हमारे राजनीतिक दल स्वार्थों से ऊपर उठकर देश का कल्याण करें: स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती

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Published on : 17 May, 18 10:05

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून

हमारे राजनीतिक दल स्वार्थों से ऊपर उठकर देश का कल्याण करें: स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के समापन दिवस 13 मई, 2018 को ऋग्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न होने के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्होंने जो शब्द उच्चारित किये वह उस समय उनके हृदय से स्वतः स्फुर्त थे। उन्होंने कहा कि हे परम कारुणिक परम दयालु परमेश्वर! हम आपको बारम्बार नमन करते हैं। आपकी दी गई सामर्थ्य से हमने यह यज्ञ किया है। हम यह यज्ञ आपको अर्पण करते हैं। यह वेदज्ञान व यज्ञ आपकी ही देन है। आप सब प्रकार से पूर्ण हैं, हमें भी पूर्ण बनाईये। आप सबको देते रहते हैं। हमें भी आप उदार बनाईये। हमारी अविद्या और अज्ञान को दूर कीजिये। हमारा देश भारत वेद और ऋषियों का देश है। आपकी कृपा से हमें यहां जन्म मिला है। ज्ञानी गुरुओं के माध्यम से हमें वेद, यज्ञ, योग आदि का ज्ञान मिला है। हम अब भी व्यथित रहते हैं। आप कृपा करके हमारे सभी क्लेशों को दूर करें। हमारी अविद्या दूर हो जाये। हम विद्या से युक्त हों।

हे परमेश्वर! हम आपसे यही याचना करते हैं। आप कृपा करके हमको सामर्थ्य दीजिये। हम वेद और योग के मार्ग पर चलें। यही हम आपसे कामना करते हैं। आप हमारा कल्याण करने वाले पिता है। आप हमारे गुरु, राजा और न्यायाधीश हैं। संसार के सभी मनुष्य एवं प्राणी हमारे भाई व बहिन हैं। हम सबकी उन्नति चाहते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में हम आगे बढ़े। हम विज्ञान को जानने वाले बनें। हमारे देश की सीमायें सुरक्षित हों। हम ब्रह्म ज्ञान से सम्पन्न हों। हमारे देश के कृषक अपने अन्न उत्पादन के कार्य में समर्थ हों। देश में भरपूर अन्न आदि पदार्थ हों। हमारे देश में कोई मनुष्य भूखा न रहे। वैश्य वर्ण भी सम्पन्न हो व देश से सभी प्रकार के अभाव को दूर करने में अपने धन, बल व शक्ति का सदुपयोग करे। राजनीतिक दल एषणाओं व स्वार्थों से ऊपर उठकर देश का कल्याण करें। संसार में हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़े। आप हमें मंगल व कल्याणकारी संकल्पों वाला बनाईये। पति-पत्नी व परिवारों में प्रेम हो। हम वेदों का ज्ञान प्राप्त कर इसका प्रचार करने में सफल हों। सबका कल्याण हों व सबको सुख शान्ति प्राप्त हो। आपको पुनः पुनः हमारा नमन एवं धन्यवाद है।

