भारतीयों के फेफड़ों की क्षमता 30 फीसदी कम

( 16860 बार पढ़ी गयी)
Published on : 30 Nov, 17 10:11

नई दिल्ली। भारतीय लोगों के फेफड़ों की क्षमता उत्तरी अमेरिका या यूरोप के लोगों के मुकाबले 30 फीसदी कम है जिससे उन्हें मधुमेह, दिल का दौरा या आघात होने का खतरा अधिक होता है। ‘‘इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी’ (आईजीआईबी) संस्थान के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल का मानना है कि इसके पीछे जातीयता के साथ वायु प्रदूषण, शारीरिक गतिविधि, पोषण, पालन-पोषण मुख्य कारक हैं। ‘‘शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार’ से सम्मानित अग्रवाल इस पर अहम अध्ययन कर रहे हैं।अग्रवाल ने कहा कि अमेरिकन थोरासिक सोसायटी से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों की ‘‘फोर्सड वाइटल कैपैसिटी’ (एफवीसी) उत्तरी अमेरिकियों या यूरोपीय लोगों के मुकाबले 30 फीसदी कम है तथा चीन के लोगों से मामूली रूप से कम है।‘‘एफवाईसी’ अधिकतम श्वास लेने के बाद जितना संभव हो सके, उतनी जल्दी श्वास छोड़ने की कुल मात्रा है। उन्होंने कहा कि ‘‘एफवाईसी’ इस बात का संकेत होता है कि किसी व्यक्ति में दिल की बीमारियों को सहने में कितनी क्षमता है। अग्रवाल ने कहा, इसका मतलब है कि अमेरिकी मानकों पर मापे जाने वाले एक औसत भारतीय के फेफड़े की क्षमता कम होगी। इस श्रेणी के लोगों में मधुमेह, दिल का दौरा पड़ने तथा आघात से मरने की अधिक आशंका देखी गई। ‘‘वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट’ में फुफ्फुसीय चिकित्सा विभाग के एक ताजा अध्ययन में यह पाया गया कि दिल्ली में बच्चों की फेफड़ों की क्षमता अमेरिका के बच्चों के मुकाबले 10 फीसद कम है। ‘‘विज्ञान और पर्यावरण केंद्र’ (सीएसई) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली में हर तीसरे बच्चे के फेफड़ों की स्थिति ठीक नहीं है।

साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.