न्यू लुक मे नजर आयेगा कोटा का राजकीय संग्रहालय

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Published on : 13 Mar, 18 10:03

न्यू लुक मे नजर आयेगा कोटा का राजकीय संग्रहालय परिक्षेत्र की सांस्कृातिक एवं पुरातत्व संपदा को सहेजे कोटा का राजकीय संग्रहालय दर्षको को अब नये रूप मे नजर आयेगा। सामग्री को नये स्वरूप् मे सजाया गया है। मूर्तिया को सिलसिलेवार प्रदर्षित किया गया है। प्रा० पुरातत्व ,षैव वैश्णव अस्त्र षस्त्र परिधान चित्रकला,लोकजीवन एवं जैन प्रतिभा दीर्धाए बनाए गई है। लोक जीवन के प्रतीक सृश्टि के सृजन कर्ता ब्रह्मा से षुरू कर मात्रिकांए लक्ष्मी ,कुबेर,कामक्रीडा,मृत्यु वादन से संगीत नव गृह आदि को क्रमवार दर्षाते हुए मृत्यु के देवता यम की प्रतीमा तक ले जाया गया है। जहॉ यमराज को हाथ कपाल लिऐ हुए दिखाया गया है। इन प्रतिमाओ मे तत्कालीन समाज के लोकजीवन की झलक देखने को मिलती है। इस दीर्घा को सग्राहलय अधीक्षक उमराव सिंह विषिश्ठ उपलब्धी मानते है और बताते है कि इस प्रकार की प्रदर्षनी (द बाडी इन इंडियन आर्ट) वर्श २०१४ ब्रिटिष इंडियन मे लगी थी। ऐसी दीर्घा प्रदेष के १९ संग्रहालयों मे से केवल कोटा में बनाई गई है। उन्होने बताया कि संग्रहालय का करीब २ करोड रूपये से नवीनीकरण कार्य अन्तिम चरणो में हैं। नवीनीकरण के अन्तर्गत मूर्तियों के पैडस्टल बनाने के ,मार्बल का फर्ष लगाने के ,न्यू लुक षो केस बनाने के ,कलात्मक जालियां लगाने,ग्लास वर्क,एल ई डी लाईटे तथा सी सी टी कैमरे लगाने के तथा परिसर एवं भवन का सौन्दर्यकरण कार्य किया गया। संग्रहालय अप्रैल माह के षुरू म दर्षको के लिए खोल दिया जायेगा।
उत्तरी भारत में मथुरा संग्रहालय के पष्चात मूर्तिकला की दृश्टि से सर्वाधिक सम्पन्न हैं। कोटा का राजकीय संग्रहालय जो अब छत्रविलास उद्यान के बृजविलास महल में अवस्थित हैं। प्राचीनता की दृश्टि से मथुरा संग्रहालय अग्रगण्य हैं तो मूर्तिकला की विविधता की दृश्टि से कोटा के राजकीय संग्रहालय का अपना विषेश महत्व हैं। चित्रकला की दृश्टि से कोटा का राव माधोसिंह संग्रहालय अनुपम है तब उसके पूरक के रूप में कोटा का यह राजकीय संग्रहालय चित्रकला का अद्भुत खजाना है।
कोटा के राजकीय संग्रहालय की स्थापना का श्रीगणेष १९३६ में हुआ जबकि बनारस हिन्दु विष्व विद्यालय के प्रोफेसर ए. एस. अल्लेकर को कोटा के पुरातात्विक महल के स्थानों के सर्वेक्षण के लिये आमंत्रित किया गया था। उन्होंने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में इस भू भाग के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व को बतलाते हुए १४ स्थानों का जिक्र करते हुए उनकी सुरक्षा एवं मरम्मत की ओर ध्यान दिलाया। इसी मरम्मत के कार्य को देखते हुए पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जनरल रायबहादुर के. एन.दीक्षित जब कोटा आये तो उन्हें यह काम बडे घटिया स्तर का लगा और उन्होंने इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये कोटा राज्य में एक अलग से पुरातत्व विभाग स्थापित करने की राय दी।
