भिखारी सिर्फ भीख ही नहीं लेते हैं, वह सीख भी देते हैं। बाजारों में, गली मोहल्लों में, आफ घरों में हमेशा कोई न कोई भिखारी भिक्षा लेने आते हैं। लोग उन्हें कभी देते हैं, कभी नहीं देते हैं तो कभी- कभी उन्हें दुत्कार भगा भी देते हैं। लेकिन इतना होने के बावजूद वो दूसरे दिन फिर आ जाते हैं भिक्षा लेने को। उन्हें इन सब चीजों की परवाह नहीं होती है कि कौन क्या कह रहा है, चाहे दुत्कार भी रहा है लेकिन उसका एक ही लक्ष्य होता है येनकेन प्रकारेण उसे भिक्षा लेना ही है, इसके बिना पेट भरने वाला नहीं है। सीखने वाले भिखारी से भी सीख सकते हैं। पहली बात कभी भी धैर्य मत खोओ, दूसरा अपने लक्ष्य से मत भटको, किसी भी बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्ा* मत बनाओ। दुनिया है, यहां कई तरह के लोग बसते हैं। सभी का दीमाग एक जैसा नहीं होता है। कोई दयालु हैं तो कोई दुष्ट प्रवृत्ति के भी हैं। लेकिन सभी के साथ निभा कर ही चलना पडेगा क्योंकि रहना तो इनके ही बीच में हैं। इसी तरह से आप त्याग, तपस्या, प्रभु की साधना, आराधना करो। कोई कुछ भी कहे, सुनो और आगे बढते जाओ। लोग आपका साथ देने वाले कम और भटकाने वाले ज्यादा मिलेंगे। आप लक्ष्य से भटक गये तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। उक्त विचार आचार्य सुनील सागरजी महाराज ने हुमड भवन में आयोजित प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि मिथ्यात्व ही पतन का कारण है, जैन, अजैन सबको इस पाप से बचाकर सम्यक रूपी धन बढाना चाहिये। दुनिया में कोई कितना भी कुछ कर ले, धन- दौलत, वैभव बटोर ले लेकिन जब तक विवेक रूपी संयम- नियम जीवन में नहीं आएगा तब तक सभी व्यर्थ है मिथ्या है। दुनियादारी चलाने के लिए पैसा कमाना, धन इकट्ठा करना जरूरी होता है, इससे इंकार नहीं है लेकिन जिस तरह से आप धन का बेंक बैंलेंस बढाते रहे हो उसी तरह त्याग, तपस्या ओर साधना का भी बेंलेंस बढाओ क्योंकि मोक्ष के मार्ग में यही बैलेंस काम आएगा।
महामंत्री सुरेश पदमावत ने बताया कि आचार्यश्री आदिसागरजी महाराज अंकलीकर परंपरा के द्वितीय पट्टाधीश आचार्यश्री महावीरकीर्ति महाराज के शिष्य एवं तपस्वी सम्राट आचार्यश्री सन्मतीसागरजी महाराज के दीक्षा गुरु वात्सल्य रत्नाकर आचार्यश्री विमलसागरजी महाराज की मंगलवार को अश्विन कृष्ण सप्तमी जन्म जयंती अवसर पर विनयांजलि समर्पित करते हुए कहा कि विमल ही तन-मन, विमल ही जीवन ऐसे गुरु विमलसिंधु को बारम्बार प्रणाम है। अपने जीवन में मल दूर कर निर्मल जीवन जीने वाले कठोर साधक का आशीर्वाद जिन्हें मिल जाता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। जो भी दुखिहारा उनके चरणों में आता उसे णमोकार मंत्र देते, उसका जीवन बदल जाता। गुरु महावीरकीर्ति से ज्ञान के संस्कार पाए, वात्सल्य रत्नाकर कहलाए, छोटी सी जिंदगी में वह काम कर दिखाया जो 1॰॰ वर्ष में भी न कर पाए।
ऐसे गुरु चरणों में कोटिशः प्रणाम करते है व कर्तव्य बुद्धि से काम करे। कर्ता बुद्धि में अहंकार होता है व कर्तव्य बुद्धि में प्रज्ञा व विवेक होता है। गुरु उपदेश को पाकर मोह बुद्धि छोडो, अन्याय,
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