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सुनाते हो तो सुनने का साहस भी रखो: आचार्यश्री सुनील सागरजी

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12 Oct 17
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सुनाते हो तो सुनने का साहस भी रखो: आचार्यश्री सुनील सागरजी
उदयपुर, हुमड़ भवन में चातुर्मास कर रहे आचार्य सुनीलसागरजी महाराज ने मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में उपस्थित श्रावकों से कहा कि दुनिया में क्या तो ले कर आये हो और क्या लेकर के जाओगे। सामने वाले से दो मीठे बोल बोल दोगे तो तुम्हारा क्या चला जाएगा। अगर किसी गरीब, असहाय की मदद कर दी तो दुनिया को बोल- बोल कर बताना कया जरूरी है। लेकिन कई दानियों की आदत होती है जहां भी बैठेेंगे या बातचीत करेंगे तो ज्यादातर स्वयं के ही गुणगान करेंगे। मेंने ऐसा किया, मैंने वैसा किया, आज वो जो भी है मेरी वजह से है, अगर उस समय मैं उसकी मदद नहीं करता तो आज वो वहां नहीं होता जहां पर आज वो है आदि- आदि। आचार्यश्री ने कहा कि अगर आप किसी को अच्छी- बुरी बातें सुनाते हो तो उन्हें सुनने का भी साहस रखो। जिस तरह से गुलाब का फूल, चम्पा, चमेली का फूल होते हैं, वह अपनी खुशबू से ही पहचाने जाते हैं। वो किसी को अपने पास नहीं बुलाते हैं, उनकी खुशबू और उनकी खूबसूरती देखकर व्यक्ति अपने आप उनके पास खींचे चले आते हैं। उसी तरह तरह से अगर आपमें चारित्र्य की शुद्धि है, ईमानदारी और सच्चाई की खुशबू है तो लोग वैसे ही आपके पास खींचे चले आएंगे और आपके सामने क्या आपकी पीठ पीछे भी आपकी तारीफ करेंगे, स्वयं को स्वयं तारीफ करने की आवश्यकता नहीं होगी।
आचार्यश्री ने कहा कि कई लोगों को निन्दा का रस पान करने में बड़ा आनन्द आता है। जब तक वो किस की निन्दा नहीं करेंगे न तो चैन से खा पाएंगे और ना ही सो पाएंगे। दूसरों की निन्दा करेंगे तो आनन्द की अनुभूति करेंगे और कोई उनके लिए बोलेगा तो उन्हें गुस्सा आ जाएगा वह बिगड़ जाएंगे। वचन वो ही बोलिये जो मीठे हों। अगर आप किसी की पीठ पीछे निन्दा का भाव रख कर कुछ भी बोल रहे हो तो वो ही वचन उसके सामने भी बालने का साहस रखो। जो बात आप स्वयं नहीं सुनने की ताकत नहीं रखते वह दूसरों को क्यों सुनाते हो। इसलिए जीवन में सहनशीलता के साथ ही वचनों पर भी संयम रखो ताकि बेजह से होने वाले विवादों से बचा जा सके।
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