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राष्ट्रबोध की परिवेशपरक चेतना हमारे जीवन मूल्यों का आधार

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19 Mar 18
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राष्ट्रबोध की परिवेशपरक चेतना हमारे जीवन मूल्यों का आधार उदयपुर,राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित लेखक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रसिद्ध निबंधकार श्री श्रीराम परिहार ने कहा कि साहित्य,संस्कृति तथा राष्ट्रबोध की विवेकपरक समझ की दृष्टि से हमें राष्ट्रबोध की परिवेशपरक चेतना में निहित मनसा वाचा कर्मणा की अवधारणा को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। हमारी सम्यक कृति ही संस्कृति पर्याय बनती है और संस्कृति अनेक प्राकृतिक तत्वों का समन्वयपरक स्वरूप ही है जो कि हमेशा प्रवाहशील रहती है। हमारी संस्कृति वस्तुतः संर्घष चेतना की संस्कृति रही है। और इस दृष्टि से हमारे यहां समाज की समग्र गौरव चेतना का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति में काल की अवधारणा में भी मौलिक अंतर है क्योंकि हमारे यहां अखंड मानवता की चेतना और आत्म गौरव का बोध अनुपम है।


मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानन्दप्रसाद गुप्त ने कहा कि साहित्य हमारे हृदय को व्यापक और उदार बनाने का काम करता है और साहित्य का मूल उद्धेश्य अंततः प्रेम और सौहार्द ही है जो हमारी चेतना को परिष्कृत करता है। हमारी साहित्य परम्परा में लोक मंगल की कामना निहित है इसलिए हमें राष्ट्रबोध को संकीर्ण दृष्टि से नहीं देखना चाहिए क्योंकि धर्म हमें मुक्त करता है और वह हमारा महत्वपूर्ण मूल्यबोध है। इसलिए राष्ट्रधर्म को पश्चिम की दृष्टि से आंकना हितकर नहीं है।


डाॅ. मथुरेशनन्दन कुलश्रेष्ठ ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर बोलते हुए कहा कि राष्ट्रबोध के कारण से ही भारत अपनी अखंडता को बचाये हुए है जबकि अन्य अनेक देश इस दृष्टि से सफल नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक स्तर पर राष्ट्र बोध की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है और हमारे यहाँ विभाजन की मानसिकता को कोई स्थान नहीं होना चाहिए। हमारे यहाँ राष्ट्रबोध एक अनुभव है जिसे हमारा साहित्य बेहतर ढंग से व्यक्त कर रहा है। अध्यक्ष पद से बोलते हुए डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के रिश्ते को स्पष्ट रूप से परिभाषित करके राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रबोध के अंतर को बेहतर ढंग से समझना जरूरी है। क्योंकि राष्ट्र किसी वाद से परे होता है जबकि राष्ट्रबोध जन-जन की चेतना में व्याप्त रहता है। राष्ट्रबोध का अर्थ राष्ट्रीयता से है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को इससे जोड़कर देखा जाना आवश्यक है। साहित्य वस्तुतः संस्कृति और राष्ट्रबोध का संवहन करता है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादमी सचिव डाॅ. विनीत गोधल ने स्वागत किया और अकादमी का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन चेतन औदिच्य ने किया।


‘‘ साहित्य, संस्कृति और राष्ट्रबोध ‘‘ विषयक चिंतन संवाद सत्र के मुख्य वक्ता डाॅ. दयानंद भार्गव ने कहा कि हमारी राष्ट्रबोध की अवधारणा का प्रारंभ रामायण काल से होता है जिससे प्रेरित होकर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने राष्ट्रगान की रचना की। बीज वक्तव्य के रूप में डाॅ. सुरेन्द्र डी.सोनी ने साहित्य एवं संस्कृति के अंतःसंबंधों को वृहत् प्ररिपेक्ष्य में समझने पर बल दिया। सर्वश्री डाॅ.कौशलनाथ उपाध्याय, विमला सिंहल, तनसुखराम शर्मा, गंगानगर, देवेन्द्र शर्मा, भरतपुर, विष्णु शर्मा, बारां, बजरंगलाल विकल, बूंदी, शैलेन्द्र स्वामी, जोधपुर, विपिन चंद्र, जयपुर तथा अन्नाराम शर्मा, श्रीगंगानगर इत्यादी वक्तओं ने उक्त विषय पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। अकादमी अध्यक्ष डाॅ. इन्दुशेखर तत्पुरूष ने कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सुशीला शील, जयपुर ने किया। अकादमी का सम्मान समारोह आज अकादमी का वार्षिक पुरस्कार अर्पण एवं सम्मान समारोह आज आयोजित होगा। इसके मुख्य अतिथि प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा, कुलपति, पैसेफिक वि..िव. तथा मुख्य वक्ता प्रो. उमेश कुमार सिंह, निदेशक, साहित्य अकादमी भोपाल होंगे। इस समारोह में पं. जनार्दनराय नागर सम्मान से डाॅ. मथुरेशनन्दन कुलश्रेष्ठ, जयपुर, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान से सर्वश्री कलानाथ शास्त्री, जयपुर डाॅ. देव कोठारी, उदयपुर, डाॅ. भगवतीलाल व्यास, उदयपुर, पं. नरेन्द्र मिश्र, चित्तौेड़गढ़,तथा श्री राम जैसवाल, अजमेर अलंकृत होंगे। इस अवसर पर अमृत सम्मान से सर्वश्री दयानन्द भार्गव,जयपुर, लक्ष्मीनारायण चातक, जयपुर, भुपेद्र तनिक, बांसवाडा, देवीप्रसाद गुप्त, बीकानेर, माधव दरक, कुंभलगढ़, तनसुखराम शर्मा श्रीगंगानगर, नरपत सिंह सांखला, बीकानेर, बजरंगलाल विकल, बूंन्दी तथा श्रीमती संतोष सांघी, जयपुर सम्मानित होंगे। अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों में श्रीमती दीप्ति कुलश्रेष्ठ, जोधपुर को मीरा पुरस्कार,श्रीमती पद्मजा शर्मा जोधपुर को सुधीन्द्र, श्री हरदान हर्ष, जयपुर को कथा विधा का रांगेय राघव, श्री रमेश खत्री, जयपुर को नाटक विधा का देवीलाल सामर,श्री लहरीराम मीणा को देवराज उपाध्याय, श्री हरदर्शन सहगल,बीकानेर को कन्हैयालाल सहल, श्री गोविन्द भारद्वाज को शम्भुदयाल सक्सेना एवं श्री देशवर्धन सिंह, अजमेर को सुमनेश जोशी पुरस्कार अर्पित किये जायेंगे। महाविद्यालय एवं विद्यालय स्तरीय पुरस्कारों में डाॅ. सुधा गुप्ता पुरस्कार सुश्री जाह्नवी केवलिया,बीकानेर,चन्द्रदेव शर्मा (कविता विधा) पुरस्कार श्री रत्नेश दाधीच, उदयपुर, (कहानी विधा) में सुश्री विभा पारीक,बीकानेर एवं परदेशी पुरस्कार (कहानी विधा) में कु. श्रेया सिंह धाभाई, उदयपुर सम्मानित होंगें।
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