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डेयरी व्यवसाय मे सहकारिता का उदय, चुनौतियां एवं समाधान

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28 Jun 17
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सन् १९४६ मे १४ दिसम्बर को डेयरी व्यवसाय मे सहकारिता का खेडा जिले मे अमूल के नाम से शुभारम्भ हुआ एवं अमूल कोपरेटिव सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन हुआ। इसकी आवश्यकता इसलिये हुई क्योकि इससे पूर्व किसानों का मिडिल मेन या दलालों द्वारा शोषण किया जाता था एवं दुग्ध की कीमत भी अत्यधिक कम दी जाती थी। कई मर्तबा दूध खट्टा हो जाता था एवं इससे किसानों का काफी नुकसान होता था। इस समय एकमात्र पोलसन डेयरी थी जोकि किसानों को दूध के वाजिब कीमत नही देती थी और किसान दूध पैदा करने मे रूचि नही लेते थे।
ऐसी परिस्थिति मे एक ओजस्वी किसान नेता श्री त्रिभुवनदास जी पटेल के नेतृत्व मे खेडा जिले के किसान सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिले और अपनी समस्या उनके सामने रखी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किसानो को सहकारिता अपनाने की सलाह दी और इस प्रकार से सहकारिता का खेडा जिले मे उदय हुआ।
इसके पश्चात डॉ. वी कुरियन के नेतृत्व मे सहकारिता के सिद्वान्त को काफी बल मिला और सबसे पहले माडर्न डेरी की स्थापना डॉ. कुरियन द्वारा की गई, जोकि सहकारिता के सिद्वान्त पर थी और जिसका उददेश्य किसानों के दूध को वाजिब कीमत पर खरीद कर शोषण से मुक्ति दिलवाना था और साथ ही दूध को अमूल ब्रान्ड से बाजार मे बेचना था। इससे डेयरी का एक व्यवसायीकरण हुआ अैार किसानों का झुकाव डेयरी व्यवसाय मे बढता गया। श्री त्रिभुवनदास के पटेल, डॉ. वी कुरियन एवं उनकी टीम के सदस्यों द्वारा लगातार मेहनत और लगन से सहकारिता के क्षेत्र मे कार्य किया गया और कुछ ही वर्षो मे मेहसाना, बनासकांठा, बरोडा, साबरकांठा और सूरत मे डेयरी यूनियन का उदय हुआ।
धीरे धीरे गुजरात से प्रारंभ हुआ सहकारिता का सिद्वान्त पूरे देश मे फैल गया और किसान दूध व्यवसाय से जुडते चले गये। यहाँ तक कि आज दुग्ध उत्पादन मे भारत विश्व मे पहले स्थान पर है।
डेयरी सहकारिता का उदय सबसे पहले अमूल से हुआ जिसमे सोसाइटी ग्राम स्तर पर है और जिला स्तर पर यूनियन है ओर राज्य स्तर पर फेडरेशन है।
इस प्रकार से सहकारिता द्वारा दुग्ध के क्षेत्र मे क्रांन्ति आ गई है जोकि सहकारिता की देन है और इससे किसानों के जीवन स्तर मे काफी सुधार हुआ है और ग्राम स्तर पर अथव्यवस्था मजबूत हुई है। ग्रामीण क्षेत्र मे किसानों को आर्थिक रूप से सम्बल प्रदान करने वाला डेयरी सेक्टर ही है।
भारत मे सहकारिता के माध्यम से डेयरी मे क्षेत्र मे जहाँ एक अेार काफी प्रगति हुई है वहीं दूसरी ओर नई नई समस्यायें भी उत्पन्न हुई है। बढते हुये सहकारिता के कदम के समक्ष नई नई चुनौतियां खडी है जिनसे समय रहते सामना करना आवश्यक है। निम्न प्रमुख चुनौतियां है जिन पर समय रहते गौर करना अनिवार्य है ः-
