गाय ठोकरों में व पोथी आलमारियों में: गुरूजी

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Published on : 09 Dec, 17 10:12

गाय ठोकरों में व पोथी आलमारियों में: गुरूजी कोटा(डॉ. प्रभात कुमार सिंघल) श्री बड़ां बालाजी धाम पर श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव एवं गौरक्षा सम्मेलन में शुक्रवार का दिन स्वर्णीम अध्याय के रूप में जुड़ा। मौसमी बदलाव के उपरांत धूप खिल जाने से आज कथामृत पाने को श्रद्धालुओं का आंकडा 40 हजार से पार पहुंच गया। कथा सुनने को राजस्थान के विभिन्न जिलों सहित मध्यप्रदेश से भी बड़ी संख्या में सनातनधर्मी पहुंचने लगे हंै। इस बीच पांचवे दिन की कथा में काॅग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रभारी राजस्थान अविनाश पांडे, पीसीसी उपाध्यक्ष डाॅ. रघु शर्मा तथा नारकोटिक्स आयुक्त सहीराम मीणा ने भी सरस्वती पुत्र गौसेवक संत श्री कमलकिशोर जी नागर को मथ्ये वंदना कर आर्शीवाद ग्रहण किया। कथा स्थल पर आयोजक श्री महावीर गौशाला कल्याण संस्थान की ओर से अध्यक्ष गौतम कुमार बोरडिया ने अतिथियों का स्वागत-अभिनंदन किया। प्रमोद भाया द्वारा अपना 52वां जन्मदिन सादगी के साथ मनाया गया। भाया के 52वें जन्मदिन पर मुख्य यजमान प्रमोद-उर्मिला भाया को गुरूजी ने पुष्पहार पहनाकर शुभाशीष दी, जबकि पांडाल में उपस्थित जनसैलाब की ओर से भाया का जयघोष करते हुए दीर्घायु होने की कामना की गयी।
संतश्री ने कथा के प्रारंभिक चरण में कहा कि प्रमोद भाया में तपस्वी आत्मा का निवास है। इसी वजह से उनके सब कार्य परोपकारी एवं सर्वफलदायी होते है। उन्होंने कथा का मनोरथ कार्य कर प्रतिदिन हजारों सनातनधर्मियों के लिए कथा ज्ञान से जीवन श्रृंगारित करने का अवसर उत्पन्न किया है, जिसका फल परमात्मा भाया दम्पति को निश्चित रूप से प्रदान करेगा। गुरूवर ने कहा कि भागवत कथा का मनोरथ हर उस व्यक्ति को करना चाहिये, जिसे ईश्वर ने दाल-रोटी से ऊपर के स्तर पर समृद्ध बनाकर खड़ा कर दिया। भाया दम्पति ने जैन कुल में जन्म लेकर भी आत्मा की स्वप्रेरणा से कथा मनोरथ, गौसेवा तथा मानव सेवा के प्रकल्प हाथ में संकल्पबद्ध किये हुए हंै। यानि कि जिनको परमात्मा ने खर्च से ऊपर का दिया है, उसे बैठ जाने के बजाय गौसेवा का मनोरथ करना चाहिये, ताकि गाय को कटने से बचाया जा सके।
गुरूवर ने इस प्रसंग को विस्तार के साथ आगे बढ़ाते हुए कहा कि आज गाय दर-दर की ठोकरें खा रही हैं। पाॅलिथीन खाकर भूख शांत कर रही गाय की सुध लेने वाले संख्या में लगातार घटते जा रहे हैं। इसके बावजूद यर्थात में कार्य करने की बजाय ‘आवारा लोग’ केवल गाय की बातें ही कर रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों से गाय को बचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। गाय सहित जानवरों की बलि चढ़ाने और यदा-कदा बच्चों की बलि देने वाले दुष्ट व्यक्तियों से भी यह समाज दुषित हो रहा है। इन हालात में गौसेवा का संकल्प उŸारोतर बढ़ना चाहिये। उन्हानें बताया कि कलयुग की उम्र