् भागवतजी एवं पार्थिव शिवजी की आरती ‘‘भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती और ओम जय शिव ओमकारा सामुहिक उतारी गई । उसके पश्चात प्रसाद वितरण किया गया । संचालन शिक्षाविद् शांतिलालजी भावसार द्वारा किया गया ।


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