GMCH STORIES

जैविक एवं समन्वित कृषि प्रणाली को बढावा देने की जरूरत

( Read 21642 Times)

18 Nov 17
Share |
Print This Page
जैविक एवं समन्वित कृषि प्रणाली को बढावा देने की जरूरत भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संगठन (आई.ऐ.यू.ऐ.) द्वारा प्रोयोजित ४२ वें कृषि विश्वविद्यालय कुलपति सम्मेलन का समापन १८ नवम्बर, २०१७ को अपरान्ह उदयपुर के सीटीएई महाविद्यालय में हुआ। उल्लेखनीय है कि इस दो दिवसीय अधिवेशन का आयोजन १७-१८ नवम्बर, २०१७ को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा किया। सम्मेलन का मुख्य विषय कृषि शिक्षा का वैश्वीकरण ‘‘भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका एवं दायित्व‘‘ रखा गया था।


आयोजन सचिव व अनुसंधान निदेशक डॉ. अभय कुमार मेहता ने बताया कि सम्मेलन मे पांच तकनीकी सत्रों का आयोजन किया। पहले तकनीकी सत्र में प्राचीन कृषि पद्धतियों का विकास, पुरातन कृषि पद्धतियों द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन तथा पशुधन के महत्व के बारे में कृषि शिक्षा का वर्तमान स्तर एवं भावी चुनौतियों में कृषि विश्वविद्यालयों का महत्व, तीसरे तकनीकी सत्र में वैश्विक कृषि शिक्षा के बदलते स्वरूप पर व्याख्यान हुए एवं उन पर पेनल द्वारा चर्चा कर मुख्य सिफारिशें तैयार की गई । प्लेनरी सत्र की अध्यक्षता असम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं आई.ऐ.यू.ऐ. के अध्यक्ष प्रो. के.एम. बजरबरूआ ने, अध्यक्षता एमपीयूएटी कुलपति प्रो. यू.एस. शर्मा, मानद सचिव प्रो. आर.पी. सिंह व जूनागढ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ऐ.आर. पाठक ने की। रिपोर्टिंग डॉ. सुमन सिंह व डॉ. के.बी शुक्ला ने तथा मंच संचालन क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डॉ. एस. के. शर्मा ने की।
सम्मेलन में विभिन्न सत्रों में निम्न अनुसंशाएं तैयार की गई जिन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् केन्द्र एवं राज्य सरकारों, कृषि संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों एवं नीति निर्धारकों को भेजा जायेगा।

१. केन्द्र एवं राज्य सरकारों को कृषि विश्वविद्यालयों में शिक्षा अनुसंधान एवं प्रसार कार्यो के लिए अधिक वित्तीय सहायता देनी चाहिये।
२. सरकार को कृषि शिक्षा को एकीकृत करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के तहत ही रखना चाहिये।
३. पुरातन व प्राचीन कृषि ज्ञान एवं पद्वतियों को वर्तमान कृषि पाठ्यक्रम मे शामिल किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण प्राचीन कृषि ज्ञान को आधुनिक अनुसंधान मे सम्मिलित कर वर्तमान कृषि विकास में लागू करना चाहिये। इस संदर्भ में महाराणा प्रताप के काल में पंडित चक्रपाणी मिश्र द्वारा रचित विश्व वल्लभ वृक्षआयुर्वेद का उल्लेख करते हुए इस ग्रंथ को समकालीन कृशि विकास म उल्लेखनीय माना गया।
४. माननीय प्रधानमंत्री द्वारा अनुमोदित सन् २०२२ तक कृषकों की आय को दो गुना बढाने के संदर्भ में जैविक खेती एवं समन्वित कृषि प्रणाली को अधिकाधिक बढावा देने का प्रयास किया जाए जिससे कम लागत में कृषि के विभिन्न उपादानों से अधिक आय मिल सके।
५. कृषि उत्पादन बढाने के लिए जल संरक्षण को ध्यान में रखकर सिंचाई पद्वतियां लागू की जाए।
६. पैरा-मेडिकल की तर्ज पर कृषि में भी पैरा-एग्रीकल्चर कोर्सेज, डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्सेज तैयार किये जाऐं जिससे रोजगार के अवसर बढ सकें। इस हेतु महिलाओं के लिए विशेष कोर्स तैयार किये जायें।
७. आईएयूए को वैश्विक स्तर पर कृषि शिक्षा के विकास, फैकल्टी में दक्षता के विकास के लिए नीति पत्र तैयार करने की अनुश्ंासा की गई।
८. राज्य सरकारों, आईसीएआर व राज्य कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से निजी कृषि शिक्षण संस्थानों एवं कृषि उत्पादों के न्यूनतम मानक तय करने एवं उन्हें सुनिश्चित करने की व्यवस्था हो।
९. सम्मेलन में पशुचिकित्सा के क्षेत्र में अधिक ध्यान देने सीटें बढाने एवं विदेशी छात्रों को प्रोत्साहित करने की सलाह दी गई तथा न्यूनतम १०० सीटों पर प्रवेश देने की बात की गई।
१०. वेटेनेरी एवं संबधित विषयों एवं मत्स्य पालन को इन्टर-डिसीप्लिनरी बनाते हुए अन्य कृषि शिक्षा पाठ्यक्रमों के साथ समन्वित करने के प्रयास किये जायें।
११. आईएयूए एवं आईसीएआर का एक कॉमन पोर्टल बनाया जाय।
१२. राज्य कृषि विश्वविद्यालय में यथोचित फेकल्टी की भर्ती, फन्डस की पूर्ती एवं पेंशन जैसी सामान्य समस्यों का समाधान राज्य सरकारों के स्तर पर प्राथमिकता के साथ किया जाये।
विश्वविद्यालय कृषि सूचना केंद्र प्रभारी प्रो. आई. जे. माथुर ने बताया कि प्रातः ९.०० बजे एमपीयूएटी कुलपति प्रो. यू.एस. शर्मा के सानिध्य मे देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने सीटीऐई परिसर मे नवस्थापित टैक्नोलोजी पार्क का अवलोकन कर विभिन्न जानकारियॉ हासिल की।

Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines , Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like