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रक्तदान करने से स्रावित होते हैं ‘हैप्पी हार्मोंस’

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11 Dec 17
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कोटा(डॉ. प्रभात कुमार सिंघल)| डेंगू के नाम पर लोगों में कईं प्रकार की भ्रांतियां हैं, प्लेटलेट्स की कमी होने पर ही चिकित्सक भी प्लेटलेट्स चढाने का सुझाव देते हैं। लेकिन यदि रोगी को ब्लीडिंग नहीं हो रही है तो अतिरिक्त प्लेटलेट्स चढाने से बचना चाहिए। यह बात जम्मू कश्मीर के पूर्व प्रोग्राम डायरेक्टर आॅफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन डाॅ. टीआर रैना ने कही। वे इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी यानी आईएसबीटीआई, मेडिकल काॅलेज कोटा तथा ब्लड बैंक सोसायटी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 42वीं कांफ्रेंस ‘ट्रांसकोन 2017’ के दूसरे दिन शनिवार को मेडिकल काॅलेज आॅडिटोरियम आरकेपुरम् पर व्याख्यान दे रहे थे। इससे पहले सुबह यौगिक क्रियाओं के द्वारा रक्त शोधन और सुरक्षित रक्तदान के महत्व को समझाया गया।
डाॅ. रैना ने कहा कि डेंगू रोगी को यदि रक्त बहना नहीं रूक रहा है तो उसे प्लेटलेट्स की जरूरत हैं। जबकि अभी चिकित्सक किसी भी प्रकार की रिस्क से बचने के लिए तुरंत प्लेटलेट्स चढाना शुरू कर देते हैं। डाॅ. रैना ने स्वैच्छिक रक्तदान के विषय में बात करते हुए कहा कि रक्तदान करने से शरीर में ‘एण्डोरफीन्स’ नाम का हैप्पी हार्माेन स्रावित होता है। जो कि व्यक्ति को हैल्दी बनाने के साथ ही तनावमुक्त करने और सकारात्मक सोच बनाने में हमारी मदद करता है। इसीलिए ब्लड रिप्लेसमेंट के बजाय वाल्यून्टरी ब्लड डोनेशन पर ही अधिक जोर दिया जाता है। यही ब्लड अधिक प्योर भी माना जाता है। उन्होंने डोनर को श्रेष्ठ वातावरण देने पर भी बल दिया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेशनल को-आॅडिनेंटर हरप्रीत सिंह ने ‘संक्रमित ब्लड कम्पोनेंट्स के द्वारा एचआईवी का संक्रमण और दिशा निर्देश’ विषय पर व्याख्यान करते हुए कहा कि ब्लड के सारे टेस्ट करा लेने के बाद भी रिस्क फैक्टर कम नहीं होता है। भारत में अधिकांश रक्त में हेपेटाइटिस पाया जाता है, जबकि एचआईवी 0.001 प्रतिशत ही मिलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सुरक्षित रक्त के लिए विभिन्न देशों को सुझाव दिए जाते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रकार के प्रत्यारोपण को लेकर भी डब्ल्यूएचओ की कुछ गाइडलाइन्स हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से चलाई जाने वाली परियोजनाओं में डब्ल्यूएचओ की ओर से तय मानकों के किट ही प्रयोग में लिए जाते हैं, लेकिन अन्य कार्यक्रमों में ऐसा बहुतायत में नहीं होता है।
