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श्रीमद् भागवत मे जीवनदायिनी दृष्टि

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15 Sep 17
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श्रीमद् भागवत मे जीवनदायिनी दृष्टि
उदयपुर, जीने के लिए जैसे अन्न, जल, वायु आदि चाहिए वैसे ही अच्छा जीवन जीने के लिए मधुर व शिष्ट व्यवहर भी आवश्यक है। मीठी वाणी देवत्व का स्वरूप प्रदान करती है।।यह बात गुरुवार को नारायण सेवा संस्थान की ओर से गया (बिहार) में दिव्यांगजनों की निशुल्क चिकित्सा एवं पुनर्वास कार्यऋम के सहयोगार्थ आयोजित सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन डॉ. संजय कृष्ण सलिल जी ने कही। उन्होंने कहा कि प्रेम पंचम पुरूषार्थ है। जो दूसरे से प्रेम करता है परमात्मा उसे ही अपनी भक्ति का अधिकार भी देता है। प्रेम पूर्वक व्यवहार करने वाले से ही परमात्मा प्रेम करता है। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होने कहा कि जो दूसरे की पीडा को समझकर उसे दूर करे वही सच्चा मित्र है। जीवन में अगर मित्र बनाना है तो भगवान को बनाएं। श्रीमद भागवत कथा कोई कल्पित गाथा नहीं है बल्कि उलझे हुए जीवन को सुलझाकर सत्य और आध्यात्मिक मार्ग को प्रशस्त करने वाली जीवनदायनी दृष्टि है। कार्यऋम का सीधा प्रसारण संस्कार चैनल पर हुआ। संचालन कुंज बिहारी मिश्रा ने किया।

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