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‘...और 15 वर्षों बाद खिल उठा दुर्लभ अशोक

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22 Apr 19
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‘...और 15 वर्षों बाद खिल उठा दुर्लभ अशोक

बांसवाड़ा / रावण की लंका में स्थित अशोक वाटिका का वह वृक्ष जिसकी छांव तले बैठने तथा इसके फूलों की भीनी महक से देवी सीता के शोक का हरण हुआ, इन दिनों बांसवाड़ा जिले में भी अपनी मोहक आभा बिखेरने लगा है। सीता-अशोक (सराका इण्डिका) नामक यह दुर्लभ वृक्ष जिले के बड़ोदिया कस्बे में शिक्षाविद व काष्ट शिल्पकार लीलाराम शर्मा के निवास पर एक गमले में ही पुष्पित हुआ है। 

गत पंद्रह वर्षो पूर्व रोपे गए मात्र ढाई-तीन फीट ऊंचाई के इस पौधे पर खिले शानदार फूलों को देखकर न केवल शर्मा अपितु पर्यावरणप्रेमियों की खुशी का भी ठिकाना नहीं रहा। इस पौधे पर नारंगी-लाल रंगों की फूलों की आभा देखते ही बन रही है। पर्यावरणीय विषयों के जानकारों के अनुसार यह ही असली अशोक वृक्ष है। जिले में ऐसे इक्के-दुक्के वृक्ष ही हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय धर्म, संस्कृति व साहित्य में प्रमुख स्थान प्राप्त इसी अशोक वृक्ष के तले की गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और भगवान महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। प्रचलित मान्यताओं अनुसार चौत्र शुक्ला अष्टमी के दिन अशोक वाटिका में इसी वृक्ष के नीचे हनुमानजी के हाथों भगवान राम का संदेश व मुद्रिका (अंगूूठी) प्राप्त हुई थी। इन्हीं मान्यताओं के कारण अशोकाष्टमी के दिन महिलाएं इसका पूजन कर सौभाग्य की कामना करती है। जानकारों के अनुसार कामदेव के बाणोें में एक बाण इसका पुष्प भी है अतः इसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसके पुष्प, पत्तियों, छाल व फलों का उपयोग कई प्रकार की औषधियों के रूप में होता है।


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