उदयपुर, मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील और सामाजिक महत्त्व के विषय पर एक सार्थक संवाद की पहल करते हुए पेसिफिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल और रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉफ्रेस का आयोजन किया गया।
इस राष्ट्रीय कॉफ्रेस का उद्घाटन उदयपुर की डिविजनल कमिश्नर प्रज्ञा केवल रमानी,पीएमयू के प्रेसिडेंट डॉ.एम.एम.मंगल,पीएमसीएच के प्रिंसिपल डॉ.यू.एस. परिहार,क्लीनिकल साइकोलॉजी के हेड एवं कॉफ्रेस के चेयरपर्सन डॉ.दीपक साल्वी ,कॉफ्रेस की सेकेटरी प्रेरणा शर्मा,डॉ.सुनीति अमरावत,स्वप्न चंदेल एवं उन्य कमेटी मेम्बर ने गणपति के समक्ष दीप प्रज्वल्लन करके किया।
पीएमसीएच के चेयरमेन राहुल अग्रवाल ने इस आयोजन को मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताया।
उद्घाटन के इस मौके पर क्लीनिकल साइकोलॉजी के हेड एवं कॉफ्रेस के चेयरपर्सन डॉ.दीपक सालवी ने कहा कि यह कॉफ्रेस मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में जागरूकता लाने और तकनीकी नवाचार को चिकित्सा क्षेत्र से जोड़ने का सफल प्रयास रही। इसमें प्रस्तुत विचार, शोध और अनुभव न सिर्फ विद्यार्थियों और पेशेवरों के लिए उपयोगी रहे, बल्कि यह भविष्य में डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
कॉफ्रेस के सेकेटरी प्रेरणा शर्मा ने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य डिजिटल तकनीकों का मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतर उपयोग, वर्चुअल काउंसलिंग की गुणवत्ता और व्यवहारिक व्यसनों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।
उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने मानसिक स्वास्थ्य को समाज में एक मौन संकट बताया, जिसे समझना और उसका तकनीकी समाधान खोजना अत्यंत आवश्यक है।
इस दौरान प्रो.(डॉ.)मनोज शर्मा ने ‘डिजिटल टूल फॉर मेन्टल हैल्थ‘ के बारे बताया में कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आज डिजिटल ऐप्स, ऑनलाइन मॉड्यूल, चौट-बेस्ड थेरेपी और एआई आधारित हेल्प टूल्स क्रांतिकारी साबित हो रहे हैं। उन्होंने इन तकनीकों की उपयोगिता, पहुंच और विश्वसनीयता को विस्तार से समझाया। साथ ही आज के युवा बड़ी संख्या में इंटरनेट, गेमिंग और सोशल मीडिया के कारण व्यवहारिक व्यसनों का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने इससे बचाव हेतु विद्यालयों और अभिभावकों की भूमिका को रेखांकित किया।
सुश्री स्मृति जोशी ने कहा कि वर्चुअल काउंसलिंग आज शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लिए एक व्यवहारिक समाधान बन चुका है। हालांकि तकनीकी साक्षरता और गोपनीयता इसके लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। उन्होंने बताया कि तकनीकी ज्ञान के अभाव में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है। उन्होंने स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रो.(डॉ.) रेजनी टी.जी ने प्रिवेंटिव मॉडल्स जैसे कि सपोर्टेड स्क्रीङिंग टूल्स,ऑनलाइन ग्रुप थैरेपी और माइंडफुलनेस ऐप्स के बारे में विस्तार से बताया।
डॉ.एम.एन.किरमानी ने स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य की शिक्षा, डिजिटल टूल्स के माध्यम से छात्र सहायता कार्यक्रम और शिक्षक प्रशिक्षण के मॉडल प्रस्तुत किए।
इस दौरान विभिन्न शोधार्थियों ने मानसिक स्वास्थ्य, तकनीक और परामर्श सेवाओं पर अपने शोध प्रस्तुत किए।
कॉफ्रेस में 200 से ज्यादा प्रतिभागियों ने भाग लिया,जिनमें चिकित्सक,मनोविज्ञान और सामाजिक कार्य क्षेत्र के छात्र व विशेषज्ञ शामिल थे।