सुनील सागर चातुर्मास व्यवस्था समिति

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Published on : 15 Oct, 17 13:10

सुनील सागर चातुर्मास व्यवस्था समिति उदयपुर, जन्म से जिनशासन की छाया तो मिल गई लेकिन इसका सदुपयोग करेंगे तभी इसे पाना सार्थक होगा। जिन शासन की कृपा से हमारे कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। पिता की छाया तो एक जन्म का साथ निभाती है लेकिन परम-पिता परमेश्वर की छाया तो जन्मों जन्मों तक साथ निभाती है। जो आहार तो शुद्ध करे और वचन में अशुद्धता रखे वह साधु कहलाने के योग्य नहीं। श्रावक का शुद्ध भोजन करके प्रभु का भजन न करे और दूसरी कुप्रवृत्तियों में ही अपना उपयोग लगाए तो वह दुष्ट है। उसे चोरी के अपराध का दंड भोगना पड़ता है। दिगंबर साधु को पूर्ण परिग्रह का त्याग होता है इसीलिए वह दिगंबरत्व अपनाते है। निष्परिग्रह तबके प्रमाण के पाणीपात्र एवं दिगंबरत्व होना ही अपने आप में पर्याप्त है। भोजन तो हाथ में हो और उसके पीछे सोने-चाँदी की थालियाँ, कलश जिनशासन में ऐसा दोहरा पन बिलकुल स्वीकार्य नहीं है।
आचार्यश्री ने कहा कि हमारी कोई भी प्रवृत्ति, वचन धर्म निंदा का कारण न बने इसका ध्यान रहना बहुत ज़रूरी है। लोग तो उसी की निंदा करेंगे तो जिस पत्तल में खा रहे है उसी में छेद कर रहे है, ऐसा नहीं होना चाहिये यहदुष्ट प्रवृत्ति कहलाती है। निग्र्रंथों का मार्ग अपने आप में श्रेष्ठ है। साधु कुछ भी कैसा भी भोजन नहीं करते। उनके लिए कहा गया है जो अपने हाथ में आया आहार तपाए हुए शुद्ध लोहे के समान एकदम शुद्ध भोजन ही ग्रह्य है। उससे तात्पर्य ये नहीं गरमागरम भोजन करना है। उससे मतलब है कि जैसे वह गरम लोहा एकदम शुद्ध है, जीव, धूल, जंतु आदि कुछ भी उसके पास नहीं आ पाता वैसे एकदम शुद्ध प्रासुकि आहार ही साधु लेते है। और साधु को अगर ऐसा शुद्ध पिंड (भोजन) देना हो तो अपनी पिंड शुद्धि यानी परिवार की शुद्धता बनाए रखना पड़ेगी। आज कल परिवार में भी एक ही बच्चा हो, ऐसी मानसिकता पनप रही है। जो भी जीव संसार में आता है अपना भाज्य लेकर आता है, फिर बच्चा एक हो या चार क्या फर्क पड़ता है। जैनों का मनी पावर तो बढ़ गया लेकिन मैन पावर घट गया। मनी पावर से मैन पावर ज़्यादा ज़रूरी है।
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