राजस्थान साहित्य अकादमी के इतिहास में पहली बार समारोह 'रांगेय राघव' पुरस्कार स्थगित

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Published on : 19 Mar, 18 13:03

राजस्थान साहित्य अकादमी के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। अकादमी ने 'रांगेय राघव' पुरस्कार के लिए नाम की घोषणा कर दी। जयपुर के लेखक हरदान हर्ष पुरस्कार लेने उदयपुर भी आ गए। लेकिन सम्मान समारोह के दिन रविवार को ही भास्कर ने खुलासा किया कि जिस 'मीरा' उपन्यास के लिए यह पुरस्कार हर्ष को दिया जा रहा है उसमें मेवाड़ के शासकों को ढीठ, छिछोरा और कापुरुष बताया गया है। वहीं एक साधु मीरा को यह बोल रहा है कि मुझे श्रीकृष्ण ने स्वप्न में कहा, तुम मीरा के देह का भोग करो। यह खबर प्रकाशित होने के बाद अकादमी ने यह सम्मान ही स्थगित कर दिया और लेखक को कार्यक्रम में बुलाए बिना ही जयपुर भेज दिया गया। रविवार को साहित्य अकादमी का लेखक सम्मान और पुरस्कार समारोह था जिसमें हरदान हर्ष को 'रांगेय राघव' सम्मान के लिए चुना गया था। भास्कर के खुलासे के बाद विभिन्न समाजों का विरोध इतना बढ़ गया कि कई समाज के पदाधिकारियों ने आयोजन स्थल पर पहुंचकर बैनर तक उतरवा दिए और अकादमी पदाधिकारियों को चेताया कि मेवाड़ की मीरा और यहां के शासकों के लिए उपन्यास में अमर्यादित शब्द बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। मामला बढ़ता देख पुलिस जाब्ता भी तैनात कर दिया गया। घटना अकादमी के उन निर्णायकों पर सवाल उठाती है जिन्होंने मीरा पुस्तक को रांगेय राघव पुरस्कार के लिए चयनित किया था। वहीं राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि मीरा और मेवाड़ के महाराणाओं के धवलयश पर हमें पूरा गौरव है इस पर किसी भी प्रकार का विवाद अकादमी को स्वीकार्य नहीं है। रांघेय राघव पुरस्कार स्थगित कर दिया है। पुरस्कार देने का निर्णय तीन सदस्यीय कमेटी ने लिया था।
विभिन्न समाजों ने अकादमी पदाधिकारियों को चेताया- उपन्यास में अमर्यादित शब्द बर्दाश्त नहीं
भास्कर ने बताया था- जिस उपन्यास पर पुरस्कार दिया जा रहा, उसमें मीरा के मुख से मेवाड़ के महाराणाओं को कहलवाया : ढीठ, छिछोरा और कापुरुष
18 मार्च को प्रकाशित खबर
उपन्यास में महाराणा उदयसिंह सहित विभिन्न महाराणाओं को नाकाबिल आैर मेवाड़ की बर्बादियों का जिम्मेदार बताया
जिस प्रदेश में alt147पद्मावती' फिल्म के एक काल्पनिक दृश्य को लेकर भारी बवाल हुआ और फिल्म पर भी रोक लगा दी गई, वहीं राज्य सरकार की हिन्दी साहित्य अकादमी ने ऐसे उपन्यास काे पुरस्कार के लिए चुना था जिसमें मीरा को एक साधु के एक अभद्र प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए दिखाया गया है। उपन्यास में मीरा एक साधु से कहती हैं : यहां आओ। मैं अपना शरीर तुम्हें सहर्ष अर्पण करने को तत्पर हूं। उपन्यास में उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह सहित विभिन्न महाराणाओं को नाकाबिल आैर मेवाड़ की बर्बादियों का जिम्मेदार बताया गया है। साहित्य से जुड़े कुछ लोगों ने दैनिक भास्कर से संपर्क करके बताया कि उपन्यास के सृजन पर उन्हें किसी तरह की आपत्ति नहीं है, लेकिन राज्य सरकार की ऐसी अकादमी से ऐसे अापत्तिनजक अंश वाले उपन्यास को पुरस्कृत करने पर उन्हें आपत्ति है। और अकादमी में इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से दीक्षित व्यक्ति को इसलिए बिठाया गया था कि वे भारतीय संस्कृति का विशेष खयाल करेंगे। लेकिन उपन्यास के बारे में जब अकादमी अध्यक्ष इंदुशेखर तत्पुरुष से पूछा गया तो उन्होंने कहा, मैंने उपन्यास नहीं पढ़ा है।
महाराणाओं को मीरा से कहलवाया यह सब
मीरा हल्के से मुस्कुराईं और फिर गंभीर होकर कहा : ....मेवाड़ के दुर्दिनों के जिम्मेदार वहां के शासक ही रहे। राणा रत्नसिंह, राणा विक्रमादित्य, बनवीर और राणा उदयसिंह अपने पूर्वजों के पदचिह्नाें पर नहीं चल पाए। राणा रत्नसिंह की ढिठाई, विक्रमादित्य का छिछोरापन और उसके दुर्व्यवहार, बनवीर की अयोग्यता और उदयसिंह की कापुरुषता (कायरता) ने मेवाड़ को रसातल में पहुंंचाया है। इन अयोग्य शासकों के कारण ही आज मेवाड़ की दयनीय स्थिति है। पेज 130
और लेखक हरदान हर्ष ने बातचीत में ये कहा
आपने मीरा के संबंध में यह ऐतिहासिक संदर्भ कहां से लियाω?
हर्ष : पुराने शिलालेख और मंदिरों में जो प्रमाण होते थे, उनके आधार पर ज्ञान अर्जित किया जाता है। इसके बाद ही ऐसी चीजें लिखी जाती हैं।
लेकिन क्या मीरा के सामने एक साधु का ऐसा प्रस्ताव रखना आपत्तिजनक नहीं हैω? क्या इससे मीरा और भारतीय साधुओं की छवि खराब नहीं होतीω?
हर्ष : वाकई यह घटना हुई थी और इसीलिए मीरा वृंदावन छोड़कर द्वारका गई थीं। ऐसा नहीं होता तो मीरा वृंदावन में ही रह जातीं। मीरा ने देखा कि वृंदावन में विधवाओं आैर निराश्रित महिलाओं की दशा बहुत खराब है। वहां साधु संतों में भी ऐसे लोग थे, जो ठीक नहीं थे।
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