दीक्षित के इसी सुझाव पर १९४३ ई. में कोटा के महाराव भीमसिंह ने स्टेट हिस्टेरियन तथा उपाचार्य हर्बट कॉलेज डॉ. मथुरालाल षर्मा को राज्य में बिखरे पडे षिलालेख एवं मूर्तियों को संग्रह करने को कहा। डॉ. षर्मा ने प्रयास करके जब लगभग सौ मूर्तियों का संग्रह कर लिया तब १९४५.४६ में कोटा में एक संग्रहालय की स्थापना बृजविलास महल में की गई। प्रारम्भ में इस संग्रहालय में केवल पुरातात्विक महल की सामग्री ही रखी गई। वर्श १९५१ में राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने कोटा संग्रहालय को अपने हाथ में लेकर बृज विलास से कोटा गढ के प्रवेष द्वार के ऊपर बने हवामहल में स्थानान्तरित कर दिया । इस समय महाराव साहब भीमसिंह ने संग्रहालय को स्थान देने के साथ ही साथ विविध प्रकार की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व की अनेक वस्तुएं भी प्रदान की। कालान्तर में संग्रहालय में षनै कर षनै ः अनेक वस्तुएं जुडती रही और यह सभी दृश्टियों से परिपूर्ण हो गया। हवामहल में स्थान की कमी को देखते हुये संग्रहालय को १९९४-९५ में पुन ः बृजविलास महल में स्थानान्तरित दिया गया।अब यहां गढ से सभी सामग्री आ चुकी है और उसे व्यवस्थित रूप से सजा दिया गय
पुरातात्विक विभाग ः
संग्रहालय के पुरातत्व विभाग में मुख्यत ः पुरानी मूर्तियां, षिलालेख और सिक्के हैं। हाडौती के लगभग सभी पुरातात्विक महत्व के स्मारकों की मूर्तियां यहां संग्रहित हैं । इनमें बाडौली, दरा, अटरू, रामगढ विलास, काकोनी, षाहबाद, आगर, औघाड, मन्दरगढ, बारां और गांगोभी की मूर्तियां प्रमुख हैं। संग्रहालय में १५० से भी अधिक चुनिन्दा मूर्तियों का संग्रह हैं। यहां वैश्णव, षैव और जैन तीन सम्प्रदायों की मूर्तियाँ में मुख्य रूप से विश्णु , षिव, त्रिविक्रम, नारायाण, हयग्रीव, वराह, कुबेर, वायु, षिव-पार्वती , कार्तिकेय , ब्रह्या, हरिहर महेष, अग्नि, क्षेत्रपाल, वरूण , यम, एन्द्री, वराही, अम्बिका, ब्रह्याणी चन्द्र, पार्ष्वनाथ, गजलक्ष्मी, रति-कामदेव आदि देवी देवताओं की प्रतिमायें षांमिले हैं। संग्रहालय में रखी हुई कुछ प्रतिमाये ंतो अन्तर्राश्ट्रय ख्याति की है जिनमें से दरा की झल्लरी वादक तथा बाडौली की षेशायी विश्णु की प्रतिमाये ंतो विष्व के कई देषों में प्रदर्षित हो चुकी हैं। अपनी धुन में तल्लीन झाल्लरी वादक की प्रतिमा अपने आप में अनूठी और एकाकी है। बादामी रंग की विश्णु की खडी प्रतिमाओं में काफी बारीक कटाई का काम हैं। बाडौली से लाई गई पालिष की हुई षेशायी की मूर्ति में अद्भुत आकर्शण है तथा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी इसके सामने आकर इसे कुछ क्षण तक अचम्भे से निहारते रहे। गांगोभी की प्रतिमायें सफेद पत्थर की है तथा महीन कारीगरी की दृश्टि से बेजोड है। विलास की यमराज की मूर्ति में अद्भुत आकर्शण है तथा रामगढ की ९ वीं सदी की वाद्य और नृत्य में रत एक युगल की मूर्ति जीवन्त सी प्रतीत होती है।
संग्रहालय में जो षिलालेख लगाये गये हैं उनमें से कुछ तो अति प्राचीन एवं ऐतिहसिक होने के साथ ही साथ भारतीय इतिहास के स्त्रोत की दृश्टि से अत्सन्त ही महत्वपूर्ण हैं। यहा चार लेख चार यूपों उत्कीर्ण है। जिन्हें अन्ता के समीप बडवा ग्राम से लाया गया हैं यूप प्रस्तर के वे स्तम्भ हैं जिनसे यज्ञ के समय के अष्व बांधे जाते थे। वैदिक परम्परा के अनुसार बडवा के ये यूप आधार में चौकोर और मध्य में अश्टाकार और षीर्श पर मुडे हुए हैं।
यूप पीले रंग के बलुआ पत्थर के हैं। इन यूपों पर ब्राह्यी लिपि में कुशाण कालीन १९५ विकम्र (२३८ ई.) की है। इससे ज्ञात होता है कि इन यूपों के निर्माणकर्ता मौखरी वंष के बल के पुत्र बलर्धन सोमदेव और बलसिंह थे, जिन्होंने यहां त्रिराज एवं ज्योतिषेम यज्ञ करके इन्हें स्थापित किया था। यह एक आष्चर्य की बात है कि सातवीं षताब्दी में कन्नौज में राज्य करने वाले वर्धन वंष के प्रतापी नरेष हर्शवर्धन से काफी पहले इस भू-भाग पर इस वंष का अधिकार था। ये चारों यूप तथा इन पर लिखे षिलालेख इस संग्रहालय की अमूल्य निधि हैं।
