’’42 वें कृषि विश्वविद्यालय कुलपति सम्मेलन का भव्य उद्घाटन’’

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Published on : 17 Nov, 17 19:11

देश में कृषि विकास के लिए कृषि शिक्षा को समद्ध करने की आवश्यकता

’’42 वें कृषि विश्वविद्यालय कुलपति सम्मेलन का भव्य उद्घाटन’’ उदयपुर - भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संगठन (आई.ऐ.यू.ऐ.) द्वारा प्रोयोजित 42 वें कृषि विश्वविद्यालय कुलपति सम्मेलन का भव्य उद्घाटन शुक्रवार 17 नवम्बर, 2017 को प्रातः उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित दरबार हॉल में हुआ। उल्लेखनीय है कि इस दो दिवसीय अधिवेशन का आयोजन 17-18 नवम्बर, 2017 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा किया जा रहा है जिसके आयोजन में महाराणा मेवाड चेरीटेबल फाउण्डेशन का आर्थिक सहयोग रहा है। सम्मेलन का मुख्य विषय कृषि शिक्षा का वैश्वीकरण ’’भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका एवं दायित्व’’ रखा गया है।
उद्घाटन सत्र् के मुख्य अतिथि श्रीजी महाराणा मेवाड श्री अरविन्द सिंह ने संस्कृत श्लोक में माँ सरस्वती की स्तुति के साथ अपने उद्बोधन में प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप को उनके युद्ध कौशल और वीर योद्धा के रूप में ज्यादा जाना जाता है, जबकि सामाजिक उत्थान एवं कृषि के विकास में उनके समय में उल्लेखनीय कार्य हुए हैं उन्होनें महाराणा प्रताप के काल में पंडित चक्रपाणी मिश्र द्वारा रचित विश्व वल्लभ वृक्ष आयुर्वेद का उल्लेख करते हुए इस ग्रंथ को समकालीन कृषि विकास म उल्लेखनीय योगदान की संज्ञा दी। उन्होने आयोजन की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं भी दी। प्रारम्भ में भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संगठन के कार्यकारी सचिव प्रो. आर.पी. सिंह ने संगठन की रूप रेखा व आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। संगठन के अध्यक्ष माननीय कुलपति आसाम कृषि विश्वविद्यालय प्रो. के.एम. बजरबरूआ ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि वर्तमान में देश के कृषि सेक्टर को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड रहा है साथ ही हमें वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाये रखनी है अन्यथा कृषि में विदेशी निवेशक अपने पैर पसारने के लिए तैयार हैं।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र् को सम्बोधित करते हुए माननीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप-महानिदेशक डॉ. एन.एस. राठौड ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् व केन्द्र द्वारा कृषि शिक्षा के विकास में उनकी भूमिका व राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के उतरदायित्व पर प्रकाश डाला। उन्होनें कहा कि देश के कृषि विकास हेतु कृषि शिक्षा को समृद्ध बनाने की आवश्यकता है। उन्होनें कृषि विश्वविद्यालयों में फण्ड की कमी, फेक्लटी की कमी, शिक्षा में समय के साथ आवश्यक बदलावों और कृषि में कौशल विकास की बात कही।
उद्घाटन सत्र् की अध्यक्षता कर रहे महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। साथ ही भारतीय कृषि के समक्ष अनेक चुनौतियां भी हैं। ऐसी अवस्था में कृषि विश्वविद्यालय भी चुनौतियों से अछूते नहीं हैं। उन्होनें आज के वैश्विक गुण के अनुरूप देश के कृषि विकास की बात कही उन्होनें कहा कि कृषि के आधुनिकीकरण व नवीनशोध के साथ हमें प्राचीन व पारम्परिक ज्ञान को भी ध्यान में रखना होगा। इसलिये प्राचीन कृषि पद्धतियों व जैविक खेती को कृषि शिक्षा में स्थान देने हेतु एक विशेष सत्र् भी रखा गया है।
आयोजन सचिव व अनुसंधान निदेशक डॉ. अभय कुमार मेहता ने बताया कि इस दो दिवसीय सम्मेलन में देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, डिम्ड युर्निवसीटी व रा६ट्रीय कृषि संस्थानों के 45 कुलपति एवं संस्थान अध्यक्ष भाग ले रहें हैं। में पांच तकनीकी सत्रें का आयोजन होगा। पहले तकनीकी सत्र् में प्राचीन कृषि पद्धतियों का विकास, पुरातन कृषि पद्धतियों द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन तथा पशुधन के महत्व के बारे में कृषि शिक्षा का वर्तमान स्तर एवं भावी चुनौतियों में कृषि विश्वविद्यालयों का महत्व, तीसरे तकनीकी सत्र् में वैश्विक कृषि शिक्षा के बदलते स्वरूप पर व्याख्यान दिये जायेगें एवं उन पर चर्चा होगी।
दरबार हॉल में आयोजित पहले तकनीकी सत्र् की अध्यक्षता प्रौ. एन.एस. राठौड तथा उपाध्यक्ष सरदार कुशीनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अशhोक पटेल ने की इसमें कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर के कुलपति प्रो. पी.एस. राठौड, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. शर्मा व मेरठ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रौ. के.एम.एल. पाठक ने अपने उद्बोधन दिये। इस अवसर पर पेनलिस्ट कुलपति डॉ. नजीर अहमद, डॉ. जी.एल. केशवा व निदेशhक, बीएचयू, *ो. ए. वैशhम्पायन ने भी चर्चा में भाग लिया। इस सत्र् में कृषिकों के विकास को केन्द्र में रखकर योजना बनाने पर बल दिया गया। अपरान्हः एवं दूसरे दिन के तकनीकी सत्र् सी.टी.ए.ई. कॉलेज के कॉन्फ्रेन्स हॉल में आयोजित किये जांयेगें। कार्यक्रम का संचालन डॉ. वीरेन्द्र नेपालिया ने किया तथा धन्यवाद अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. मेहता ने ज्ञापित किया।

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