बिस्मिल कर हाथ से निकला और हिजबुल के हाथ चला गया हूँ

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Published on : 24 May, 18 11:05

बिस्मिल कर हाथ से निकला और हिजबुल के हाथ चला गया हूँ उदयपुर। अमर शहीद कु.प्रतापसिंह बारहठ रॉयल्स संस्थान एंव नगर निगम के संयुक्त तत्वावधान में कु.प्रतापसिंह बारहठ के शहादत शताब्दी समारोह के तहत आज टाउनहॉल प्रांगण में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। प्रथम चरण में स्वतंत्रता सैनानियों को सम्मानित किया गया वहीं दूसरे चरण में कवियों ने बारहठ की वीरता का गुणगान किया। क्रांतिकारियों का यह सम्मान उनके परिजनों ने ग्रहण किया।
कवि सम्मेलन में कोटा के वीर रस के वरिश्ठ कवि जगदीश सोलंकी ने अपनी रचना हमने ऐसा जगाया है चेतन यहाँ,हमको शाही सलाखें झुका न सकी,हमने शोलों पे शैय्या सजाई सदा,हमको अर्थी की भाषा रुला न सकी, हम शहीदों के कुनबे में पैदा हुए,हमको वक्त की ज्वाला जल न सकी, अपना दीपक लहू से जला है सदा,जिसको आंधी कभी भी बुझा न सकी रचना पर श्रोताओं ने तालियों की भरपूर दाद दी। दूसरी रचना हमने जिन पर गीत लिखे, वो गीतों में न समा पाये,सरहद पर तो चले गए,पर वापिस लौट के न आये...,हास्य कवि राजोत धार मप्र के कवि जानी बैरागी ने रचना मुझे इस बात का गम है,मेरा नाम बम है,मैं हर बार यूँ ही छला गया हूँ,बिस्मिल कर हाथ से निकला और हिजबुल के हाथ चला गया हूँ...,वीर रस के कवि झालावाड के निशामुनि गौड ने अपनी रचना सूर मीराँ कबीर जायसी रसखान की धरती,शहीदों की इबादत है हिंदुस्तान की धरती...पर खुब तालियां बटोरी, लाफ्टर फेम मावली के मनोज गुर्जर ने मान जनक का जो ना करता, सुत दागी हो जाता हैं,सच कहता हूँ सुनो पाप का, वो भागी हो जाता हैं, क्यों जाए हम मन्दिर मन्दिर, तात प्रभु का रूप यहाँ, जिसके सर पर हाथ पिता, बडभागी हो जाता हैं...पर श्रोता तालियां बजाने से पीछे नहीं रहे, हास्य व्यंग के कवि अर्जुन अल्हड ने माना जरूरी है हंसना हंसाना,माना जरूरी है गमों में
मुस्कुराना,पर जिन्होंने आजादी के लिए जान दे दी,बहुत जरूरी है उनकी चिताओं पर श्रद्धा पुष्प चढानाकृउदयपुर के कवि सिद्धार्थ देवल ने जो मातृ भूमि हित मरता है वो मरकर मरा नही करता,सिंह केसरी का शावक भेडो से डरा नही करता है... पर श्रोताओं ने वंस मोर की मांग कर डाली। सूत्रधार कवि बृजराज सिंह जगावत ने करोडो लोगों जहनों में कहानी क्या है,बयान जो करता है उन आंखों का पानी क्या है,शहादतें जो इस वतन के काम आईं हैं ,
उससे बढकर किसी की ओर जीवनी क्या है...ख्वीर रस के कवि भरोउी उदयपुर के कवि हिम्मत सिंह उज्ज्वल ने राजस्थानी में कुंवर प्रताप मां माणक जाया
उदियापुर मे अवतरिया,महाराणा प्रताप जगत में,जाणे पाछा प्रकटिया, बींद न बणिया शहीद बणग्या,कीरत लीधी धाप ने, अंगरेजां सूं अडग्या भारत, रा काटण संताप ने...श्रोतों के मन पर छाप छोड दी...।
दूसरे चरण में संस्थान की ओर से देष की आजादी के लिये शहीद हुए स्वतंत्रता सैनानियों क्रान्तिकारी शचिन्दनाथ सान्याल,तात्या टोपे,शिवराम हरि राजगुरू,भगतसिंह, जतिन्द्रनाथ दास,महावीरसिंह,बहादुरषाह जफर,बाबू गेनुसेर, सुखदेव,अशफाक उल्ला खां,विश्णु पिंगले,विनायक दामोद सावरकर,जयदेव कपूर,चन्द्रषेखर आजाद, ठाकुर दुर्गासिंह गहलोत,बालगगंाधर तिलक, उधमसिंह,पं.रामप्रसाद बिस्मिल,ठाकुर रोषनसिंह, मंगल पाण्डे, रामकृश्ण खत्री,चापेकर बंधु, यषपाल,पं. दीनदयाल उपाध्याय,कप्तान फूलसिंह आईएनएस,रानी अंवतीबाई लोधी,सचिन्द्रनाथ बक्षी,सुखदेव,कानदास मेहडू, भोपालदान आढा के परिजनों को गुलाबचन्द कटारिया ने शोल ओढाकर एवं स्मृतिचिन्ह प्रदानकर सम्मानित किया। इस अवसर पर पारस सिंघवी, प्रमोद सामर, रविन्द्र श्रीमाली भी मौजूद थे।
इस अवसर पर गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया ने कहा कि क्रान्तिकारियो के परिजनों के सम्मान से मेवाड की यह धरा धन्य हो गयी। उन्होंने कहा कि किताबें से क्रंातिकारियों की गाथा को हटा दिया गया है। यदि हमनें इसे पुनः नहीं जोडा तो भावी पीढी सिर्फ रोटरी, कपडा और मकान तक ही सीमित रह जायेगी। शहर के चौराहे को क्रंातिकारियों के नामों से जोडा है। इस अवसर पर महेन्द्र सिंह चारण द्वारा प्रतापसिंह बारहठ पर लिखित पुस्तक का अतिथियों ने विमोचन किया।
समारोह में सहयोगी के रूप में आकाश बागरेचा, तरूण मेहता, लक्ष्मीकांत वैष्णव,सत्येन्द्रसिंह आंसियंा को सम्मानित किया गया। अंत में संस्थान के संस्थापक हरेन्दसिह सौदा ने आभार ज्ञापित किया। संचालन कैलाश ने किया।

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