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जीव अजीव में समाविष्ट पूरा संसार - आचार्य महाश्रमण

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27 Jul 21
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जीव अजीव में समाविष्ट पूरा संसार - आचार्य महाश्रमण

शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज ठाणं प्रवचन माला का शुभारंभ हुआ। आज से प्रतिदिन आचार्य प्रवर जैन आगम ठाणं के गूढ़ सूत्रों की व्याख्या प्रवचन के माध्यम से करेंगे। महासभा सभागार में अहिंसा यात्रा प्रणेता के अभिनंदन में भी श्रद्धालुओं ने भावाभिव्यक्ति दी। 

महातपस्वी आचार्य प्रवर ने वर्चुअल अमृत देशना देते हुए फरमाया कि दुनिया में दो ही तत्व है। जीव और अजीव। समस्त जीव व पदार्थ इसमें समाविष्ट हो जाते है। जो चेतना से युक्त है वह जीव होता है और जो अचेतन है वह अजीव होता है। अहिंसा की साधना में जीव अजीव का ज्ञान होना आवश्यक है। इसका विवेचन  जैन दर्शन में विशद  रूप से उपलब्ध है। शास्त्रकारों ने सब जीवों को आठ भागों में विभक्त किया है- नैरयिक, तिर्यंच, तिर्यंच योनिकी, मनुष्य, मनुषी, देव, देवी और सिद्ध।
उपरोक्त आठ प्रकार जीवों के है। संसारी जीव अनेक कर्मों से जकड़े हुए होते है।इसलिए सबकी स्थिति एक सी नही हो है। जो अपने बुरे पाप कर्मों से नरक में उत्पन्न होते है वह नेरयिक जीव होते है। एकेंद्रीय से लेकर पंचेंद्रीय तक के जीव तिर्यंच में आजाते है। मनुष्य, मानुषी में हम सभी मनुष्य और फिर देवी-देवता होते है। जो सब कर्मों से मुक्त हो जाते है वह सिद्ध होते है जो मोक्ष में अवस्थित है। हर जैन श्रावक को जीव-अजीव का ज्ञान होना ही चाहिए।

आचार्यवर ने आगे कहा- सिद्ध संसार से मुक्त आत्माएं होती है। मोक्ष में उनके भीतर न राग है न द्वेष। वह पुनः जन्म भी नहीं लेती। सब दुःखों से मुक्त वें अभेद, निरंकार होते है। व्यक्ति धर्म के द्वारा, निर्जरा द्वारा कर्मों का क्षय कर सिद्ध गति को प्राप्त कर सकता है। 

कार्यक्रम में मुनि श्री हर्षलाल, साध्वी श्री सुषमाकुमारी,  साध्वी श्री विमलप्रभा ने  अपनी भावना व्यक्त की। भीलवाड़ा श्रावक-श्राविका समाज द्वारा स्वागत  गीतिका की प्रस्तुति दी गई।


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