प्राचीनकाल से ही भारत के ऋषि मुनि , प्रकृति की गोद में बैठकर योग करते आए हैं

( 9273 बार पढ़ी गयी)
Published on : 19 Jun, 18 17:06

परंतु आधुनिक परिपेक्ष में योग को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलवाने में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों का परिणाम हैं, जो हम पिछले तीन सालों से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहें हैं
योग एवं आयुर्वेद भारत की विश्व को अमूल्य देन है। वेदों को विश्व का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है,और आयुर्वेद को सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति।
योग का भी वेदों, उपनिषदों , गीता इत्यादि धार्मिक ग्रंथों में यत्र- तत्र उल्लेख मिलता है, पर इसको सम्पूर्ण तरीक़े से संकलित कर लिपिबद्ध किया योग गुरू पतंजलि ने, इनका यह संकलन योगशास्त्र के नाम से विख्यात है।
योग का शाब्दिक अर्थ होता है संयोजन(जोड़ना), मिलान, संतुलन और एकत्व इत्यादि।
अब प्रश्न यह उठता है कि योग क्यों करें? तो इसका उत्तर यह है कि रोगों के दो प्रमुख कारण है (१)शारीरिक और (२) मानसिक
दोनों का आपस में गहरा संवंध है।
शारीरिक रोग कालांतर में मानसिक रोगों में, और मानसिक रोग ,शारीरिक रोगों में प्रायश: परिवर्तित हो जाते हैं।
जब तक आत्मा, इंद्रियाँ और मन प्रसन्न न हो ,तब तक किसी को स्वस्थ नहीं कहा जा सकता।
जिस प्रकार शारीरिक रोग शरीर को कमज़ोर बनाते है , उसी प्रकार मानसिक रोग मानसिक संतुलन को कमज़ोर कर देते हैं।
मेरे विचार से शारीरिक रोगों की चिकित्सा करना , मानसिक रोगों की चिकित्सा करने से ज़्यादा सरल है, क्योंकि शारीरिक रोगों को हम दर्शन, स्पर्शन और प्रश्न के माध्यम से जानकर चिकित्सा करते है। परंतु मानसिक रोग जो मुख्यत: काम, क्रोध, राग, द्वेष, भय , इत्यादि से उत्पन्न होते है, उनको रोगी चिकित्सक को पूर्णतया नहीं बताता। कुछ न कुछ अवश्य छुपाता है , इस तरह की प्रवृत्ति रोग निदान में अवश्य बाधा उत्पन्न करती है।
अत: शारीरिक रोगों को दूर करने में जिस प्रकार आयुर्वेद श्रेष्ठ है , उसी प्रकार मानसिक रोगों के लिए योग श्रेष्ठ है।
हालाँकि योग से शारीरिक सौष्ठव भी प्राप्त होता है , पर मानसिक संतुलन में बेजोड़ है।
योग की विभिन्न विधाएँ हैं, पर योगासन और प्राणायाम आम अादमी को स्वस्थ रखने के लिए अतिआवश्यक हैं।
अाज नित्य प्रति परिवार, समाज और देश में आपराधिक घटनाएँ , जैसे चोरी चकारी, हत्या, आगज़नी , मारपीट, असहष्णुता जैसी घटनाओं पर योग के माध्यम से क़ाबू पाया जा सकता है।
आज तनाव से हर आदमी जूझ रहा है, चाहे वह विद्यार्थी हो, चाहे शिक्षक हो, चाहे रोज़गार वाला है, चाहे बेरोज़गार हो, अमीर हो या ग़रीब हो हर कोई तनाव से जूझ रहा है।
एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मन निवास करता है।
पर यह भी उतना ही सच्च है कि स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर मिलकर ही स्वस्थ समाज और स्वस्थ देश की रचना करते हैं।
योग मनुष्य को प्रकृति से जोड़ता है, आत्मा को अध्यात्म से जोड़ता है, संतुलित और सुंदर भावों का शरीर में समायोजन करता है।
विषयविकारों को रोकता है , एक स्वस्थ शरीर और मन का निर्माण करता है।
अत: योग और आयुर्वेद को अपनाकर हम रोग मुक्त समाज की रचना करें, अपने देश और बच्चों का भविष्य सुरक्षित करें। ताकि सब ख़ुश रहें और ख़ुशियाँ बाँटे ।
साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.