जिन शासन में जानवर भी बन सकता है जिनवर

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Published on : 19 Oct, 17 16:10

आचार्यश्री ससंघ (56 पिच्छी) के सानिध्य में आज होगा चातुर्मास निष्ठापन

आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज ने ‘सन्मति सभागृह’ में आयोजित त्री दिवसीय वीर कथा के दूसरे दिन भगवान महावीर के चरित्र को सुनाते हुए बताया कि कैसे भगवान महावीर ने अपने पूर्व भवों में पुरुषार्थ किया, न जाने कैसी-कैसी पर्याय अपने ही परिणामों के फल स्वरूप पाई। जिनशासन में भगवान होते नहीं है, बनना पड़ता है। सामान्य से लोग स्वीकार नहीं करेंगे कि ये ही भगवान महावीर उनके 10 भव पूर्व शेर की पर्याय में थे। क्रोधादि कषाय ही जीव की दुर्गति का मुख्य कारण है। किसी कवि ने बैर, क्रोध, का आचार या मुरब्बा है। जैसे आचार लंबे समय तक टिकता है और जितना अधिक समय बीतता है उसका स्वाद और ज़्यादा अच्छा आता है वैसे ही बैर व क्रोध लंबे समय तक टिक जाते है तो फिर अधिक से अधिक दुखो का स्वाद भोगना पड़ता है।
आचार्यश्री ने कहा कि ऐसा ही कुछ भगवान महावीर ने त्रिपृष्ठ नारायण की पर्याय में किया तो फल स्वरूप नरक गया और वहाँ से निकलकर शेर बना। लेकिन जिसकी होनहार अच्छी हो, अच्छा समय आनेवाला हो तो संयोग भी अच्छे मिल ही जाते है। एक दिन जहाँ ये शेर हिरण का शिकार कर माँस भक्षण कर रहा था वहाँ आकाश मार्ग से दो ऋद्धिधारी मुनिराज गुजऱ रहे थे जिन्होंने नीचे आकर इसे निकट भव्य जानकर संबोधन करते हुए कहा ‘हे वनराज, तुम भविष्य में तीर्थंकर बनने वाले जीव को ऐसा कृत्य शोभा नहीं देता, इस व्यर्थ पापाशक्ति को छोड़, अणुव्रत स्वीकार करो’। होनहार अच्छी हो तो जानवर को भी मनुष्य की बात समझ आ जाती है वरना मनुष्य को भी मनुष्य की बात समझ नहीं आती। जो सबको डराकर अत्याचार करता था कह अब शांत होकर सदाचार जीवन जीने लगा और कई दिनों के उपवास के साथ मरण कर देव बना। यह महिमा है जिनशासन की। आचार्यश्री ने कहा कि एक बार मुनि बनके मोक्ष नहीं मिलता। कठोर पुरुषार्थ करना पड़ता है। सबके प्रति अच्छी और सबको सुखी करने की भावना वाला ही भगवान बन सकता है। वह जीव भी नंदकुमार की पर्याय में ऐसी भावना भाता हुआ तीर्थंकर प्रकृति का बंध करता है। और फिर आगे चलकर वही जीव कुंडलपुर में जन्म लेकर विश्व को अहिंसा परमो धर्म एवं जियो और जीने दो का प्राणी मात्र का कल्याण करने वाला तीर्थंकर बालक वर्धमान महावीर के रूप में जन्म लेता है।
चातुर्मास निष्ठापन क्रियाएं 19 को: देवेन्द्र छाप्या ने बताया कि आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के चातुर्मास ने उदयपुर ही नहीं मेवाड- वागड़ में तो नई ऊंचाईयों को छुआ ही है यह चातुर्मास पूरे देश में चर्चित रहा है। ऐसे चातुर्मास का निष्ठापन 19 अक्टूबर को होगा। पारस चित्तौड़ा ने बताया कि प्रात3 6 बजे आचार्यश्री सुनीलागर ससंघ (56 पिच्छी) के सानिध्य में चातुर्मास निष्ठापन की धार्मिक क्रियाएं प्रारम्भ होगी। इस दौरान अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत, सुरेश पदमावत, जनकराज सोनी, सुमतिलाल दुदावत, सेठ शांतिलाल नागदा आदि श्रेष्ठीजनों का व्यवस्थाओं में विशेष सहयोग रहेगा। इसके बाद श्रीजी के शांतिधारा, अभिषेक होगा। प्रात: 8.30 बजे आचार्यश्री के सानिध्य में भगवान महावीर के निर्वाण लाड़ू चढ़ाया जाएगा। 9 बजे आचार्यश्री द्वारा भगवान महावीर के निर्वाण पर विशेष गुणगान एवं प्रवचन होंगे।
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