लोक की निकटता और विशालता को समझना गहन सागर में गहरे गोते लगाने जैसा है। डॉ. महेन्द्र भानावत ऐसे गोता लगाने वालों में निपुण हैं। उन्हें डूबना भी आता है और तैरकर किनारे आ जाना भी। यह बात मालवी लोकसाहित्य के ख्यातनाम लेखक डॉ. पूरन सहगल ने ‘गवरी’ नामक बालोपयोगी पुस्तक का लोकार्पण करते कही। उन्होंने कहा कि गवरी जनजातीय भीलों का आनुष्ठानिक नृत्य है। अनेक चित्रों से सज्जित यह पोथी बालकों को भीली जीवन के आस्थानुरंजन को समझने के साथ-साथ उनके जीवनानंद की उमंग और उत्साह भी देगी।
कृति के प्रकाशक बाल साहित्य के सुधी लेखक राजकुमार जैन ‘राजन’ ने कहा कि उन्होंने अब तक लगभग डेढ दर्जन लेखकों से विभिन्न विधाओं में बाल साहित्य की पुस्तकें लिखवाई और उनके पंजाबी, ओडिया, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, सिंधी तथा कन्नड में अनुवाद करा लगभग 50 हजार की किताबें देश की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में निशुल्क भेंट की हैं।
लेखक डॉ. महेन्द्र भानावत ने कहा कि मैंने कविता, कहानी, एकांकी, गल्प तथा कंठासीन कथा-कथन को लेकर एक दर्जन से अधिक बाल पुस्तकों का प्रणयन किया है। अब श्री राजन के जुडने से उनकी चाह के अनुसार मुझे लोक विधाओं की विविध पुस्तकें लिखने में सेवाजनित प्रसन्नता ही होगी। इससे बालकों में परम्परागत समृद्ध विरासत के प्रति लगाव के साथ-साथ उनके संरक्षण को भी बल मिलेगा।
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