पोस्टमॉर्टम के दौरान मृत गायों के पेट में औसतन 50-60 किलो की मात्रा में पॉलीथिन और प्लास्टिक पदार्थ पाए जाते हैं

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Published on : 19 Dec, 17 11:12

जैसलमेर । पर्यावरण में जहर घोल रहे, गाय के लिए अत्यधिक घातक, सीवर जाम के सबसे बड़े कारण पॉलिथीन पर रोक के लिए कोई गंभीर कार्यवाही प्रकाश में नहीं आ रही है । न तो प्रशासन और न ही पब्लिक की ओर से कोई ठोस कदम उठाने जैसे उदाहरण मिलते । भले ही सोमवार को पेयजल, विद्युत एवं चिकित्सा व्यवस्था के साथ ही अन्य समसामयिक गतिविधियों की साप्ताहिक समीक्षा बैठक में जिला कलक्टर कैलाशचन्द मीना ने पाॅलिथीन पर सख्ताई से रोक लगाने के लिए आयुक्त नगरपरिषद को एक बार फिर निर्देश दे दिए गए हों लेकिन नतीजा वही ठाक के तीन पात वाला साबित होगा । दो दिन हाथ ठैले वालों से पॉलीथीन जब्ती की कार्यवाही और फिर कुंभकर्णी नींद । पॉलीथीन पर निरन्तर सख्ताई से छापामारी, इसके होलसेलर, डीलर आदि के ठिकानों पर छापामारी और जब्ती की कार्यवाही होती रहे तो काफी हद तक बाजार में इसकी किल्लत होने पर वैकल्पिक व्यवस्था हो सकेगी ।
पॉलीथीन खाने से मरती है गायें
पॉलीथिन गायों के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रहा है । पॉलीथीन खाने की वजह से गायें मारी जाती हैं । पॉलीथिन की वजह से मरने वाली गायों की कुल संख्या के 90 प्रतिशत मामलों में पशु के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं । इन गायों की मृत्यु उनके पेट में अत्यधिक पॉलीथिन और प्लास्टिक पदार्थों के सेवन से होती है । एक रिपोर्ट के अनुसार मरी हुई गायों का जब पोस्टमॉर्टम किया जाता है, तो औसतन एक गाय के पेट से 50-60 किलो की मात्रा में पॉलीथिन होती है । पॉलीथिन उनके पेट में जमा होते-होते चट्टान की तरह बन जाती है, जिसके कारण ज़्यादातर युवा गायों की मौत हो जाती है ।
पर्यावरण को ही चोट
आधुनिक युग में सुविधाओं के विस्तार ने सबसे अधिक पर्यावरण को ही चोट पहुंचायी है। लोगों की सुविधा के लिए ईजाद किया गया पॉलिथीन आज मानव जाति के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरा क्षमता को खत्म कर रहा है और भूजल स्तर को घटा रहा है।
कैंसर का खतरा
इसका प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों के साथ ही कैंसर का खतरा भी बढ़ा रहा है। यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोक सकता है। पॉलिथीन को जलाने से निकले वाला धुआं ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है जो ग्लोबल वार्मिग का बड़ा कारण है। प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। इससे गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है।
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