’राजस्थान में प्रथम लेप्रोस्कोपिक यूरेट्रो केलीकोस्टोमी सर्जरी द्वारा सफल इलाज‘

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Published on : 21 Feb, 18 11:02

गीतांजली के यूरोलोजिस्ट ने की सफल सर्जरी

उदयपुर , गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर के यूरोलोजी विभाग के यूरोलोजिस्ट डॉ विष्वास बाहेती ने राजस्थान में प्रथम बार यूरेट्रो केलीकोस्टोमी प्रक्रिया को लेप्रोस्कोपी (दूरबीन पद्धति) से सफलतापूर्वक अंजाम दे नया कीर्तिमान स्थापित किया। जन्मजात रोग, जिसे पेल्विक यूरेट्रिक जंक्षन ऑब्स्ट्रकषन (पीयूजेओ) कहते है, का सामान्यतः इलाज ओपन सर्जरी एवं पायलोप्लास्टी से किया जाता है परंतु इस रोगी का लेप्रोस्कोपी द्वारा सफल इलाज करने वाले सर्वप्रथम डॉ बाहेती व उनकी टीम जिसमें यूरोलोजिस्ट डॉ पंकज त्रिवेदी, एनेस्थेटिस्ट डॉ उदय प्रताप व ओटी स्टाफ पुश्कर व अविनाश शामिल है, ने दावा किया है कि अब इस प्रकार के सभी रोगों का इलाज इस पद्धति द्वारा उदयपुर के गीतांजली हॉस्पिटल में संभव होगा।
डॉ विष्वास बाहेती ने बताया कि उज्जैन निवासी ३० वर्शीय युवक बाएं गुर्दे में दर्द की शिकायत के साथ गीतांजली हॉस्पिटल में परामर्श के लिए आया था। रोगी का जन्म से ही किडनी का प्रारंभिक बिंदू बंद था जिससे मूत्र पूरा न पास हो कर किडनी में इकट्ठा हो रहा था। जिससे यूरेटर में सूजन न आकर पूरी किडनी में सूजन आने लग गई। और किडनी का आकार लगभग १५ सेंटीमीटर तक बडा हो गया जो सामान्यतः ८ से ९ सेंटीमीटर के लगभग होता है। इससे किडनी की कार्य क्षमता केवल १५ से २० प्रतिशत रह गई थी। इस रोग को पेल्विक यूरेट्रिक जंक्षन ऑब्स्ट्रकशन कहते है। आमतौर पर इस रोग का इलाज ओपन सर्जरी एवं पायलोप्लास्टी द्वारा संभव होता है। परंतु इस रोगी का राजस्थान में प्रथम बार दूरबीन पद्धति (लेप्रोस्कोपी) द्वारा यूरेट्रो केलीकोस्टोमी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इस प्रक्रिया में किडनी के निचले भाग में चीरा लगा यूरेटर को दुबारा किडनी में प्रत्यारोपित किया गया। इसमें किडनी के निचले पोल के सबसे अधिक निर्भर हिस्से में विच्छेदन के माध्यम से स्वस्थ मूत्रवाहिका को समीपस्थ कर पेल्विक यूरेट्रिक ऑब्स्ट्रकशन को बायपास किया गया और लंबे समय तक किडनी में सूजन और मूत्रवाहिका में सिकुडन को हटाया गया। इस प्रक्रिया द्वारा रोगी की किडनी को भी बचा लिया गया।
लेप्रोस्कोपी सर्जरी के लाभः
डॉ बाहेती ने बताया कि लेप्रोस्कोपी प्रक्रिया से इलाज से इस रोगी में आवर्तक संक्रमण की कोई भी संभावना नहीं होगी। साथ ही किडनी में मूत्र के इकट्ठा न होने से पथरी की समस्या भी नहीं होगी। क्योंकि मूत्रवाहिका का किडनी में प्रत्यारोपण इस प्रकार है जिससे ग्रेविटी के माध्यम से मूत्र सीधा नीचे पास हो जाएगा। इस प्रक्रिया द्वारा इलाज में रोगी को २ से ३ दिन में ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाती है और अत्यधिक रक्तस्त्राव का खतरा भी नहीं रहता है।

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