अजमेर | छात्र संघ चुनाव के नतीजों में जिस तरह युवा शक्ति ने निर्दलियों को जीत का ताज पहनाया है उससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि राजनीतिक दलों से ज्यादा असरदार प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि और उनका संपर्क रहा है। एनएसयूआई को इन चुनावों में मिली हार से कांग्रेसियों के माथे पर चिंता की लकीरें जरूर खिंच गई है लेकिन एबीवीपी के लिए भी बहुत ज्यादा सकारात्मक स्थिति नहीं कही जा सकती। ऐसे में इन चुनावों के नतीजों से आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर किसी तरह के राजनीतिक मायने निकालना बेहद कठिन है। यह माना जाता है कि छात्र संघ चुनावों में भी राजनीतिक दल ही चुनाव लड़ते है और इन चुनावों के नतीजे आम चुनावों का आइना हाेते हैं। लेकिन वर्तमान छात्र संघ चुनाव के नतीजों से यह संकेत मिल रहे हैं कि राजनीतिक दलों का महत्व उतना नहीं रहा जितना प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि व संपर्क का लाभ उन्हें मिला। चुनाव पर असर नहीं पड़ने की दूसरी वजह यह भी है कि इन चुनाव में मात्र 45 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि आम चुनाव में आजकल चुनाव का प्रतिशत 70 से 80 प्रतिशत तक रहता है। छात्र संघ में कम मतदान यह भी संकेत है कि युवा शक्ति के आधे से ज्यादा हिस्से ने इस चुनावी समर में काेई रूचि नहीं दिखाई।
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