बांसवाड़ा, वैदिक संस्कृति और सनातन परम्पराओं के संरक्षण, अनुपालन तथा प्रचार-प्रसार के लिए विगत छह दशकों से कार्यरत गायत्री मण्डल बांसवाड़ा की ओर से यहां श्री वनेश्वर महादेव के पास संचालित श्री पीताम्बरा आश्रम में ग्रीष्मकालीन प्राच्यविद्या प्रशिक्षण गुरुवार से आरंभ हुआ। यह 30 जून तक चलेगा।
इसके अन्तर्गत प्रतिदिन प्रथम सत्र में पूर्वाह्न 9.30 से मध्याह्न 12.30 तक संध्योपासना, पंच देव उपासना से संबंधित साधनाओं, स्तोत्रों, मंत्रजप, कर्मकाण्ड, पौरोहित्य कर्म, पूजन-अर्चन विधियों, रूद्राभिषेक, आदि विभिन्न साधनाओं और विशिष्ट उपासना पद्धतियों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इसी प्रकार द्वितीय सत्र में प्रतिदिन रात्रि 7.30 से 10.30 तक श्री विष्णुसहस्रनाम, ललिता सहस्रनाम, दुर्गा सप्तशती, दश महाविद्या साधना, श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र, हनुमान एवं भैरव आदि की सामूहिक साधना एवं प्रशिक्षण निर्धारित है।
रविवार को पूर्णकालीन शिविर
इसके अलावा श्री पीताम्बरा आश्रम में प्रत्येक रविवार को विभिन्न विशिष्ट प्रयोगों के साथ ही आरंभिक ज्योतिष, स्वर विज्ञान, मंत्र चिकित्सा सहित परम्परागत विधाओं पर प्रातः 9.30 बजे से सायंकाल 6.30 बजे तक परामर्श शिविर आयोजित होगा। रविवार रात्रि 7.30 से 10.30 बजे तक आध्यात्मिक जिज्ञासा समाधान सत्र भी होगा। विगत डेढ़ वर्ष से जारी सायंकालीन यज्ञानुष्ठान व विभिन्न साधनाओं के प्रयोग तथा सामूहिक आरती आदि के कार्यक्रम नियमित रूप से संचालित हो रहे हैं।
इसके साथ ही रविवार, अन्य उत्सव-पर्वों आदि पर पूर्वाह्न 10 बजे से रात्रि 10 बजे तक विभिन्न साधनाओं, यज्ञ, प्रशिक्षणों, ज्योतिष परामर्श, आदि के आयोजन नियमित रूप से जारी रहेंगे। आश्रम में प्रतिदिन रात्रि 7.30 से 10 बजे तक विभिन्न साधनाओं का प्रशिक्षण, सामूहिक पाठ, अर्चन आदि का क्रम भी रोजाना नियमित रूप से बना हुआ है।
यह सम्पूर्ण प्रशिक्षण पूर्णतया निःशुल्क हैं। इन अनुष्ठानों एवं प्रशिक्षण का लाभ पाने के इच्छुक सभी आयु वर्ग के जिज्ञासुओं तथा धर्मकर्म से जुड़े समस्त आयु वर्ग के साधक-साधिकाओं का स्वागत है। प्रशिक्षण एवं साधनाओं में सम्मिलित होने वाले संभागियों के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं श्री पीताम्बरा आश्रम प्रबन्धन की ओर से निःशुल्क उपलब्ध रहेंगी।
यह कार्य पूर्ण रूप से स्वैच्छिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना से किया जा रहा गैर व्यवसायिक कार्य है। इसका उद्देश्य धर्म जागरण और सनातन परम्पराओं के प्रचार-प्रसार एवं ज्ञान संवहन करते हुए नई पीढ़ी को तैयार करना है ताकि हमारी पुरातन परम्पराएं संरक्षित रहकर संवर्धित स्वरूप प्राप्त करती रह सकें।