१. सबसे प्रमुख चुनौती दुग्ध व्यवसाय के समक्ष मिलावटी दूध है जिसका दिनो-दिन मार्केट मे फैलाव या मात्रा बढ रही है जोकि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है ओर इसके लिये कठोर उपाय करने आवश्यक है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम सख्ती के साथ लागू करना आवश्यक है।
२. किसानो द्वारा दुग्ध उत्पादन मे स्वच्छता का पूर्ण रूप से अभाव है। स्वच्छ दुग्ध उत्पादन जहाँ एक ओर मुख्य उददेश्य है वहीं दूसरी ओर गांवों मे सफाई का ध्यान नही रखा जाता इससे दुग्ध की गुणवत्ता मे कमी आती है। अतः किसानों को विभिन्न ट्रेनिंग के माध्यम से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन की ओर अग्रेसित करना समय की मांग है।
स्वच्छ दुग्ध उत्पादन कार्यक्रम के माध्यम से दुग्ध उत्पादकों को जागरूक करना आवश्यक है जिससे दूध की गुणवत्ता मे सुधार आये।
३. किसानों द्वारा दुग्ध उत्पादन को बढाने के लिये पशुओं को विभिन्न प्रकार के टीके लगाये जाते है जिससे पशुओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड होता है और दुग्ध की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पडता है। इसके रोकथाम के लिये कठेार उपाय आवश्यक है।
४. पशुधन का बचाव एवं नस्ल सुधार हेतु पशुओं मे बीमारियों रोकथाम आवश्यक है हालांकि सरकारें इस दिशा मे काफी प्रयास कर रही है। बीमारियों की रोकथाम हेतु एफएमडी/बीक्यू/एचएस टीका लगाना आवश्यक है।
५. भारत मे दुग्ध क्षेत्र मे वर्तमान मे प्रोसेसिंग संयंत्रों की बहुत कमी है। दूध को सही सलामत रखने के लिये ठंडा तापमान एवं प्रोसेसिंग आवश्यक है। माडर्न प्रोसेसिंग प्लान्टस की कमी भी इस क्षेत्र मे भारी चुनैाती है, जिसे समय रहते पूर्ण करना आवश्यक है। साथ ही कोल्ड चेन को भी मजबूत करना होगा। ४०-५० साल पुराने प्लांटस का नवीनीकरण करना आवश्यक है।
६. इसी क्रम मे यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि भारत मे पशुधन की संख्या के मुकाबले मे पशु चिकित्सकों की बेहद कमी है एव बीमार पशुओं को समय पर इलाज नही मिल पाता औेर दम तोड देते है। सहकारी क्षेत्र द्वारा फिर भी चिकित्सा सुविधा कुछ हद तक उपलब्ध कराई जाती है।
७. भारत मे उपलब्ध दुधारू पशुओं का औसत दूध उत्पादन बेहद कम है ऐसे मे दूध उत्पादन की अपेक्षा पशुओं की संख्या अधिक है जिनके चारे-पानी की व्यवस्था अपने आप मे एक जटिल समस्या है।

८. साथ ही दुग्ध उत्पादन अधिकतर गांवों मे ही होता है एवं ऐसे मे दूध को दूर-दराज के इलाको से इकठ्ठा करना एक बहुत बडी चुनौती है, चूंकि गर्मियों मे भारत मे तापमान ४६-५० डिग्री सेल्सियश मे लगभग पहुंच जाता है जो अत्यधिक ह और ऐसे मे दूध को सुरक्षित रखना संभव नही है। इस प्रकार से डेयरी व्यवसाय की सम्मुख काफी समस्यायें है और समय रहते उनका निराकरण जरूरी है।
९. जुलाई २०१७ से जी एस टी लागू होने के फलस्वरूप घी एवं बटर एवं पनीर पर १२ प्रतिशत की दर से टेक्स वसूल करना प्रस्तावित है, जिससे दुग्ध उत्पादो की दरें काफी बढ जायेगी।।
समाधान ः
