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विकसित कृषि संकल्प अभियान का धूमधाम समापन

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13 Jun 25
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विकसित कृषि संकल्प अभियान का धूमधाम समापन

ऽ आठ कृषि विज्ञान केन्द्रों की टीमों ने 1.20 लाख किसानों से किया सम्पर्क
ऽ मक्का दुनिया की सबसे महंगी फसलों में होगी शुमार
ऽ आजादी के बाद खाद्यान्न उत्पादन में 7 गुना बढ़ोŸारी
उदयपुर, कृषि व्यवसाय नहीं है बल्कि यह हमारी जीवन पद्धति है। देश में 65 प्रतिशत किसान परिवार हैं और सभी खेत में ही पले-बढ़े हैं। जरूरत इस बात की है कि अब खेती-किसानी को बाजार आधारित बनाया जाए। सन् 1947 में हम आजाद हुए और 2047 यानी सौ वर्ष बाद विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ रहे हैं। आजादी के बाद देश के कृषि वैज्ञानिकों ने खाद्यान्न उत्पादन को 354 मिलियन टन पहुंचा दिया यानी 7 गुना की वृद्धि। इधर जनसंख्या में भी चार गुना वृद्धि के साथ देश की आबादी 140 करोड़ हो चुकी है। यह बात डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गुरूवार को विकसित कृषि संकल्प अभियान के समापन समारोह में कही। उदयपुर के समीप बिनोता पंचायत के कोटड़ी गांव में आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कृषक महिलाओं-पुरूषों ने भाग लिया।



उन्होनें ग्रामीणों को शपथ दिलाई कि हमारे पूर्वज ’खेती-बाड़ी’ किया करते थे यानी गेहूँ-मक्का के साथ-साथ फलफूल व सब्जियां भी बोते थे जिसका लाभ पूरे परिवार को मिलता था। समय के साथ कई नई तकनीक भी आ गई लेकिन किसानों तक सुगमता से नहीं पहुंच पाई। देशभर के कृषि तंत्र को ’लेब से लेण्ड’ तक ले जाने सम्बन्धी इस अभियान के तहत महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन आठ कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से 15 दिन में एक लाख 20 हजार किसानों तक पहुंच बनाई व तकनीकी जानकारी दी। जिसका लाभ आसन्न खरीफ के दौरान मिलेगा।
कुलपति डॉ. कर्नाटक ने कहा कि कृषि के साथ गोवंश पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन भी करना चाहिए। इससे किसानों को आर्थिक संबल मिलेगा वही गोवंश पालन से खेतों को कम्पोस्ट और लोगों को शुद्ध दुग्ध एवं दही मिलेगा।
’’गेहूँ छोड़ मक्का खाणों - मेवाड़ छोड़ न कठैई नी जाणों’’ कहावत को उद्धत करते हुए कुलपति ने कहा कि आने वाले समय में मक्का दुनिया की सबसे महंगी फसलों में शुमार होने वाली है। मक्का को आरम्भ में पशु-चारे के रूप में बोया जाता था लेकिन वैज्ञानिकों ने रात-दिन प्रयोग कर मक्का से पोप-कॉर्न, स्वीट कॉर्न, बेबी-कॉर्न जैसी कई प्रजातियां तैयार कर दी। यही नहीं मक्का के दाने में जर्म से तेल व स्टार्च निकाला जाने लगा है। स्टार्च से इथेनॉल बन रहा है जिसे पेट्रोल में मिलाने की अनुमति भी सरकार ने दी है। बांसवाड़ा में मक्का की तीन फसलें ली जाती है।
उन्होंने कहा कि आपको अपने किसान होने पर गर्व होना चाहिए। जब तक सृष्टि है आदमी की भूख कभी खत्म होने वाली नहीं है और इस भूख को केवल अन्नदाता किसान ही शांत कर सकता है। अनाज के अलावा शेष जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों को नई तकनीक जैसे मोबाइल एप, ड्रॉन से उर्वरक छिड़काव आदि का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। साथ में प्राकृतिक खेती, कम्पोजिट किस्मों में 20 प्रतिशत बीजों का बदलाव, क्रांतिक अवस्था में सिंचाई जैसी कई युक्तियां अपनाकर किसान अतिरिक्त आय ले सकता है।
समारोह के अध्यक्ष निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. आर.एल. सोनी ने कहा कि नवाचारों की जानकारी देने के लिए एक पखवाड़े तक चले अभियान में दक्षिणी राजस्थान के 9 जिलों में 13 टीमों ने लगभग 550 शिविर आयोजित कर एक लाख बीस हजार किसानों से सम्पर्क साधा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान व एमपीयूएटी में विभिन्न शोध के बारे में अवगत कराया। उन्होंने कहा कि कृषि में नवाचारों का इस्तेमाल करें। मृदा परीक्षण करा सिफारिश के अनुसार ही उर्वरक दें। फसल की सघनता को बढ़ावा देते हुए अच्छा बीज काम में लें। इस मौके पर उन्होंने 15 किसानों को निःशुल्क मक्का बीज मिनीकिट देने की घोषणा की।
आरम्भ में कृषि विज्ञान केन्द्र, राजसमन्द के प्रभारी डॉ. पी.सी. रेगर ने 15 दिन के अभियान के दौरान हुई कृषि गतिविधियों की जानकारी दी। सहायक कृषि अधिकारी रंजना औदिच्य ने कृषि विभागीय योजना जैसे पाइप लाईन, तारबंदी, खेत तलाई, कृषि यंत्र पर सरकारी अनुदान की जानकारी दी।
मृदा वैज्ञानिक डॉ. महावीर नोगिया, श्री नवल सिंह झाला, श्री गोपाल सिंह राणा, श्री राम किशोर यादव, डॉ. लतिका व्यास, डॉ. आदर्श शर्मा आदि ने भी किसानों से चर्चा कर आमदनी बढ़ाने के गुर बताए।


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