वर्ष 2017 में योग, व्यायाम व निद्रा में हुई शोध के निष्कर्ष...

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Published on : 31 Dec, 17 08:12

(डा. प्रभात कुमार सिंघल )Dr harishanker meena. M.D(Pathology) N.I.A. jaipurआयुर्वेद जीवन में हितकारी, अहितकारी, सुखकारी, दुःखकारी, और उनके मानदण्डों को दर्शित करने वाला विज्ञान है (च.सू. 1.41): हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते।। कहने का तात्पर्य यह है कि आयुर्वेद जीवन में शारीरिक और मानसिक आनंद देने का पूर्ण विज्ञान है। इसी परिप्रेक्ष्य में सुख व दुःख की महर्षि चरक से बेहतर परिभाषा दुनिया में आज तक कोई और न दे पाया (च.सू.9.4): विकारो धातुवैषम्यं साम्यं प्रकृतिरुच्यते। सुखसंज्ञकमारोग्यं विकारो दुःखमेव च।। धातुओं में विषमता विकार है और संतुलन ही प्रकृति है। आरोग्य का नाम सुख है और विकार दुःख है। विश्व की केवल प्रमुख शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध की बात करें तो वर्ष 2017 में आयुर्वेद के विविध विषयों में 4000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हुये। हालाँकि सभी तरह की शोध-पत्रिकाओं को देखने पर लगभग 12,000 शोधपत्र प्रकाशित हुये हैं। आइये देखते हैं वर्ष 2017 के दौरान आयुर्वेद में आरोग्य प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से तीन अद्रव्य औषधियों—योग, व्यायाम और निद्रा—के सम्बन्ध में क्या शोध हुयी। पूरी शोध का आँकलन तो देना यहाँ संभव नहीं है, परन्तु शोध के वे अंश जिनका आप अपने आयुर्वेदाचार्य की मदद से उपयोग कर सकते हैं उसका सरल भाषा में संक्षिप्त विश्लेषणात्मक विवरण यहाँ प्रस्तुत है। शोध में हुई प्रगति को यहाँ यजुर्विद आयुर्वेद सूत्र में वर्णित तीन सूत्रों में वर्गीकृत करते हुये प्रस्तुत किया गया है जो हमारे जीवन में निरंतर धातुसाम्य रखते हुये आरोग्य दे सकते हैं।
1. योगः औषधम् (योग औषधि है)। वर्ष के दौरान योग से सम्बंधित विषयों पर 5920 शोधपत्र प्रकाशित हुये। योग निश्चित रूप से जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा की एक अति-महत्वपूर्ण शोध से यह बात अब और पुख्ता हुई है। कुल 96 लोगों पर किया गया यह क्लिनिकल ट्रायल स्पष्ट रूप से सिद्ध करता है कि योग कोशिकाओं की उम्र-बढ़त रोकता है। एक अन्य क्लिनिकल ट्रायल यह सिद्ध करता है कि गर्भावस्था के दौरान योग महिलाओं में सीजेरियन प्रसव से बचाव कर सामान्य प्रसव में मदद करता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं द्वारा योग पर आज तक हुई शोध के सांखिकीय विश्लेषण के आधार पर सिस्टेमेटिक-रिव्यू एवं रेण्डमाइज कन्ट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल्स की मेटा-एनेलिसिस के निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि योग करने वाले व्यक्तियों में बॉडीमॉस इन्डेक्स, सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर, लो-डेंसिटीलिपोप्रोटीन कोलस्ट्राल व हाईडेंसिटीलिपोप्रोटीन कोलस्ट्राल के मानकों में सुधर होता है। इसके साथ ही शरीर के वजन पर डायस्टोलिक ब्लडप्रेशर टोटल कोलस्ट्राल ट्राइग्लिसराइड्स, व हृदय गति के मानकों में भी सुधार होता है। विश्व के इन तमाम प्रमाणों को समाहित करते हुये यह निर्विवाद और सुस्पष्ट निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि योग मानव स्वास्थ्य में बेहतरी लाता है। हल्के या मध्यम अवसाद वाले वयस्कों में 8 सप्ताह तक हुये क्लिनिकल ट्रायल यह सिद्ध करते हैं कि योग से अवसाद में महत्वपूर्ण कमी हुई। एक अन्य शोध में यह पाया गया कि योग डॉक्टरों में काम की अधिकता के कारण होने वाली समस्याओं को हल करने में उन्हें अधिक सक्षम बनाता है। शोध तो चलती रहेगी पर अब कोई बहाना नहीं चलेगा। योग कीजिये। दिन में थोड़ा ही सही, पर योग, ध्यान और प्राणायाम को समय दीजिये। आपके जीवन में लम्बी-स्वस्थ आयु सुनिश्चित होगी। योगः औषधम् (य.आ.सू. 1.1) का सिद्धान्त स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध हो चुका है।
2. व्यायामः औषधम् (व्यायाम औषधि है)। वर्ष के दौरान व्यायाम से सम्बंधित विषयों पर 10,000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हुये। इनमे से 1245 शोधपत्र क्लिनिकल ट्रायल या उन पर मेटा-एनालिसिस पर प्रकाशित हुये हैं। योग की ही तरह व्यायाम भी निश्चित रूप से जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है, किन्तु वर्ष 2017 में व्यायाम की शोध इस बात के लिये याद की जायेगी कि अब ऐसे निर्विवाद प्रमाण उपलब्ध हैं जिसमें सिद्ध होता है कि बिना व्यायाम व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ नहीं रह सकता। जीवन-शैली के कारण होने वाले गैर-संचारी रोगों के कारण समय पूर्व मृत्यु के जोखिम में व्यायाम से भारी कमी आती है। इस वर्ष की महत्वपूर्ण शोध में यह भी पाया गया है कि पति या पत्नी के साथ जोड़े से व्यायाम व योग करने वाले जोड़ों का शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य बेजोड़ हो जाता है। समयाभाव हो तो भी सप्ताहांत में एक या दो बार किया गया शारीरिक व्यायाम भी बीमारी से बचाता है। व्यायाम धूम्रपानकर्ताओं में भी कैंसर व हृदयरोग का खतरा 30% तक कम कर देता है। बैठे-बैठे काम करने वाले लोग यदि रोजाना 60 से 75 मिनट व्यायाम करें तो उनके असमय मरने का जोखिम कम हो जाता है। स्वस्थ रहने के लिये समुचित खानपान के साथ सप्ताह में कम से कम 150 मिनट का व्यायाम लाभकारी है।
मानसिक रोगों के प्रबंध में व्यायाम की महत्वपूर्ण भूमिका भी निर्विवाद रूप से सिद्ध हुई है। व्यायाम और रेशायुक्त भोजन फैटी-लिवर में सुधार करता है। लोग स्वस्थ रहने के आसान, जरूरी और प्रमाण-आधारित उपाय—संतुलित भोजन, नियमित शारीरिक व्यायाम, पर्याप्त निद्रा और स्वस्थ जीवनशैली—को छोड़कर बाकी सब कुछ करना चाहते हैं। शोध में 1,30,000 लोगों में मृत्यु दर और हृदय संबंधी बीमारी पर शारीरिक गतिविधि का प्रभाव यह पाया गया कि भले ही मनोरंजन या प्रयत्नपूर्वक शारीरिक गतिविधि की जाये, इससे समय-पूर्व दिल के रोगों से होने वाली मृत्यु दर की घटनाओं के जोखिम में कमी आती है।
3. निद्रा औषधम् (निद्रा औषधि है)। भाषा भिन्न है, पर निद्रा के महत्त्व पर आयुर्वेद व शोध के निष्कर्ष पूर्णतया एक हैं। शायद ही ऐसी कोई बीमारी हो जिसका जोखिम निद्रा-अभाव के कारण ना बढ़ता हो। वर्ष 2017 में प्रकाशित, 22,00,425 लोगों के बीच हुई शोध जिसमें 2,71,507 मृत्यु के प्रकरणों का आंकड़ा भी शामिल है, से पता चलता है कि लगभग 27 से 37 प्रतिशत तक जनसंख्या जरूरत से ज्यादा तथा 12 से 16 प्रतिशत जनसंख्या जरूरत से कम निद्रा लेती है। इन दोनों ही परिस्थितियों में स्वास्थ्य के लिये गम्भीर जोखिम बढ़ जाता है।