दुग्ध व्यवसाय मे जो नई-नई चुनौतियां सामने आ रही है उनका समय रहते निराकरण किया जाना आवश्यक है। निम्न बिन्दुओं पर यदि सरकार द्वारा कदम उठाये जाते है तो समस्याओं को दूर अथवा कम किया जा सकता है ।
१. ज्यादा से ज्यादा सहकारिता के क्षेत्र मे दुग्ध संयंत्र लगाये जायें, जिससे कि दूग्ध की प्रोसेसिंग की जा सके और सरप्लस दूध का पाउडर और घी बन सके। साथ ही संयंत्रों एवं ग्राम स्तर पर दूध की टेस्टिंग की व्यवस्था हो जिससे मिलावटी दूध की रोकथाम हो सके।
२. समितियों पर बल्क मिल्क कूलर लगाये जायें जिससे दूध की तुरन्त ठंडा किया जा सके और इससे दुग्ध की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव नही पडें।
३. उन्नत किस्म के दुधारू जानवर किसानों को उपलब्ध करवाये जायें जिससे प्रति जानवर दूध उत्पादन मे वृद्व हो और किसान का दूध उत्पादन, पशुपालन मे विश्वास सुदृढ हो। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कृत्रिम गर्भाधान को बढावा दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है। साथ ही पशु चिकित्सालय खोलना अैार पशु चिकित्सकों की भर्ती भी जरूरी है जिससे उत्पादकों को आवश्यकता पडने पर उनके पशुओं के लिये चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो सके।
४. पशुओं के संक्रामक रोग से मृत्यु पर उसका सीधा असर पश्ुपालक की आर्थिक स्थिति पर पडता है। अतः इससे बचाने के लिये यद्व स्तर पर सभी दुधारू पशुओं हेतु टीकाकरण एवं बीमा योजना प्रारंभ की जाये।
५. देश मे पशुओं को एफ. एम. डी. मुक्त करने हेतु भारत सरकार द्वारा युद्व स्तर पर पल्स पोलियों अभियांन की भांति अभियान चलाकर इस बीमारी से मुक्ति दिलाई जाये।

६. मिलावट की रोकथाम के लिये बनाये गये कानून सख्ती से लागू किया जायें और समय-समय पर दूध की जॉच हेतु निरीक्षकों की उपलब्धता बढाई जाये।
७. भारत सरकार द्वारा मोलासिस पर एक्साइज ड्यूटी रू. ७५० प्रति टन व ३ प्रतिशत सेस लिया जा रहा है जिससे पशुओं को दिये जाने वाले पशुआहार की लागत मूल्य मे निरन्तर वृद्वि हो रही है। अतः पशुआहार बनाने हेतु काम मे ली जाने वाली मोलासिस को एक्साइज, सेस एवं वैट से मुक्त किया जाना उचित है, जिससे कि पशुआहार की लागत मे कमी कर दुग्ध उत्पादन बढाया जावें।
८. नई-नई रिसर्च के द्वारा भी दूध व्यवसाय को मजबूत किया जा सकता है। विदेशों से उन्नत तकनीकी लाकर किसानों को प्रशिक्षित किया जाये और उनको दूध उत्पादन मे रूचि पैदा की जाये, जिससे उनकी आजीविका चल सके।
उपरोक्त सभी उददेश्यों की प्राप्ति हेतु डेयरी उद्योग मे सहकारिता ही एकमात्र विकल्प है जिसके द्वारा भारत के किसानों की माली हालत मे बदलाव हो सकता है। खेती के साथ-साथ दूध उत्पादन ही एक ऐसा व्यवसाय है जिसके देश की अर्थव्यवस्था जोकि किसानों पर निर्भर है उसमे आशातीत बदलाव आ सकता है।
चूंकि भारत विश्व मे दुग्ध उत्पादन मे पहले स्थान पर है और दुग्ध उत्पादों का तेजी से शहरों व गांवो मे उपभोग बढ रहा है। अतः दुग्ध उत्पादन को बढावा देना समय की आवश्यकता है और इससे समाज मे बदलाव आना निश्चित है।

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