उदयपुर। शासन श्री साध्वी गुणमाला ने कहा कि जो भी बोलें, विवेकपूर्वक बोलें। वाणी संयम बहुत जरूरी है। भाषा नही होती तो संवाद नही कर पाते। भले ही कितना ही ज्ञान हो लेकिन भाषा और लिपि के बिना दूसरों तक नहीं पहुंच पाता।
वे सोमवार को अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण के चौथे दिन वाणी संयम दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि वैदिक परंपरा में मनुष्य की जिव्हा पर सरस्वती का वास होता है। वो जो बोलता है, सत्य होता है। यह समय किसी को मालूम नहीं। सलिये शुभ ही बोलना चाहिए। मधु पाने की इच्छा रखने वाला कभी छत्ते को ठोकर नही मारता। कोई दस घंटे बोल रहा है फिर भी मौन है। कोई बिल्कुल मौन है फिर भी वाचाल है। मधुर बोलें, धीमे बोलें, विचारपूर्वक बोलें। अनावश्यक नहीं बोलें। किसी को अप्रिय लगने वाली बात नहीं करें।
उन्होंने कहा कि नित्य को अनित्य और अनित्य को नित्य मानना ही सबसे बडी भूल है। आदमी को बोलना तो पडता है। आदमी की ही यह विशेषता है कि उसके पास भाषा है। वोकल सिस्टम से भाषा का उदभव होता है। इसका सबसे पहले प्रभाव हमारे खुद पर पडता है। उपवास करो या नही, लेकिन दिन में १५ मिनट का मौन अवश्य रखो। साधना की दृष्टि से आगे बढना है तो मौन रखना सीखो। आफ स्वभाव में अंतर स्वतः दिखाई देगा। प्रतिदिन अवश्य १५ मिनट का मौन करें और एक वर्ष बाद खुद में बदलाव देखें।
साध्वी श्री लक्ष्यप्रभा, साध्वी प्रेक्षाप्रभा और साध्वी नव्यप्रभा ने तीन तरह के व्यक्तियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जो बोलने से पहले सोचता है वह उच्च कोटि का, बोलने के बाद सोचने वाला मध्यम एवं न बोलने से पहले और न बाद में सोचता है, वह निम्न कोटि का व्यक्ति है। महिला मंडल की सदस्याओं ने मंगलाचरण किया। तेयुप सदस्यों ने अभिनव सामायिक पर गीत प्रस्तुत किया।
सभा के मंत्री प्रकाश सुराणा ने बताया कि प्रतिदिन सुबह ९.३० से ११ बजे तक प्रवचन, तीन सामायिक, दो घंटे मौन, स्वाध्याय आदि की नियमित साधना जारी है।
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