सामूहिक प्रार्थना के बाद यज्ञ की ब्रह्मा जी ने आशीवर्चन कहे। उन्होंने कहा कि वेदों व ऋषियों के ग्रन्थों का स्वाध्याय करने से मनुष्य को ज्ञान, चेतना व ऊर्जा प्राप्त होती है। वेदों का ज्ञान होने पर हमारी वाणी फलवती होती है और स्वाध्याय से प्राप्त ज्ञान से हमें अमृत की प्राप्ति होती है। आचार्या जी ने बहेलिये की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा एक संन्यासी ने बहेलिये की अनुपस्थिति में उन्हें सिखाया कि बहेलिया आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, फंसना मत। सभी पक्षियों ने यह पाठ याद कर लिया। संन्यासी यह पाठ याद करा कर चले गये। बाद में बहेलिया आया, उसने जाल फैलाया और पक्षियों को दाना डाला। पक्षी पाठ दोहराते हुए बोलते रहे कि बहेलिया आयेगा, दाना डालेगा, फंसना मत, फंसना मत। उन पक्षियों ने पाठ तो याद किया परन्तु उसे क्रियान्वित नहीं किया जिस कारण वह सभी बहेलिये द्वारा पकड़ लिये गये और परवश व परतन्त्र हो गये। आचार्या जी ने कहा कि यदि हम भी पक्षियों की तरह से पाठ बोलते रहेंगे, कान से सुनते रहेंगे परन्तु अपने मन व बुद्धि को उसमें लगायेंगे नहीं तो इससे हमारे मन व बुद्धि फलवती नहीं होंगे। आचार्या जी ने महात्मा आनन्द स्वामी जी का उदाहरण देकर बताया कि उन्होंने एक स्थान पर कहा है कि अपने कमण्डलु रूपी मन को साफ रखिये और इसे साथ में रखिये। हमारा पात्र स्वच्छ हो तथा उसमें छिद्र न हो। हम सतत सन्ध्योपासना व यज्ञ आदि श्रेष्ठ कर्मों को करते रहे। अपने मन को सदैव पवित्र रखें। इसी के साथ उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

ऋग्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का धर्मोपदेश भी हुआ जिसे हम एक पृथक लेख के द्वारा प्रस्तुत कर चुके हैं। इसके बाद का कार्यक्रम आश्रम के वृहद व भव्य सभागार में हुआ जहां आर्य भजनोपदेशकों के भजन, बच्चों के कार्यक्रम, विद्वानों के प्रवचन, अनेक विद्वानों एवं कार्यकर्त्ताओं का सम्मान हुआ। मुख्य अतिथि विधायक श्री उमेश शर्मा (काऊ) का स्वागत, अभिनन्दन हुआ और उन्होने ऋषि भक्तों को सम्बोधित भी किया। इस अवसर पर आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री, दिल्ली तथा डा. आचार्य धनन्जय आदि के व्याख्यान हुए। उन्हें भी हम प्रस्तुत कर चुके हैं।
“हमारे राजनीतिक दल स्वार्थों से ऊपर उठकर देश
का कल्याण करें: स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती”
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के समापन दिवस 13 मई, 2018 को ऋग्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न होने के बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्होंने जो शब्द उच्चारित किये वह उस समय उनके हृदय से स्वतः स्फुर्त थे। उन्होंने कहा कि हे परम कारुणिक परम दयालु परमेश्वर! हम आपको बारम्बार नमन करते हैं। आपकी दी गई सामर्थ्य से हमने यह यज्ञ किया है। हम यह यज्ञ आपको अर्पण करते हैं। यह वेदज्ञान व यज्ञ आपकी ही देन है। आप सब प्रकार से पूर्ण हैं, हमें भी पूर्ण बनाईये। आप सबको देते रहते हैं। हमें भी आप उदार बनाईये। हमारी अविद्या और अज्ञान को दूर कीजिये। हमारा देश भारत वेद और ऋषियों का देश है। आपकी कृपा से हमें यहां जन्म मिला है। ज्ञानी गुरुओं के माध्यम से हमें वेद, यज्ञ, योग आदि का ज्ञान मिला है। हम अब भी व्यथित रहते हैं। आप कृपा करके हमारे सभी क्लेशों को दूर करें। हमारी अविद्या दूर हो जाये। हम विद्या से युक्त हों।

