“विज्ञान का मूल परमात्मा द्वारा दी गई बुद्धि है : डा. योगेश शास्त्री”

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Published on : 20 Jun, 18 11:06

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून

“विज्ञान का मूल परमात्मा द्वारा दी गई बुद्धि है : डा. योगेश शास्त्री” रविवार को आर्यसमाज धामावाला-देहरादून के सत्संग में गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार से पधारे विद्वान डा. योगेश शास्त्री का प्रवचन हुआ। इससे पूर्व प्रातः 8.00 बजे पं. विद्यापति शास्त्री जी के पौराहित्य में अग्निहोत्र यज्ञ सम्पन्न किया गया। यज्ञ के बाद सत्संग का आरम्भ हुआ जिसमें पं. विद्यापति शास्त्री जी का सुर व ताल में बद्ध एक मनोहर भजन हुआ। स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की कन्या सलोनी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्होंने सामूहिक प्रार्थना का आरम्भ भक्ति गीत ‘हे ईश सब सुखी हों कोई न हो दुखारी, सब हों निरोग भगवन् धनधान्य के भण्डारी’ से किया। सामूहिक प्रार्थना के बाद पं. विद्यापति शास्त्री जी ने सत्यार्थप्रकाश के बारहवें समुल्लास के मोक्ष विषयक अंश को पढ़ कर उसे पाठकों को व्याख्या सहित सुनाया। कार्यक्रम का संचालन आर्यसमाज के युवा मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने बहुत योग्यतापूर्वक किया। आर्यसमाज के प्रधान डा. महेश चन्द्र शर्मा जी सपत्नीक सत्संग में उपस्थित थे। ज्ञा. शर्मा डी.आर.डी.ओ. के सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक है और ऋषि भक्त होने के साथ समय समय पर वैदिक विचारधारा के प्रचार प्रसारार्थ लघु ग्रन्थों का लेखन व सम्पादन कर स्वयं के व्यय से उसका प्रकाशन कराते हैं और उसे स्वाध्यायशील लोगों को भेंट करते हैं। उनके प्रधानत्व में आर्यसमाज आर्यसमाज के नियमों, विधि-विधानों व परम्पराओं के अनुसार सफलतापूर्वक चल रहा है।

अपने व्याख्यान के आरम्भ में आर्य विद्वान डा. योगेश शास्त्री ने गायत्री मन्त्र का उल्लेख किया और बताया कि इस वेद मंत्र को सविता मंत्र और गुरु मन्त्र आदि के नाम से भी जानते हैं। गायत्री छन्द में 24 अक्षर होते हैं और इसमें तीन व्याहृतियां भूः, भुवः स्वः हैं। आर्यसमाज और पौराणिक सनातनी सभी बन्धु इस मन्त्र के जप व उच्चारण पर बल देते हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि इस मन्त्र ईश्वर से सद्बुद्धि, उत्तम बुद्धि व श्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की ईश्वर से प्रार्थना की गई है। डा. योगेश शास्त्री ने कहा प्रारब्ध के अनुसार मनुष्य जन्म मिलने पर ज्ञान व कर्मों के अनुसार मनुष्य की उत्तम, मध्यम और अधम स्थितियां होती हैं। परमात्मा ने मनुष्यों को ज्ञान प्राप्ति व सत्यासत्य के विवेक के लिए बुद्धि भी प्रदान की हुई है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार अन्तःकरण चतुष्टय की चर्चा भी विद्वान वक्ता ने की। उन्होंने कहा कि अन्तःकरण में मन के साथ बुद्धि भी जुड़ी हुई है। आज का युग विज्ञान का युग है। उन्होंने बताया कि इंटरनैट पर हम पुस्तकें न होने पर भी वेद मन्त्रों व उनके अर्थों को देख व पढ़ सकते हैं। ऋषि दयानन्द जी के सत्यार्थप्रकाश व अन्य ग्रन्थों को भी इंटरनैट पर पढ़ा जा सकता है। आचार्य जी ने बताया कि विज्ञान का मूल परमात्मा द्वारा मनुष्यों को दी गई बुद्धि ही है। मनुष्य के पास चार प्रकार की बुद्धि होती है जिन्हें क्रमशः बुद्धि, मेधा, ऋतम्भरा व प्रज्ञा कहते हैं। इनकी व्याख्या कर उन्होंने इनके अन्तर को अनेक उदाहरणों से श्रोताओं को समझाया। विद्वान आचार्य डा. योगेश शास्त्री ने विज्ञान की उन्नति का उल्लेख कर बताया कि आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब अनेक जटिल शल्य क्रियायें डाक्टर अपने हाथ व यन्त्रों से न कर कम्प्यूटर से संचालित रोबोट के द्वारा करते हैं। उन्होंने कहा कि रोबोट के द्वारा सफल सर्जरी का होना मनुष्य की प्रज्ञा बुद्धि का चमत्कार है। देहरादून के जौली ग्रांट क्षेत्र में स्थित हिमालयन अस्पताल के डाक्टर अंकुर मित्तल द्वारा रोबोट की सहायता से हाल में की गई सर्जरी का भी उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया।

