GMCH STORIES

भारत को नया नहीं, संवेदनशील बनाना होगा

( Read 8341 Times)

14 Feb 18
Share |
Print This Page
भारत को नया नहीं, संवेदनशील बनाना होगा  ललित गर्ग 
आज जब हम अपने आस-पास की स्थिति को नजदीक से देखते हैं तो पाते हैं कि हम कितने असभ्य और असंवेदनशील हो गए हैं। सिर्फ हम अपने बारे में सोचते हैं और हमें अपनी चिंतायें हर वक्त सताती है लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि समाज के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियां भी है। देश में ऐसा कोई बड़ा जन-आन्दोलन भी नहीं है, जो संवेदनहीनता के लिये जनता में जागृति लाए। राजनीतिक दल और नेता लोगों को वोट और नोट कबाड़ने से फुर्सत मिले, तब तो इन मनुष्य जीवन से जु़ड़े बुनियादी प्रश्नों पर कोई ठोस काम हो सके।
गतदिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर और सन्देश वाइरल हुआ, जिसमें एक गर्भवती महिला को किसी शादी में भारी-भरकम लाइट उठाये, बड़ी तकलीफ के साथ चलते हुए दिखाया गया है। इसे देखकर आपका भी सिर शर्म से झुका होगा, आत्मा कराही होगी। खुद की उपलब्धियों पर शर्मिन्दगी महसूस हुई होगी। जीवन से खिलवाड़ करती एवं मनुष्य के प्रति मनुष्य के संवेदनहीन-जड़ होने की इन शर्मनाक एवं त्रासद घटनाओं के नाम पर आम से लेकर खास तक कोई भी चिन्तित नहीं दिखाई दे रहा है, तो यह हमारी इंसानियत पर एक करारा तमाचा है। इस तरह समाज के संवेदनहीन होने के पीछे हमारा संस्कारों से पलायन और नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता ही दोषी है। हम आधुनिकता के चक्रव्यूह में फंसकर अपने रिश्तों, मर्यादाओं और नैतिक दायित्वों को भूल रहे हैं। समाज में निर्दयता और हैवानियत बढ़ रही है। ऐसे में समाज को संवेदनशील बनाने की जरूरत है, इस जरूरत को कैसे पूरा किया जाए, इस सम्बन्ध में समाजशास्त्रियो को सोचना होगा।
अक्सर हम दुनिया में नैतिक एवं सभ्य होने का ढ़िढ़ोरा पीटते हैं, जबकि हमारे समाज की स्थितियां इसके विपरीत है, भयानक है। जानते हैं जापान में यदि कोई गर्भवती महिला सड़क से गुजर जाती है तो लोग उसे तुरंत रास्ता दे देते हैं, उसके सम्मान में सिर से टोप उतार लेते हैं। वे जानते हैं कि यह स्त्री जापान का भविष्य अपने गर्भ में लेकर चल रही है। इसकी केयर करना हम सबकी जिम्मेदारी है। कौन जानता है यही बच्चा कल देश का बहुत बड़ा साहित्यकार, राजनेता, म्यूजिशियन, एक्टर, स्पोर्टसपर्सन बने, जिससे देश पहचाना जाए। कभी चार्ली चैपलिन, हिटलर, नेपोलियन, लेनिन, कैनेडी, लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, महात्मा गाँधी या अम्बेडकर भी ऐसे ही गर्भ के भीतर रहे होंगे! हमें गर्भ और गर्भवती स्त्री का सम्मान करना चाहिए, जापानियों की तरह। बात केवल गर्भवती महिलाओं की नहीं है, बात उन लोगों की भी है जो दिव्यांग है, या सड़क दुर्घटना में सहायता के लिये पुकार रहे हैं। किसी आगजनी में फंसे लोग हो या अन्य दुर्घटनाओं के शिकार लोग जब सहयोग एवं सहायता के लिये कराह रहे होते हैं, तब हमारे संवेदनहीन समाज के तथाकथित सभ्य एवं समृद्ध लोग इन पीड़ित एवं परेशान लोगों की मदद करने की बजाय पर्सनल फोन से वीडियो बनाना जरूरी समझते हैं। मुंबई के रेस्टोरेंट में हुई आगजनी में ऐसे ही शर्मसार दृश्य हमारी सोच एवं जीवनशैली को कलंकित कर रहे थे। हम भले ही तकनीकी तौर पर उन्नति करके विकास कर रहे हैं लेकिन अपने मूल्यों, दायित्वों और संस्कारों को भुलाकर अवनति को गले लगा रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत बनाने की बात कर रहे हैं तो सबसे पहले इंसान बनाने की बात करनी होगी, इंसानियत की बुनियाद को मजबूत करना होगा। किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति, किसी गर्भवती महिला, किसी दिव्यांग व्यक्ति की सहायता हम सब की जिम्मेदारी