सरोकारों के कालजयी कथाकार

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Published on : 08 Oct, 17 08:10

कथाकार प्रेमचंद हिंदुस्तान के ही नहीं अपितु विश्व के चुनिंदा साहित्यकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। प्रेमचंद की सरल भाषा, रोचक शैली एवं सामाजिक प्रतिबद्धता, राष्ट्रीयता व अपार लोकप्रियता से प्रभावित होकर बांग्ला साहित्य के लोकप्रिय कथाकार शरतचंद्र ने प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट कहा। सुप्रसिद्ध समालोचक रामविलास शर्मा के अनुसार-‘‘प्रेमचंद उन लेखकों में हैं, जिनकी रचनाओं से बाहर के साहित्य प्रेमी हिंदुस्तान को पहचानते हैं। वह पहले लेखक थे जिन्होंने जन साधारण की शूरता, धीरता, त्याग और बलिदान के गुणों का चितण्रकरके हिंदी साहित्य को वास्तविक जीवन के ‘‘हीरो’ दिए।’प्रेमचंद ने पहली कहानी ‘‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ 1907 में ‘‘जमाना’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। पहला उर्दू कहानी संग्रह- ‘‘सोजे वतन’ 1909 में प्रकाशित हुआ। उस समय प्रेमचंद शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। ‘‘सोजे वतन’ संग्रह की सभी पांच कहानियों का आधार देश प्रेम था। लिहाजा, कहानी संग्रह की सभी प्रतियों को जलाने का कलक्टर ने आदेश दिया। बिना अनुमति के कहानी न प्रकाशित करने का हुक्म भी दिया। धनपत राय (नवाब राय) को उनके मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव पर उन्होंने अपना नया नाम प्रेमचंद रखा। इस नाम से उनकी पहली कहानी ‘‘बड़े घर की बेटी’ उर्दू मासिक पत्रिका ‘‘जमाना’ के दिसम्बर, 1910 के अंक में छपी। प्रेमचंद की हिन्दी भाषा में पहली कहानी-‘‘सौत’ 1915 में ‘‘सरस्वती’ पत्रिका में दिसम्बर अंक में प्रकाशित हुई और उनका हिन्दी में पहला कहानी संग्रह ‘‘सप्त सरोज’ 1917 में प्रकाशित हुआ। 8 फरवरी, 1921 को गोरखपुर में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर 16 फरवरी, 1921 को सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। प्रेमचंद की प्रारंभिक रचनाओं में गांधी जी का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। उनकी ‘‘रंगभूमि’ के नायक सूरदास कहता है-सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाजी पर बाजी हारते हैं, चोट पर चोट खाते हैं। धक्के पर धक्के सहते हैं, पर मैदान में डटे रहते हैं।’ तो लगता है कि सूरदास के माध्यम से गांधी जी देश की जनता को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रेरित कर रहे हों। प्रेमचंद की अधिकांश कहानियां जीवन की सच्चाई से रू-ब-रू कराती हैं। ‘‘नमक का दारोगा’ कहानी में जब वह लिखते हैं ‘‘मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।’ इन पंक्तियों में आम भारतीय की आर्थिक स्थिति को प्रेमचंद बड़ी सरलता से उजागर करते हैं। विश्वविख्यात कहानी ‘‘कफन’ और ‘‘गोदान’ उपन्यास की रचना प्रेमचंद ने 1936 में की। इन अमर रचनाओं से साफ झलकता है की प्रेमचंद जी का गांधीवाद से मोहभंग हो चुका था। प्रेमचंद सादा जीवन उच्च विचार की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। इसका प्रमाण 1930 में बनारसीदास चतुर्वेदी को लिखा पत्र है। वह लिखते हैं-इस समय सबसे बड़ी आकांक्षा यही है कि हम स्वतंत्रता संग्राम में विजयी हों। धन या यश की लालसा मुझे नहीं रही। खाने भर को मिल ही जाता है। मोटर और बंगले की मुझे हवस नहीं। हां, यह जरूर चाहता हूं कि दो-चार उच्च कोटि की पुस्तकें लिखूं, पर उनका उद्देश्य भी स्वराज्य प्राप्ति ही हो।कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानियों ‘‘ईदगाह’, ‘‘पंच परमेश्वर’, ‘‘नमक का दारोगा’, ‘‘मंत्र’, ‘‘ठाकुर का कुआं’, ‘‘सति’, ‘‘बड़े भाई साहब’, ‘‘रामलीला’, ‘‘शतरंज के खिलाड़ी’ का जादू पाठकों के सर चढ़ कर बोल रहा था। ‘‘प्रेमाश्रम’, ‘‘रंगभूमि’, ‘‘कर्मभूमि’, ‘‘गबन’, ‘‘सेवासदन’, ‘‘गोदान’ आदि उपन्यासों ने हिन्दी कथा साहित्य की कायाकल्प कर दी थी। जापान, जर्मनी, फ्रांस, सोवियत संघ में उनकी कहानियों के अनुवाद हो रहे थे। प्रेमचंद की सफलता से प्रभावित होकर उत्तर प्रदेश की ब्रिटिश गवर्नर ने प्रेमचंद को ‘‘राय साहब’ की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा जिसे प्रेमचंद ने बड़ी विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दिया और उन्होंने कहा-मैं जनता का तुच्छ सेवक हूं। जनता की राय साहबी मिलेगी तो सर आंखों पर। गवम्रेट की रायसाहबी की इच्छा नहीं।कथा सम्राट प्रेमचंद ने हिन्दी कथा साहित्य को तिलिस्म और फैंटसी के कुहासे से निकाल कर यथार्थ की धरती पर लाए। प्रेमचंद का कथा साहित्य भारतीय समाज का सच्चा आईना है। प्रेमचंद द्वारा 1936 में रचित उपन्यास ‘‘गोदान’ विश्व कथा साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी तुलना टॉलस्टाय के ‘‘वार एंड पीस’ तथा गोर्की की ‘‘मदर’ से की जाती है। ‘‘गोदान’ में भारतीय किसान को किस तरह मजदूर बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है, इसकी व्यथा कथा है। कृषक जीवन के महाकाव्य के रूप में विख्यात ‘‘गोदान’ आज भी उतना प्रासंगिक है। कथाकार प्रेमचंद की अनेक कहानियों-उपन्यासों पर फिल्में बनाई गई। भारत रत्न सत्यजीत रे ने ‘‘शतरंज के खिलाड़ी’ तथा ‘‘सती’ कहानी का फिल्मांकन किया। ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘‘गबन’ उपन्यास पर आधारित फिल्म का निर्देशन किया। कवि-कथाकार निर्देशक गुलज़ार ने भी प्रेमचंद की कहानियों और गोदान पर दूरदशर्न के लिए सीरियल बनाया
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