डा. योगेश शास्त्री ने कहा कि महर्षि दयानन्द को भी प्रज्ञा बुद्धि प्राप्त थी। इसी बुद्धि से उन्होंने सत्यार्थप्रकाश जैसे क्रान्तिकारी अद्वितीय ग्रन्थ की रचना की। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा ने वेदों में मनुष्य को अपना अमृत पुत्र कहा है। उनके अनुसार आज का मनुष्य अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक गया है और अनेक ऐसे कार्य करता है जो उसे नहीं करने चाहिये। आज देश व विश्व में मनुष्य वेद द्वारा प्रेरणा किये गये सत्याचरण को छोड़कर अज्ञान व स्वार्थ पर आधारित अनेकानेक अनुचित आचरण करते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य के गुण, कर्म व स्वभाव में विकृतियां आ गई हैं। आज का मनुष्य भ्रमित है जिसे अपने जीवन के उद्देश्य व उसकी प्राप्ति के साधनों का ज्ञान नहीं है। आचार्य जी ने अनेक उदाहरण देकर मनुष्य की वर्तमान स्थिति का चित्रण किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य अवैदिक दिनचर्या करके अपने जीवन को बिगाड़ रहा है।

डा. योगेश शास्त्री जी ने कहा कि चाणक्य नीति में कहा गया है कि मनुष्य उसे प्राप्त होने वाले सुख व दुःख का विचार करके यह निश्चय नहीं कर पाता कि उसे जो सुख व दुःख प्राप्त हो रहे हैं वह उसके ही पूर्व किये हुए कर्मों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि मनुष्य सद्कर्मों को करके भविष्य में होने वाले दुःखों से बच सकता है। इसके लिए उसे वेद विरुद्ध अशुभ वा पाप कर्मों को छोड़ना होगा। आचार्य जी ने वेद की चर्चा कर कहा कि वेदमन्त्रों में बताया गया है कि परमात्मा सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी है। हम चाहें भी तो उसे छोड़ नही सकते और न वह हमें एक पल के लिए भी छोड़ता है। परमात्मा हमसे न कभी छूटने वाला और न कभी मृत्यु को प्राप्त होने वाला है। उन्होंने कहा कि परमात्मा के वेद ज्ञान व सृष्टि रूपी काव्य को देखों जो सदा नया रहता है, कभी पुराना नही होता और न मरता है। आचार्य जी ने कहा कि यदि हम अपने मन को शुद्ध रखेंगे तो हमारे सभी कर्म अच्छे होंगे जिससे हमारा जीवन सुखमय होने के साथ उत्साह व आनन्द से भरा होगा। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य ईर्ष्या व द्वेष आदि दुगुर्णों से युक्त होते हैं वह कल्पना नहीं कर सकते कि उसका परिणाम उनके भावी जीवन में किस प्रकार कितने दुःखों से भरा हुआ होगा।

