पाकिस्तानी गोलाबारी से शिक्षा तथा किसानों पर पड़ा असर

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Published on : 14 Jun, 18 14:06

बासमती-चावलों के लिए मशहूर इस इलाके के किसान जहां खेतों में जाते अभी भी डर रहे हैं, वहीं बडी संख्या में छात्रों ने सरहदी से सटे स्कूलों से अपने नाम कटवा कर दूर सुरक्षित इलाकों में दखिला ले लिया
पाकिस्तानी गोलाबारी तथा भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुतापूर्ण सम्बधों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव यहां के सरहदी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा तथा किसानों व किसानी पर पड़ा है। पाकिस्तानी गोलाबारी के कारण बासमती-चावलों के लिए मशहूर इस इलाके के किसान जहां खेतों में जाते अभी भी डर रहे हैं, वहीं बडी संख्या में छात्रों ने सरहदी से सटे स्कूलों से अपने नाम कटवा कर दूर सुरक्षित इलाकों में दखिला ले लिया है। बताते चलें कि अरनियां इलाका भारत-पाक सीमा से सटा सबसे बडा कस्बा है और यहां सैनी बाहुल्य इलाका है जोकि किसानी करते हैं। बल्कि कई तो पुलिस व प्रशासन में बड़े अधिकारी भी हैं। इस कस्बे पर गत करीब 4 वषों में पाकिस्तानी रेंजर्स अनेकों बार मोर्टार के गोले दागकर भारी तबाही मचा चुके हैं। इस संवाददाता के ग्राउंड-जीरो पर हालात का जायजा लेने के दौरान अरनियां वासियों का कहना था कि न मालूम पाकिस्तान कब बिना उकसावे के गोले दागना शुरू कर दे। हालांकि गत दिनों दोनो मुल्कों की ओर से सन 2003 में सीजफायर समझौते का पुन: इमानदारी से पालन करने का वायदा किया गया है। फिर भी पाकिस्तान की जुबान पर यकीन नहीं होता है। इसलिए अब डरे डरे हुए माता-पिता सरहद के करीब बने सरकारी-गैरसरकारी स्कूलों से अपने बच्चों का नाम कटवाकर दूर सुरक्षित स्थानों पर स्थित स्कूलों में उन्हें दाखिल करवाना शुरू कर दिया है।यहां बार्डर संघर्ष समिति के प्रधान कमल जीत सिंह का कहना है कि उनके खुद के निजी स्कूल से भी कई बच्चों के माता-पिता छात्रों के स्कूल छोडने का प्रमाण पत्र ले जा चुके हैं। एक अन्य बडे निजी से भी करीब 250 बच्चे स्कूल छोड़कर अन्य जगह स्कूलों में दाखिल हो गए हैं। कमलजीत सिंह बताते है कि यहां स्थित एक अन्य स्कूल के प्रागण में गत दिनों पाकिस्तान की ओर से दागे गए 4 मोर्टार षैल आकर गिरे थे, शुक्र है कि तब वहां कोई नहीं था, अन्यथा बडी तबाही होनी थी। एक अन्य स्थानीय प्रमुख नागरिक यछपाल सैनी का कहना था कि यहां के गर्ल्सहायर सैकंडरी स्कूल में पाकिस्तानी गोले आकर गिरे थे, लंकिन उस वक्त वहां कोई नहीं था।सरहदी स्कूलों की इस चिंताजनक स्थिति पर कोई भी सरकारी अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नहीं मिला।
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