वर्ष 2017 में उपलब्ध प्रमाण अब यह निर्विवाद रूप से यह सिद्ध करते हैं कि अपर्याप्त या आवश्यकता से अधिक निद्रा समग्र-कारण-मृत्यु-दर बढ़ा देती है। महिलाओं को विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि वे अनिद्रा के कारण सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। एक अन्य अध्ययन 30 से 102 वर्ष की 11,00,000 महिलाओं और पुरुषों के मध्य किया गया। निष्कर्ष यह है कि सर्वोत्तम उत्तरजीविता उन लोगों की होती है जो कि 7 घंटे की रात्रि की नींद पूरी करते हैं। पर 8 घंटे या उससे अधिक समय तक सोने से भी मृत्यु का जोखिम बढ़ने लगता है। एक अन्य अध्ययन 13,82,999 महिलाओं और पुरुषों के बीच किया गया, जिनमें 1,12,566 मृत्यु के प्रकरण भी शामिल हैं। अध्ययन में लम्बे समय का फॉलो-अप, 4 वर्ष से 25 वर्ष तक, किया गया। इस अध्ययन के निष्कर्ष भी निर्विवाद रूप से सिद्ध करते हैं कि सात घंटे से ज्यादा या कम सोना दोनों ही स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।
नींद की कमी से कार्य-निष्पादन, निर्णय लेने की क्षमता, व दर्द सहने की क्षमता में गंभीर कमी आती है। लंबे समय तक स्लीप-डेप्राइवेशन से बौद्धिक क्षमता भी क्षीण होती है व मेमोरी-कंसोलिडेशन पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि 4 से 9 वर्ष की उम्र के जो बच्चे बहुत देर से सोते हैं उनमें बौद्धिक क्षमता व सीखने की क्षमता में कमी आती है। सात वर्ष की उम्र के 11000 बच्चों पर हुआ अध्ययन बताता है कि नियमित रूप से नियमित समय पर नहीं सोने वाले बच्चे महत्वपूर्ण विषयों में कमजोर बौद्धिक प्रदर्शन करते हैं। सोलह से उन्नीस वर्ष के 7798 बच्चों पर किये गये एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि निद्रा की नियमितता, निद्रा का कुल समय तथा निद्रा में कमी का पढ़ाई में प्राप्त अंकों पर भारी प्रभाव पड़ता है। जो बच्चे 10 से 11 बजे के मध्य नियमित रूप से बिस्तर पर सोने चले गये उनके औसत प्राप्तांक सर्वोत्तम थे। अमेरिका के राष्ट्रीय नींद फाउंडेशन की सलाह है कि नवजात शिशुओं के लिये 14 से 17 घंटे, शिशुओं के लिये 12 से 15 घंटे, टॉडलर्स के लिये 11 से 14 घंटे, प्रीस्कूलर के लिए 10 से 13 घंटे, स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों के लिये 9 से 11 घंटे, किशोरों के लिये 8 से 10 घंटे, युवा वयस्कों और वयस्कों के लिये 7 से 9 घंटे, और प्रौढ़ वयस्कों के लिये 7 से 8 घंटे नींद की अवधि उपयुक्त है।
निष्कर्ष रूप में, योग, व्यायाम और निद्रा पर 2017 में हुई शोध हमारे जीवन में इन तीनों के महत्त्व को आश्चर्यजनक रूप से उसी प्रकार सिद्ध करती है, जैसा कि आयुर्वेद की संहिताओं में 5000 वर्ष पूर्व वर्णित है। शारीरिक निष्क्रियता, उच्च कैलोरी वाला भोजन, अनिद्रा और बिगड़ी हुई जीवनशैली ने हमारे स्वास्थ्य का जितना कबाड़ा किया है, उतना किसी अन्य कारण से नहीं हुआ। समुचित मात्रा में योग, व्यायाम और निद्रा सरल, व्यापक रूप से उपयोगी, और कम लागत वाले प्रमाण-आधारित उपाय हैं जो बीमारी और मृत्यु का जोखिम कम कर देते हैं। अन्य विषयों पर आगे चर्चा होगी। तब तक आप योग, व्यायाम व निद्रा पर ध्यान दीजिये और नये वर्ष में सुखी रहिये।

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