आचार्य डा. योगेश शास्त्री जी ने कहा कि वेद भगवान कहते हैं कि हमें सांसारिक कामों में से पर्याप्त समय निकाल कर अपनी आत्मा में विद्यमान परमात्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिये। आचार्य जी ने एक सुन्दर पुष्पों का उदाहरण दिया और पूछा कि कांटो के बीच सुन्दर पुष्पों को कौन खिलाता है? कौन उन पुष्पों को सौन्दर्य देता है और कौन उनमें सुगन्ध भरता है। उस परमात्मा को मनुष्यों को वेदों का अध्ययन कर जानने का प्रयत्न करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हमें ज्ञान प्राप्ति के लिये प्रयत्न करने की आवश्यकता है। बिना ज्ञान के न तो हमारे दुःख दूर होंगे और न ही मुक्ति प्राप्त होगी। उन्होंने कहा कि जिस मनुष्य का ज्ञान व कर्म अशुद्ध होंगे वह व्यक्ति परमात्मा को नहीं जान सकता। अपने व्याख्यान को विराम देते हुए आचार्य जी ने एक गीत गाकर प्रस्तुत किया। यह गीत हमारा प्रिय गीत है जिसे हम पहले गाया वा गुनगुनाया करते थे। इस गीत की आर्यसमाज के प्रधान डा. महेश चन्द्र शर्मा जी ने भी बाद में प्रशंसा की। गीत के शब्द हैं:-

करता रहूं गुणगान मुझे दो ऐसा वरदान।
तेरा नाम ही जपते जपते इस तन से निकले प्राण। तन से निकले प्राण।।

तेरी दया से हे मेरे भगवन् मैंने ये नर तन पाया।
मेरे जीवन में बाधायें डालें जग की मोह माया।।
तेरा सुमिरन करते करते हो जीवन की हर शाम।। करता रहूं गुणगान।

न जानू कब कौन घड़ी में तेरा बुलावा आ जावे।
मेरे मन की इच्छायें सब मेरे मन में ही रह जायें।।
मेरी इच्छा पूरी करना ओ मेरे कृपा निधान।। करता रहूं गुणगान मुझे दो ऐसा वरदान।।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्यसमाज के युवा मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने डा. योगेश शास्त्री जी के व्याख्यान की प्रशंसा की और उनका धन्यवाद किया। आर्यसमाज के प्रधान डा. महेश चन्द्र शर्मा जी ने उन सदस्यों के नामों का उल्लेख किया जिनके जन्म दिवस 17 जून से 23 जून के मध्य पड़ रहे हैं। उन सब बन्धुओं को शर्मा जी ने जन्म दिवस की बधाई दी। उन्होंने प्रसिद्ध भाषाविद, शिक्षा शास्त्री एवं लेखक श्री सुनीति कुमार चटर्जी का उल्लेख कर बताया कि उन्होंने महर्षि दयानन्द का मूल्यांकन करते हुए कहा है कि महर्षि दयानन्द वर्तमान युग की सम्पूर्ण मानवता के लिए के एक ही ईश्वर की उपासना करने का पथ प्रदर्शन करने वाले महापुरुष थे। इसके बाद सभी श्रोताओं ने आर्यसमाज के दस नियमों का मिलकर पाठ किया जिसे श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की एक बालिका के साथ साथ सबने उच्चारित किया। शान्ति पाठ व प्रसाद वितरण के साथ आज के सत्संग का विसर्जन हुआ। आज के कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्त्री पुरुष एवं श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम के बच्चे सम्मिलित हुए। इनमें पंजाब नैशनल बैंक के एजीएम श्री मुकेश आनन्द जी, वन अनुसंधान संस्थान के रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. विनीत कुमार एवं पूर्व विधायक श्री वर्म्मा जी सम्मिीत थे। इस अवसर पर हमें अपने अनेक पुराने और नये साथियों से मिलने का अवसर भी प्राप्त हुआ। ओ३म् शम्।

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