है। हम ऐसा समाज बनायें कि किसी गर्भवती औरत को ऐसे हालात से न गुजरना पड़े। आप करीना कपूर की गर्भावस्था तक मत जाइयेगा। करीना कपूर की गर्भावस्था के फोटो सेशन और इस दृश्य में, बहुत अन्तर है। यह पेट भरे चकाचैंध वाली जिंदगी और भूखी जिंदगी का अंतर है! यदि आप सक्षम हैं और ऐसा कोई दृश्य आपके सामने से गुजर रहा हो तो उसे एक दिन की मजदूरी निकालकर दे दें, उससे कहें कि तुम आराम करो, आज के रोटी के पैसे हमसे ले लो। यह कोई दया नहीं है, यह कोई समाधान भी नहीं है फिर भी ऐसे हालात में आपकी संवेदनाओं का जागना जरूरी है, कोई औरत शौक से अपने सिर पर बोझ नहीं उठाती है, रोटी मजबूर करती होगी उसे। किसी गरीब को जूठन में से दो निवाले पेट की भूख को शांत करने के लिये चुनने पड़े, ये स्थितियां हमारे विकास पर, हमारी सभ्य समाज व्यवस्था पर एक गंभीर प्रश्न है। कितना दुःखद है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हमें ऐसे दृश्य देखने पड़ते हैं। यह दृश्य किसी भी सभ्य सामाज के चेहरे का नकाब उतार लेती है। सरकारों के सारे दावों और तामझाम को एक पल में मटियामेट करके रख देती है!
कहीं-न-कहीं समाज की संरचना में कोई त्रुटि है, तभी एक पिता अपने मासूम बच्चे को पीट-पीटकर मार डालता है, एक मां अपने नवजात शिशु के जोर-जोर से रोने पर उसे पटक-पटक कर मार डालती है तो एक छात्र अपने प्रिन्सिपल को गोली मार देता है, कोई छात्र अपने सहपाठी की हत्या कर देता है -समाज में बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जिन्हें देखकर तो ऐसे लगता है कि समाज बड़े गहरे संकट में फंस चुका है समाज की बुनावट में कोई गहरी खोट है। इंसानियत, प्रेम और भाईचारा दम तोड़ रहा है। समाज में ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं कि लोग मदद कर दूसरों को जीवनदान देते हैं। हालांकि ऐसी घटनाएं बहुत कम ही दिखाई पड़ती हैं। नोएडा के निठारी के सामने एलिवेटेड रोड पर दो कारों में टक्कर हो गई थी जिस कारण दो महिलाओं सहित 4 लोग घायल हो गए थे लेकिन राहगीरों ने घटना के कुछ ही पलों के अन्दर ही घायलों को अस्पताल पहुंचाकर मानवता की मिसाल पेश की। कुछ दिन पहले भी एक सड़क दुर्घटना में घायल छात्र को एक लड़की ने अपना दुपट्टा बांधकर उसका बहता खून रोकने की कोशिश की। वह तब तक घायल छात्र के साथ रही जब तक उसके दोस्त ऑटो लेकर नहीं पहुंचे। ऐसे राहगीरों का अनुकरण जरूरी है। समाज के संवेदनहीन होने के पीछे हमारा संस्कारों से पलायन और नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता ही दोषी है। आज हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां हर इन्सान फेसबुक और अन्य सोशल साइटों पर अपने दोस्तों की सूची को लम्बा करने में व्यस्त है। घंटों-घंटों का समय फेसबुक और व्हाट्सअप पर दूरदराज बैठे अंजान मित्रों से बातचीत में बिताया जाता है। लेकिन अपने आसपास के प्रति अपने दायित्व को नजरअंदाज करके। समाज के ऐसे धनाढ्य भी हैं जो अपने आपको दानवीर एवं परोपकारी कहते हैं, अपनी फोटो खिंचवाने, किसी धर्मशाला पर अपना नाम बड़े-बड़े अक्षरों में खुदवाने के लिये लाखों-करोड़ों का दान कर देते हैं, लेकिन ऐसे तथकथित समाज के प्रतिष्ठित लोग, राजनेता, धर्मगुरु कितने भूखों की भूख को शांत करते हैं, कितने गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाते हैं, कितनी विधवाओं का सहारा बनते हैं- शायद उत्तर शून्य ही मिलेगा? फिर समाज को सभ्य, संस्कारी एवं नैतिक बनाने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को क्यों दी जाती है? ऐसे लोगों के योगदान से निर्मित होने वाला समाज सभ्य, संवेदनशील, सहयोगी एवं दयावान नहीं हो सकता।
Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Sponsored Stories
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like