कांफे्रंस के दौरान स्वैच्छिक रक्तदान में आयुर्वेद और योग के महत्व को प्रतिपादित करते हुए सेन्ट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम, दिल्ली के मेडिकल आॅफिसर डाॅ. पुरूषोत्तम पालीवाल ने योग क्रांति से स्वास्थ्य क्रांति और स्वास्थ्य क्रांति से रक्तदान क्रांति की बात रखी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्रांति योग, प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आयुर्वेद के द्वारा लाई जानी चाहिए। आयुर्वेद में रस, रक्त, मांस, मेद (फेट), अस्थि, मज्जा, शुक्र रज समेत 7 धातुओं के निर्माण का वर्णन है। नीतिशतक में कहा गया है कि जिस प्रकार से धन का उपयोग सद्कार्याें में नहीं करने पर वह नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार से रक्त का उपयोग भी दूसरों को दान देने में करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लाल रक्त कणिकाओं का जीवन 90 से 120 दिन होता है तथा श्वेत रक्त कणिकाओं का जीवन केवल 5 से 10 दिन होता है। इसके बाद पेड के पत्तों के समान इन कणिकाओं को समाप्त होना ही है। फिर इस रक्त का उपयोग करना ही श्रेष्ठ विकल्प है। लगातार स्वैच्छिक रक्तदान करने वाले लोगों में रक्त प्रवाह तेज होता है और रक्त बनने की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है। उन्होंने कहा कि हिमोग्लोबिन आयरन और प्रोटीन से मिलकर बनता है, जिसकी कमी से छात्र छात्राओं में स्मृति का लोप होता है।
इस दौरान डाॅ. आरएन मकरू, डाॅ. तूलिका चन्द्रा, डाॅ. हरप्रीत सिंह, डाॅ. अतुल कुलकर्णी, डाॅ. कंचन मिश्रा ने रक्तस्राव प्रेषित संक्रमण पर, डाॅ. राबर्ट फ्लावर, डाॅ. सौम्य जमुआर, डाॅ. मोहित चैधरी ने सेलुलर थैरेपी पर, डाॅ. सुनील राजाध्यक्ष, डाॅ. मनीषा श्रीवास्तव, डाॅ. मीनू वाजपेई, डाॅ. वीना डोडा ने ब्लड कंपोनेन्ट्स पर, डाॅ. एसएस चैहान, डाॅ. नवीन अग्निहोत्री, नीति सरन, आर राजकुमार, डाॅ. केएम राधाकृष्णन, डाॅ. पीके पालीवाल ने स्वैच्छिक रक्तदान पर, विनीता श्रीवास्तव, डाॅ. भारत सिंह, डाॅ. योगिनी पटेल, डाॅ. नवीन सक्सेना ने रक्त सुरखा पर व्याख्यान दिया। इसके अलावा डाॅ. प्रशांत अग्रवाल, डाॅ. सुनीता बूंदास, डाॅ. प्रतुल सिनहा, अरविंद कुकरेती, शरद जैन, डाॅ. शोभिनी राजन, डाॅ. निधि मेहता, एमएल पाटौदी, डाॅ. पीएस झा, डाॅ. एचएल मीना, एनके भाटिया ने विनियामक (रेगुलेटरी) मुद्दों पर बात की। कांफं्रेस में डाॅ. हिमांशु शर्मा, डाॅ. दिनेश अरोड़ा, ने भी व्याख्यान दिए। वहीं डाॅ. राॅबर्ट फ्लावर, सरिता शर्मा, कृमा पटेल, अभिनव वर्मा, सुप्रिया सिंह, डाॅ. अजय गुप्ता, शंकर मुगाबे, डाॅ. निधि मेहता, डाॅ. हिमांशु शर्मा, डाॅ. दिनेश अरोड़ा, डाॅ. मनीषा अग्रवाल, कानू निमावत, नीतिमा सोनी, पारूल प्रजापति, लखविन्दर सिंह, अतुल कुमार गुपता, डाॅ. प्रेरणा धाकड़, डाॅ. कविता शर्मा ने ओरल पेपर प्रस्तुत किए।
कांफे्रंस में राजसीको के डायरेक्टर डाॅ. एसएस चैहान, आयोजन के चैयरपर्सन डाॅ. वेदप्रकाश गुप्ता, आयोजन सचिव डॉ. एचएल मीणा, मेडिकल काॅलेज के एडिशनल प्रिंसीपल डाॅ. नरेश राॅय, डाॅ. आरएन मकरू, डाॅ. मनीषा श्रीवास्तव, डाॅ. विमर्श रैना, डाॅ. एसके जैन, डाॅ. आरएस गुपता, डाॅ. जाॅनाथन पिकर, डाॅ. पी श्रीनिवासन,, डाॅ. संगीता पाठक, डाॅ. टीआर रैना, डाॅ. भारत सिंह, डाॅ. एससी गुप्ता, डाॅ. योगिनी पटेल, डाॅ. एचएल मीना, डाॅ. शोभिनी राजन, डाॅ. मंजू बोहरा, डाॅ. अंजू वर्मा, डाॅ. हिमांशु शर्मा, डाॅ. अनिल गुपता, डाॅ. नवरंग लाल महावर समेत कईं रक्त विशेषज्ञ मौजूद रहे।
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