घटाने के लिए हम सब को अच्छे कर्म की ओर जाना होगा। यदि कर्म अच्छे नहीं कर सको, तो व्यवहार अच्छा बनाओ। यदि व्यवहार आपसे अच्छा नही हो रहा, तो स्वभाव को अच्छा बनाओ। यदि आपसे अपना स्वभाव भी अच्छा नही हो रहा, तो कथामृत से जीवन सुधारने का प्रयास करो। कथा स्थल पर भगवान साक्षात रूप में मौजूद रहते है। संतश्री ने कहा कि जीवन में मोह-माया समय निकालकर कथा अवश्य सुनो, ताकि गुण आ जाये। यदि गुण आ गया, तो भवसागर से तर जाओगे। हम सामाजिकता अथवा जाति-धर्मभेद की बात नहीं करते। हम तो केवल आत्मा की बात करते है। गुरूवर ने कहा कि वर्तमान के हालात से कलयुग पुष्ट होता दिखायी दे रहा है। पैसा आलमारियों में बंद है और गाय कट रही है। यदि भगवान ने आपको समृद्ध बना दिया, तो फिर गाय की सेवा में पैसा लगाओ, जैसा कि भाया कर रहा है। गुरूजी ने श्रीमद् भागवत तथा रामायण जैसे ग्रंथों एवं शास्त्रों को आलमारियों में सजाकर बंद कर दिये जाने पर ज्ञानियों व बुद्धिजीवियों पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि जब पौथी आलमारियों बंद होकर छार-धूल खा रही है, तो फिर ज्ञान कैसे बंटेगा। बेटियां जवान होकर बाप के घर में बैठी हैं या समाज में धक्के खा रही हंै, तो कलयुग पुष्ट ही होगा। इस सच्चाई को समझकर समृद्ध व्यक्ति भी स्त्रीधर्म को संरक्षित करने के लिए पैसा खर्च नही कर रहे। बुद्धिजीवियों एवं ज्ञानियो का अधिकांश समय अहम को पुष्ट करने के लिए तर्क में व्यतीत हो रहा है। इसी का परिणाम है कि स्वयं कानूनविदो की बेटियां मुकाम पर नहीं पहुंच सकीं। यह स्वयं उनके अपने कर्मों की सजा है, जिसे समझने के लिए स्वयं उनको भी अहम का त्याग कर कथामृत ग्रहण करना होगा, जो सब कुछ जानकर भी नहीं जानने की बात कहता है। दरअसल उसने अहम को जीत लिया। मैं तो कहता हूॅ ज्ञान को अर्जित कर राख बन जाने दो और यदि आपने राख बनना सीख लिया, तो आप स्वयं को भवसागर से निकाल पाने में सफल हो जाओगे। संतश्री ने कथा के मध्य में ब्रह्राम्णत्व को लेकर सीख दी। उन्होंने कहा कि समाज की वर्तमान दशा में ब्राह्रम्ण का दायित्व काफी ज्यादा बढ़ गया। प्रत्येक ब्राह्रम्ण परिवार में एक बालक को सनातन परम्परा एवं कर्म से जुड़ना चाहिये। यदि ब्राह्रम्ण नित्य साधना करने वाला है, तो निश्चित रूप से उसका आर्शीवाद फलदायी होगा। आर्शीवाद कभी असफल साबित नहीं होता, जबकि अमृत को अतिश्रेष्ठ माना गया है। उन्होंने आगे कहा कि जीवन एवं मनुष्य देह को कचरा बनाने वाली गतिविधियों से बचाना चाहिये, जैसे कि नोटबंदी वाली एक खबर ने कंचन को कचरा बना दिया। अंततः गुरूजी ने कहा कि समाज की बुराईयों को समाप्त करने के लिए आवश्यक है, कि कथामृत सुनने सुनाने का प्रयोजन बढ़ाया जाये, अन्यथा हिंसा का वातारण दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जायेगा। उन्होंने शुक्रवार को उमड़े जनसैलाब पर कहा कि आज का पाण्डाल दर्शन देखकर लगा, कि मानो साक्षात द्वारिका के दर्शन हो गये।

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