राजसमन्द / बहुआयामी व तीव्रतर विकास का पर्याय राजस्थान प्रदेश अब देश व दुनिया के विकास मानचित्र पर अपनी अहम पहचान कायम करता जा रहा है। केन्द्र व राज्य सरकार की विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाओं, बहुआयामी कार्यक्रमों व सार्थक अभियानों की बदौलत आज राजस्थान हर क्षेत्र में सुनहरे विकास के इन्द्रधनुषों का मनोहारी दिग्दर्शन करा रहा है।
आँचलिक व सामुदायिक विकास के साथ ही वैयक्तिक लाभ की ढेरों योजनाओं के बेहतर सूत्रपात की बदौलत आम जन भी खुशहाल और सुकून भरे जीवन की डगर पा चुका है।प्रदेश का राजसमन्द जिला बने हालांकि कुछ वर्ष ही हुए हैं लेकिन राज्य व केन्द्र सरकार तथा जिला प्रशासन की पहल पर यह चौतरफा विकास की दृष्टि से तरक्की के उल्लेखनीय सफर पर है। ग्रामीण व शहरी दोनों इलाकों में विकास का सुनहरा मंजर मुँह बोलने लगा है। विकास का यह दौर सीमावर्ती व दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों तक में भी मुखर होता देखा जा सकता है।इन्ही में एक है सातपुलिया गाँव। पाली जिले की सीमा को छूता हुआ राजसमन्द जिले के अंतिम छोर पर बसा यह गाँव पहाड़ों व नदी नालों से घिरा हुआ है। इस गाँव को सरकारी योजनाओं ने इतना कुछ बदला दिया है कि गांव के लोग बेहद खुश नजर आते हैं।इस पहाड़ी और घाटीदार क्षेत्र में बिजली सुविधा मुहैया कराना अत्यन्त मुश्किल होने से ग्रामीणों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था। किन्तु सरकार के प्रयासों ने पूरे गाँव को सौर ऊर्जा से रोशन कर सदियों से पसरे अंधेरों को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है। सौर ऊर्जा इस गांव में हर घर को उजियारे से भर चुकी है। दिवेर ग्राम पंचायत के वार्ड पंच श्री हीरासिंह बताते हैं कि सातपुलिया गांव में सभी 65 घरों पर सौर ऊर्जा उपकरण लगाये गए हैं व गांव भर के लोग इसका पूरा-पूरा लाभ ले रहे हैं।सौर ऊर्जा ने इस गांव के लोगों की जिन्दगी में उजियारा भर दिया है। सातपुलिया गांव को सौर ऊर्जा सुविधा वाला घोषित करने का वह दिन ग्रामीण विकास के इतिहास में नया अध्याय समाहित करने वाला रहा जब 2 नवम्बर 2017 को सम्पूर्ण ग्राम के सौर ऊर्जा विद्युतीकृत होने की विधिवत घोषणा हुई।सूरज की रोशनी से अंधेरों के खात्मे का जो सुकून मिला है, उसकी तारीफ करते ग्रामीण फूले नहीं समाते। चारों तरफ घने जंगल व भरे-पूरे पहाड़ों से घिरे गांव में बरसात के मौसम में दिन में भी रात की तरह अंधेरा छाया रहता, आम दिनों में भी सूरज की रोशनी रहने तक ही घर के काम-काज हो पाते थे, सूरज अस्त हुआ नहीं कि पूरा क्षेत्र घुप्प अंधेरा ओढ़ लिया करता था।इस स्थिति में दीया या लालटेन के सिवा और कोई सहारा ही नहीं था। रोजमर्रा के काम भी प्रभावित होते, और बच्चों की पढ़ाई भी। जंगली जानवरों का भय भी बना रहता। इन सभी विषम हालातों में सदियों से अँधेरे में जी रहे सातपुलिया की खूब सारी समस्याओं का समाधान अकेली सौर ऊर्जा ने कर डाला है। नौकरीपेशा के साथ ही काम-धन्धे व खेती-बाड़ी में लगे क्षेत्र के ग्रामीणों को अपने मोबाईल को चार्ज करने के लिए 9-10 किलोमीटर दूर दिवेर जाना पड़ता था। अब यह समस्या भी नहीं रही। बच्चों की पढ़ाई के लिए रोशनी की व्यवस्था भी हो गई। घर के आस-पास जंगली जानवरों की हलचल पर भी नज़र रखने में सहूलियत हो गई है।दूसरे इलाकों से सातपुलिया गाँव में ब्याह कर आयी बहुओं को भी सूरज की ताकत ने नई जिन्दगी का अहसास कराया है। इस गांव में बहू बनकर आयी खीमाखेड़ा की लाड़ली श्रीमती लीला गहलोत कहती हैं कि उनके पीहर में बिजली थी इसलिए शुरू-शुरू में उसे सातपुलिया में आकर अटपटा लगा। किन्तु जब से सौर ऊर्जा की रोशनी का गृहप्रवेश हुआ है तब से उसे नई जिन्दगी का खुशनुमा अहसास हो रहा है। लीला कहती है कि अब सौर ऊर्जा उपकरणों की क्षमता बढ़ाने की जरूरत है ताकि शादी के वक्त पीहर से भेंट मिक्सी आदि बिजली चलित उपकरणों का उपयोग हो सके तथा टीवी देखने का आनन्द भी मिल सके।अपने पीहर देवगढ़ में बिजली का सुख पाने वाली गाँव की प्रेम बाई व उनकी बहन कहती हैं कि सरकार की रोशनी ने सभी को राजी कर दिया है। गांव के लोगों की अब यही इच्छा है कि गांव के प्राथमिक स्कूल को सैकण्डरी तक क्रमोन्नत कर दिया जाए ताकि बच्चों को पढ़ने के लिए 10 किलोमीटर दूर दिवेर तक आवागमन नहीं करना पड़े। इस समय गांव के 40 से अधिक बच्चों को पढ़ाई के लिए दिवेर जाना पड़ता है। इनके लिए जंगली जानवरों का भय, आवागमन के साधनों का अभाव व समय की विषमता जैसी कई दिक्कतें हैं जिससे इनके भविष्य पर बुरा असर पड़ रहा है। गाँव के लोग स्वच्छता के प्रति भी जागरूक हैं। हर घर में शौचालय बने हुए हैं। नैसर्गिक सौन्दर्य से लक-दक सातपुलिया गाँव का विहंगम दृश्य उत्तराखण्ड की वादियों में बसे किसी पर्वतीय ग्राम से कम नहीं लगता। ग्रामीण विकास के सरकारी प्रयासों ने इस गाँव के लोगों को चौतरफा विकास का जो सुकून दिया है वह इनके हँसते-मुस्कुराते और खिलखिलाते चेहरों से अच्छी पढ़ा जा सकता है।
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