ज्ञान के प्रकाश से मिटता है अज्ञानता का अन्धकार

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Published on : 16 Nov, 17 09:11

ज्ञान के प्रकाश से मिटता है अज्ञानता का अन्धकार उदयपुर। हुमड़ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में आचार्य सुनीलसागरजी महाराज ने कहा कि अगर आप अपने से ज्यादा बुद्धिजीवी, विवेकशील और अच्छे गुणीजनों के सम्पर्क में हैं या उनके साथ उठते- बैठते हैं और उनसे अच्छी- अच्छी बातें नहीं सीखी तो आपका उनके साथ रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। उसी तरह से अगर आप त्यागी का जीवन जी रहे हैं और आपका मन काम, वासनाओं और संसार की मोह माया में ही अटका रहता है तो उस त्यागी जीवन का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इसलिए जो जीवन आप जी रहे हैं उसे ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से पालन करेंगे तो उसका निश्चित ही सुफल आपको प्राप्त होगा। आत्मबोध और सम्यगदर्शन ये दो ही जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर ले जाते हैं। जिस तरह से सूर्य अपने तेज प्रकाश से संसार के सारे अन्धकार को दूर कर देता है उसी तरह से ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान का अन्धकार भी छिन्न भिन्न हो जाता है। इसलिए अच्छी संगति वालों के साथ रहो, गुणीजनों, बुद्धिजीवियों और विवेकशील महापुरूषों के साथ रहो तो उनसे ज्ञान और सद्गुणों को ग्रहण करने का प्रयत्न करो ताकि अपने अन्दर जो अज्ञानका अन्धकार छाया हुआ है वह दूर हो सके।
आचार्यश्री ने कहा कि अन्गि की ज्वाला से जंगल के जंगल जल जाते हैं, जल के प्रलय से शहर-गांव सब नष्ट हो जाते हैं उसी तरह से ज्ञान के ताप से अज्ञान रूपी अन्धकार भी नष्ट हो जाता है। हर वस्तु और चीज का जरूरत के हिसाब से उपयोग और सदुपयोग करना चाहिये। जिस तरह से जल ही जीवन है, उसके बिना हम जी नहीं सकते हैं। जल से खाना, पीना, नहाना तो ठीक है लेकिन जल ही जीवन कह करचौबीस घंटे जल में ही रहने लग जाएंगे तो क्या जीवन बच पाएगा। अग्रि से भोजन बनाना, पानी गर्म करना, चाय बनान आदि- आदि तक तो ठीक है लेकिन हम अज्नि से ही लिपट जाएंगे तो क्या हम बच पाएंगे। उसी तरह से संसार की मोह- माया तब तक ही ठीक है जितनी आपको जरूरत है घर- गृहस्थी परिवार और सामाजिक कार्यों के लिए। लेकिन अगर संसार में सिर्फ मोह- माया और धन संग्रह में ही लगे रहेंगे तो प्रभु उपासना कब करेंगे, धर्म ध्यान कब करेंगे। इनके बिना न तो आपको आत्मबोध होगा ना ही आपका आत्मकल्याण होगा। अगर ऐसा नहीं होगा तो आपके लिए मोक्ष का द्वार भी नहीं खुल पाएगा। सिर्फ सांसारिक मोह- माया में ही पड़े रहने से जीवन तो बिगड़ता ही है मृत्यु भी बिगड़ जाती है। दिन-रात इस मोह माया के बन्धन में बन्ध कर भाग-दौड़ करने के बाद आप धन- दौलत तो कमा लोगे लेकिन बाकी सारे रिश्ते-नाते, धर्म-ध्यान पीछे छूट जाएंगे। आप अपनों से तो दूर हो ही जाओगे सभी के कल्याणकर्ता प्रभु से भी दूर हो जाओगे। इसलिए संसार में जन्म लिया है वो भी मनुष्य जीवन में तो, सांसारिक कामों के साथ- साथ प्रभु भक्ति और धर्म-ध्यान भी करो ताकि आपका मनुष्य जीवन सफल हो सके।
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