हे परमेश्वर! हम आपसे यही याचना करते हैं। आप कृपा करके हमको सामर्थ्य दीजिये। हम वेद और योग के मार्ग पर चलें। यही हम आपसे कामना करते हैं। आप हमारा कल्याण करने वाले पिता है। आप हमारे गुरु, राजा और न्यायाधीश हैं। संसार के सभी मनुष्य एवं प्राणी हमारे भाई व बहिन हैं। हम सबकी उन्नति चाहते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में हम आगे बढ़े। हम विज्ञान को जानने वाले बनें। हमारे देश की सीमायें सुरक्षित हों। हम ब्रह्म ज्ञान से सम्पन्न हों। हमारे देश के कृषक अपने अन्न उत्पादन के कार्य में समर्थ हों। देश में भरपूर अन्न आदि पदार्थ हों। हमारे देश में कोई मनुष्य भूखा न रहे। वैश्य वर्ण भी सम्पन्न हो व देश से सभी प्रकार के अभाव को दूर करने में अपने धन, बल व शक्ति का सदुपयोग करे। राजनीतिक दल एषणाओं व स्वार्थों से ऊपर उठकर देश का कल्याण करें। संसार में हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़े। आप हमें मंगल व कल्याणकारी संकल्पों वाला बनाईये। पति-पत्नी व परिवारों में प्रेम हो। हम वेदों का ज्ञान प्राप्त कर इसका प्रचार करने में सफल हों। सबका कल्याण हों व सबको सुख शान्ति प्राप्त हो। आपको पुनः पुनः हमारा नमन एवं धन्यवाद है।

सामूहिक प्रार्थना के बाद यज्ञ की ब्रह्मा जी ने आशीवर्चन कहे। उन्होंने कहा कि वेदों व ऋषियों के ग्रन्थों का स्वाध्याय करने से मनुष्य को ज्ञान, चेतना व ऊर्जा प्राप्त होती है। वेदों का ज्ञान होने पर हमारी वाणी फलवती होती है और स्वाध्याय से प्राप्त ज्ञान से हमें अमृत की प्राप्ति होती है। आचार्या जी ने बहेलिये की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा एक संन्यासी ने बहेलिये की अनुपस्थिति में उन्हें सिखाया कि बहेलिया आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, फंसना मत। सभी पक्षियों ने यह पाठ याद कर लिया। संन्यासी यह पाठ याद करा कर चले गये। बाद में बहेलिया आया, उसने जाल फैलाया और पक्षियों को दाना डाला। पक्षी पाठ दोहराते हुए बोलते रहे कि बहेलिया आयेगा, दाना डालेगा, फंसना मत, फंसना मत। उन पक्षियों ने पाठ तो याद किया परन्तु उसे क्रियान्वित नहीं किया जिस कारण वह सभी बहेलिये द्वारा पकड़ लिये गये और परवश व परतन्त्र हो गये। आचार्या जी ने कहा कि यदि हम भी पक्षियों की तरह से पाठ बोलते रहेंगे, कान से सुनते रहेंगे परन्तु अपने मन व बुद्धि को उसमें लगायेंगे नहीं तो इससे हमारे मन व बुद्धि फलवती नहीं होंगे। आचार्या जी ने महात्मा आनन्द स्वामी जी का उदाहरण देकर बताया कि उन्होंने एक स्थान पर कहा है कि अपने कमण्डलु रूपी मन को साफ रखिये और इसे साथ में रखिये। हमारा पात्र स्वच्छ हो तथा उसमें छिद्र न हो। हम सतत सन्ध्योपासना व यज्ञ आदि श्रेष्ठ कर्मों को करते रहे। अपने मन को सदैव पवित्र रखें। इसी के साथ उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम दिया।

ऋग्वेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का धर्मोपदेश भी हुआ जिसे हम एक पृथक लेख के द्वारा प्रस्तुत कर चुके हैं। इसके बाद का कार्यक्रम आश्रम के वृहद व भव्य सभागार में हुआ जहां आर्य भजनोपदेशकों के भजन, बच्चों के कार्यक्रम, विद्वानों के प्रवचन, अनेक विद्वानों एवं कार्यकर्त्ताओं का सम्मान हुआ। मुख्य अतिथि विधायक श्री उमेश शर्मा (काऊ) का स्वागत, अभिनन्दन हुआ और उन्होने ऋषि भक्तों को सम्बोधित भी किया। इस अवसर पर आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री, दिल्ली तथा डा. आचार्य धनन्जय आदि के व्याख्यान हुए। उन्हें भी हम प्रस्तुत कर चुके हैं।

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