उदयपुर, अशोक नगर स्थित श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में बिराजित आचार्यश्री सुनीलसागरीज महाराज ने प्रात:कालीन धर्मसभा में कहा कि पुरूषार्थी जीव कभी भी परावलम्बन जीवन नहीं जीते हैं। जीव जितना ज्यादा स्वाधीन होता है उतना ज्यादा सुखमयी होता है। इसीलिए ज्ञानी और पुरूषार्थी व्यक्ति स्वाधीन जीवन जीते हैं। इन्हें पराधीनता स्वीकार्य नहीं होती है। पराधीनतापूर्वक किया गया कार्य अच्छा नहीं होता है। व्यक्ति को किसी वस्तु की आदत पराधीन बना देती है। लोगों में देखा जाता है कि उनका पेट तम्बाकू और चाय के बिना साफ नहीं होता है। वो कभी किसी से बात नहीं करे तो बैचेनी महसूस होती है। ऐसा पराधीन जीवन सुश्रावकों के लक्षण नहीं होते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि मुनियों का जीवन परम स्वावलम्बी होता है। मुनि को जरा- जरासी बातों में व्यवस्था नहीं चाहिये क्योंकि उनका जीवन पहले से ही व्यवस्थित होता है। यह मुनियों से सीखना चाहिये कि जीवन को एक आदर्श और व्यवस्थित कैसे बनाया जाए। मुनि कभी किसी से बन्धे नहीं होते हैं। अपना कार्य स्वयं ही करते हैं। मुनि केवल आहरचर्या को श्रावक के घर पडग़ाहन आदि करते हैं जो भी नवधा भक्ति पूर्वक अगर विधि मिल जाए ते जाते हैं। दान-पूजा श्रावक के दो मुख्य कर्तव्य है। दान में सुपात्रों को आहार देना सबसे श्रेष्ठ दान हैं। श्रावक का कर्तव्य है कि वह अपने सामथ्र्य के अनुसार मुनि त्यागी को पडग़ाहन आदि नवधा भक्ति पूर्वक आहार दें। लेकिन ध्यान रहे कि उसमें द्रव्य भी उसका ही होना चाहिये। दूसरों का द्रव्य लेकर दान देना यह भी एक तरह की चोरी ही है।
आचार्यश्री ने कहा कि मन, मचन, काय इन तीनों की निर्मलता से ही दिया हुआ आहार मुनिराज की तप साधना में सहायक होता है क्योंकि कहा भी जाता है कि जैसे होगा अन्न, वैसा होगा मन। कोई काम सिर्फ नाम और गिनती के लिए नहीं करना चाहिये। मुनियों की तरह स्वावलम्बी बनने का प्रयास करो। घर में नौकर-चाकर हो तो भी स्वयं के काम स्वयं भी करो। आप अगर ऐसा करोगे तो आपको देख कर आपके बच्चे भी वैसा ही करेंगे। धर्म के संस्कार बच्चों में दें। अपने जीवन वमें पराधीनता को छोड़ कर स्वाधीन होने का पुरूषार्थ करें जिससे आपके साथ दूसरोंं का जीवन भी मंगलमयी हो।
धर्मसभा का शुभारम्भ मंगलाचरण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। अध्यक्ष रोशन चित्तौड़ा, व्यवस्थापक अजीत मानावत, महामंत्री अशोक गोधा, गजेन्द्र मेहता आदि ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट एवं दीप प्रज्वलन जैसे मांगलिक आयोजन सम्पन्न करवाए।
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