इन प्रसिद्ध षिलालेखों के अतिरिक्त हाडौती में अन्य कई स्थानों प्रसिद्ध षिलालेखों की देवनागरी में प्रतिलिपि भी इस संग्रहालय में रखी गई है। जिनमें चार चौमा का गुप्त षिलालेख, कंसुआ का ८वीं षताब्दी का लेख, षेरगढ में भण्डदेवरा का १३वीं षताब्दी व १२वीं विक्रम का लेख तथा चांदखेडी का १७४६ विक्रम का लेख प्रमुख हैं।
इसके अतिरिक्त संग्रहालय में कई ताम्रपत्रों के मूल लेख तथा कुछ के अनुवाद भी उपलब्ध हैं। संग्रहालय में षाहबाद और दरा से लाये गये भी कुछ षिलालेख भी उपलब्ध हैं। षिलालेखों के साथ ही साथ खरीतों पर लगाये जाने वाली चपडी की सील के कुछ लेख भी मौजूद हैं जिनमें प्रमुख रूप से राव माधोसिंह , महाराव रामसिह, वजीरखान नसरतजंग, बलवन्तसिंह , नसरतजंग, जार्ज रसेल आदि की है। इसी प्रकार कोर्ट स्टेम्प की मोहर के लेख भी यहाँ पर प्रदर्षित हैं।
संग्रहालय में प्रदर्षन के लिये कुछ पुराने समय के सिक्के भी रखे गये हैं। इनमें अधिकांष सिक्के वे हैं जो कि कोटा राज्य के विभिन्न स्थानों से समय-समय पर प्राप्त हुए थे। सिक्कों में सर्वाधिक प्राचीन पंचमार्क सिक्का है जो कि चांदी का चौकोर हैं तथा जिस पर फूल बने हुए हैं। इस प्रकार के सिक्कों का चलन ईसा से तीसरी षताब्दी पूर्व था। कोटा, मेवाड, बून्दी, झालावाड, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, किषनगढ, करौली, भरतपुर और टोंक आदि रियासतों के सिक्के भी यहां प्रदर्षित हैं जो कि कोटा राज्य के रानीहेडा गांव में मिले थे। ये सिक्के मुगल बादषाह अकबर, जहांगीर, षाहजहां, औरंगजेब और मोहम्मदषाह के समय के हैं।
हस्तलिखित ग्रंथ ः
संग्रहालय से जुडे हुए सरस्वती भण्डार में पहले ५००० हस्तलिखित ग्रंथ थे। अब सरस्वती भण्डार के अलग हो जाने के कारण कतिपय चुने हुए विषिश्ठि हस्तलिखित ग्रंथ ही यहां रह गये हैं। जिनमें अधिकांष चित्रित हैं। ये ग्रंथ चित्र तथा चार्ट स्वर्ण अक्षरी, चित्र काव्य, भोजपत्री एवं नक्काषी द्वारा अलंकृत हैं। चित्रित ग्रंथों में प्रमुख हैं-भागवत जो कि ११९० पृश्ठों की है इसमें कुल ४७६० चित्र हैं । दूसरी भागवत सूक्ष्म अक्षरी है जिसका आकार ६९ फुट गुणा ३ इंच हैं इसमंक सुनहरी रेखांकन का काम है तथा इसमें १८वीं षताब्दी में बने दषावतार के चित्र हैं। यहां एक गीता भी सूक्ष्म अक्षरी है जिसमें इतने बारीक अक्षर है कि इसे सूक्ष्मदर्षी यंत्र से भी पढने में कठिनाई आती है तथा इसका आकार साढे आठ इंच गुणा साढे पांच इंच है।
एक चावल पर उत्कीर्ण गायत्री मंत्र भी इस संग्रहालय की महत्वपूर्ण वस्तु है। इसमें २६८ अक्षर हैं। यह उत्कीर्ण चावल ११ सितम्बर १९३९ को महाराव उम्मेदसिंह की सालगिरह पर दिल्ली के फतह संग्रहालय द्वारा तैयार कर भेंट किया गया । यहां एक अन्य गीता सप्त ष्लोकी कर्त्तारित अक्षरी है। गीता पंचरत्न नामक ग्रंथ में २३६ पृश्ठ एवं २३ चित्र हैं तथा कई जगह अक्षर स्वर्ण में लिखे गये हैं। स्वर्ण अक्षरों युक्त एक अन्य ग्रंथ में षत्रुषल्य स्त्रोत है। दुर्जन षल्य स्त्रोत काले रंग के पृश्ठ पर सफेद स्याही से लिखा गया है। इसी प्रकार के अन्य ग्रन्थ आषीर्वचन तथा सिद्धान्त रहस्य है। अन्य प्रमुख ग्रन्थ हैं- कल्पसूत्र, यक्रसार, वल्लभोत्सव चन्दि्रका, सर्वोत्तम नवरत्न, पृथ्वीराजयुद्ध, डूंग सिंह की वीरगाथा, अष्व परीक्षा, ज्ञान चौपड आदि। यहां के ग्रन्थों में उम्मेदसिंह चरित काव्य में कोटा के पुराने इतिहास का जिक्र हैं। कुरान मजीद ग्रन्थ जिसका आकार ७ इंच गुणा ४ इंच है में ७६४ पृश्ठ हैं, अरबी में लिखा हैा तथा इसमें सुन्दर कारीगरी का काम है।















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